डॉ. वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट-

रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव दो चरणों में हो रहा है. पहले चरण में 20 सीटों के लिए 7 नवंबर को मतदान है. पहले चरण में दुर्ग संभाग अंतर्गत आने वाली 8 सीटें भी शामिल हैं. इनमें पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी और मोहला-मानपुर शामिल हैं. इन सीटों के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टी ही अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर चुकी है.

खास बात यह है कि दोनों ही दलों ने अधिकतर सीटों में 2018 चुनाव में शामिल रहे अपने प्रत्याशियों को बदल दिया है. भाजपा ने तो राजनांदगांव में डॉ. रमन सिंह को छोड़कर अन्य सभी 7 सीटों पर चेहरे बदले हैं, जबकि कांग्रेस ने 4 सीटों पर चेहरे बदले हैं. 8 सीटों में से 3 सीटों पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायकों की टिकट काट दी है. वर्तमान में 8 में से 7 सीटों में कांग्रेस काबिज है.

सामाजिक समीकरणों की बात करे तो 8 में 6 सीटें अनारक्षित है, जबकि 1 सीट अनुसूचित जाति और 1 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है.

6 सामान्य सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों में 2 राजपूत(ठाकुर), 2 ब्राम्हण, 1 साहू, 1 लोधी समाज से हैं.

वहीं कांग्रेस के उम्मीदवारों में 2 साहू, 1 कुर्मी, 1 लोधी, 1 देवांगन और 1 मुस्लिम समाज से हैं.

पंडरिया– भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बदला चेहरा, चंद्रवंशी बनाम बोहरा

इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस बार चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक ममता चंद्राकर को दोबारा मौका नहीं दिया है. कांग्रेस ने नीलकंठ चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने भी मोतीराम की जगह भावना बोहरा पर भरोसा जताया है.

2018 का आंकड़ा– ममता चंद्राकर ने 36 हजार 487 वोटों से जीत हासिल की थी. ममता चंद्राकर को 100907 और मोतीराम चंद्रवंशी को 64420 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद के 4 चुनाव में 3 बार कांग्रेस और 1 बार भाजपा जीती है. 2003 कांग्रेस, 2008 कांग्रेस, 2013 भाजपा और 2018 कांग्रेस.

विशेष बात– दोनों ही प्रत्याशी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा प्रत्याशी भावना जिला पंचायत सदस्य हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी नीलकंठ जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. इस सीट में 2018 में दोनों प्रत्याशी ओबीसी और कुर्मी समाज से थे. इस बार कांग्रेस ने ओबीसी से, तो भाजपा ने सामान्य वर्ग से उम्मीदवार बनाया है. 2018 में कांग्रेस से महिला प्रत्याशी थी, 2023 में भाजपा से महिला प्रत्याशी हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी भावना बाजी पलट सकती हैं.

कवर्धा– भाजपा ने बदला चेहरा, मंत्री और महामंत्री में मुकाबला

इस सीट पर इस बार भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने प्रदेश महामंत्री विजय शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. 2018 में इस सीट से अशोक साहू चुनाव लड़े थे, हार गए थे. वहीं कांग्रेस ने मंत्री मो. अकबर ही भरोसा जताया है. मो. अकबर 2018 में सभी 90 सीटों में सर्वाधिक वोटों से चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी थे.

2018 का आंकड़ा– कांग्रेस प्रत्याशी मो. अकबर 59 हजार 284 मतों से जीते थे. अकबर को 136320 और अशोक साहू 77036 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद अब तक हुए 4 चुनावों में 2 बार कांग्रेस और 2 बार भाजपा जीती है. 2003 कांग्रेस, 2008 और 13 भाजपा और 2018 कांग्रेस.

विशेष बात- यहाँ आम आदमी पार्टी प्रत्याशी राजा खड़गराज सिंह भी मुकाबले में हैं. आदिवासी वर्ग के बीच लोकप्रिय हैं. कांग्रेस के गढ़ वाले क्षेत्र में सहसपुर-लोहारा राजपरिवार से हैं.युवा जोश और प्रबंधन के मास्टर अनुभवी नेता के बीच मुकाबला है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी सामान्य वर्ग से हैं. इलाके में साहू वोटरों की संख्या सर्वाधिक हैं. साहू समाज में सर्वाधिक कबीरपंथी है. विजय शर्मा कबीरपंथ को मानते हैं. नए चेहरों पर भरोसा. 4 चुनाव में कोई भी विधायक रिपीट नहीं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला किसी भी पक्ष से एकतरफा नहीं है.

खैरागढ़– भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस को यशोदा पर भरोसा

इस सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने पूर्व विधायक कोमल जंघेल की जगह विक्रांत सिंह को उम्मीदवार बनाया है. विक्रांत सिंह 2018 में भी टिकट की लाइन में थे और 2022 उपचुनाव में भी. लेकिन मौका नहीं मिला था. 2018 में इस सीट पर जोगी कांग्रेस से देवव्रत सिंह जीते थे. लेकिन असमय उनके निधन के बाद 2022 में उपचुनाव हुआ, तो कांग्रेस की यशोदा वर्मा यहां जीतने में सफल रहीं थी.

2018 का आंकड़ा– में देवव्रत सिंह सिंह को 61516 और कोमल जंघेल को 60646 वोट मिले थे. कांग्रेस के गिरवर जंघेल तीसरे स्थान पर रहे थे. 2022 उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा को 87879 और भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल को 67703 वोट मिले थे. वहीं जोगी कांग्रेस के नरेन्द्र सोनी सिर्फ 1222 वोट प्राप्त कर पाए थे.

राज्य बनने के बाद – दो उपचुनाव सहित 6 चुनाव में 3 बार कांग्रेस, 2 बार भाजपा और 1 बार जोगी कांग्रेस जीती है. 2003 में कांग्रेस, 2007 उपचुनाव में भाजपा, 2008 में भाजपा, 2013 में कांग्रेस, 2018 में जोगी कांग्रेस और 2022 उपचुनाव में कांग्रेस.

विशेष बात– यशोदा वर्मा दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. ओबीसी और लोधी समाज से हैं. विक्रांत सिंह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. राज परिवार और सामान्य वर्ग से हैं. डॉ. रमन सिंह के भांजे हैं. जिला पंचायत के उपाध्यक्ष हैं. खैरागढ़ लोधी बाहुल्य सीट है. इस सीट पर राज परिवार का ही दबदबा कायम रहा है. लेकिन बीते 4 चुनावों से समीकरण बदला और लोधी समाज के प्रत्याशी भी दोनों ही दल से विधायक बनते रहे हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांटे की टक्कर है, परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है.

डोंगरगढ़– भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बदला चेहरा, नए और अनुभवी में मुकाबला

डोंगरगढ़ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. इस सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक भुवनेश्वर बघेल की टिकट काटते हुए हर्षिता स्वामी बघेल को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने पूर्व विधायक विनोद खांडेकर पर भरोसा जताया है. विनोद खांडेकर 2003 में चुनाव जीते थे. इसके बाद 2008, 13 और 18 में मौका नहीं मिला था.

2018 का आंकड़ा– कांग्रेस प्रत्याशी भुवनेश्वर बघेल ने 35 हजार 418 वोट से जीते थे. भुवनेश्वर बघेल को 86949 और भाजपा प्रत्याशी सरोजनी बंजारे को 51531 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 13 में लगातार भाजपा और 2018 में कांग्रेस.

विशेष बात- विनोद खांडेकर अनुभवी हैं. चुनाव नहीं हारे हैं. हर्षिता बघेल जिला पंचायत सदस्य है. 2013 से टिकट की लाइन में रही हैं. 2018 के चुनाव में भाजपा से महिला प्रत्याशी थी, 2023 में कांग्रेस से महिला प्रत्याशी हैं. नए चेहरों पर जनता को भरोसा. 4 चुनाव में कोई विधायक रिपीट नहीं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला कड़ा है, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी मजबूत हैं.

राजनांदगांव– कांग्रेस ने रायपुर से भेजा प्रत्याशी, भाजपा से चेहरा वही पुराना

राजनांदगांव सीट पर इस बार भी कांग्रेस ने प्रयोग किया है. कांग्रेस ने 2018 की तरह से रायपुर से प्रत्याशी चुनाव लड़ने के लिए भेजा है. स्थानीय दावेदारों की जगह रायपुर निवासी गिरीश देवांगन को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. 2018 में करुणा शुक्ला भी इसी तरह ही रायपुर से जाकर चुनाव लड़ीं थी. भाजपा ने 5 बार के विधायक डॉ. रमन सिंह पर ही भरोसा जताया है.

2018 का आंकड़ा– भाजपा प्रत्याशी डॉ. रमन सिंह ने 16 हजार 933 मतों से जीते थे. डॉ. रमन सिंह को 80589 और कांग्रेस प्रत्याशी करुणा शुक्ला को 63656 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद से हुए चार चुनावों में 3 में भाजपा और 1 में कांग्रेस जीती है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन रायपुर के रहने वाले हैं, लेकिन राजनांदगांव ननिहाल है. ओबीसी हैं, देवांगन समाज से आते हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. खनिज विकास निगम के अध्यक्ष हैं. किसान परिवार से हैं. डॉ. रमन सिंह राजनांदगांव चौथी बार लड़ रहे हैं. रमन सिंह भी पहली कवर्धा से विधायक बने थे. बाद में डोंगरगांव से बने और बीते तीन बार राजनांदगांव से हैं. तीन बार के मुख्यमंत्री का मुकाबला नए प्रत्याशी से है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला एकतरफा नहीं रहेगा.

डोंगरगांव– भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस को साहू पर ही भरोसा

डोंगरगांव सीट पर भी भाजपा ने चेहरा बदल दिया है. इस बार सीट से भरत वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं. 2018 में इस सीट से मधुसुदन यादव लड़े थे. वहीं कांग्रेस ने अपने 2 बार के विधायक दलेश्वर साहू पर ही भरोसा जताया है.

2018 का आंकड़ा– कांग्रेस प्रत्याशी दलेश्वर साहू को 84581 और भाजपा प्रत्याशी मधुसुदन यादव को 65498 वोट मिले थे. दलेश्वर साहू19 हजार 83 वोटों से जीते थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद हुए 4 चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस जीती है.

विशेष बात– दोनों ही प्रत्याशी ओबीसी से हैं. भरत वर्मा लोधी समाज से हैं और दलेश्वर साहू समाज से हैं. यह सीट साहू बाहुल्य है. भरत वर्मा पहली बार से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि दलेश्वर साहू तीसरी बार चुनावी मैदान में हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस प्रत्याशी दलेश्वर साहू यहां मजबूत स्थिति में हैं.

खुज्जी– कांग्रेस-भाजपा दोनों ने बदला चेहरा, साहू बनाम साहू

खुज्जी सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक छन्नी साहू की टिकट काटकर पूर्व विधायक भोलाराम साहू को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने गीता घासी साहू पर भरोसा जताया है.

2018 का आंकड़ा– कांग्रेस प्रत्याशी छन्नी साहू ने 27 हजार 497 वोटों से जीत हासिल की थी. छन्नी साहू को 71733 और हिरेन्द्र साहू को 44236 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए 4 चुनावों में 1 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस जीती है. 2003 में भाजपा, 2008, 13 और 18 में कांग्रेस.

विशेष बात– गीता घासी साहू पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. दो बार के विधायक भोलाराम साहू तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों ही साहू समाज हैं. साहू और आदिवासी बाहुल्य इलाका है. 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी महिला थी, अब 2023 में भाजपा प्रत्याशी महिला हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला कड़ा है, गीता बाजी पलट सकती हैं.

मोहला-मानपुर– भाजपा बदला चेहरा, कांग्रेस को मौजूदा पर भरोसा

नक्सल प्रभावित मोहला-मानपुर सीट पर भाजपा ने इस बार चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने अपने पूर्व विधायक संजीव शाह को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक इंद्रशाह मंडावी पर ही भरोसा जताया है. 2018 में भाजपा से कंचन माला भुआर्या चुनाव लड़ीं थी.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रशाह मंडावी 21 हजार 48 वोट से जीते थे. इंद्रशाह को 50576 और कंचन माला को 29528 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद– राज्य बनने के बाद हुए 4 चुनावों में 1 बार भाजपा तीन बार कांग्रेस जीती है. 2003 में भाजपा और 2008, 13 और 18 में कांग्रेस

विशेष बात- दोनों ही पूर्व में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 2 बार के विधायक संजीव शाह तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, इंद्रशाह दूसरी बार मैदान में हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक कड़ी टक्कर के बीच भाजपा का पलड़ा भारी है.