इमरान खान,खंडवा। मध्यप्रदेश का हरसूद कभी इमारतों से सजा रहता था. कभी पुरानी यादों को अपने आप में समेटे हरसूद अब दुनिया के नक्शे से गायब है. नर्मदा नदी किनारे का कस्बा होने की वजह से हरसूद में भरभूर पानी था. लेकिन दूसरे शहरों की प्यास बुझाने, उजाड़ खेतों में पानी उपलब्ध कराने और इंदिरा सागर बांध बनने के लिए इस शहर ने 30 जून 2004 को यह शहर पानी में डूब गया था. एक हजार मेगावॉट की इंदिरा सागर बांध परियोजना से प्रभावित 22 हजार की आबादी वाले हरसूद शहर के विस्थापन की आज उन्नीसवीं बरसी है.
19 साल पहले जो शहर आबाद हुआ करता था, वह आज खंडहर में बदल गया है. देश के सबसे बड़े बांधों में से एक ‘इंदिरा सागर बांध’ के निर्माण के लिए खंडवा जिले की एक तहसील हरसूद के करीब 245 गांव के ढाई लाख लोगों को विस्थापिथ कर दिया गया था. एक हजार मेगावाट बिजली बनाने के प्लांट के लिए लोगों ने छाती पर पत्थर रख अपने ही घरों को तोड़ दिया.
खंडवा में स्थित इंदिरा सागर बांध के निर्माण के लिए देश के और प्रदेश के विकास के लिए हरसूदवासियों ने अपनी जमीन अपनी धरती की कुर्बानी दी थी. इसके बावजूद ये लोग आज 19 साल बाद भी अपने हक की लड़ाई के लिए हर रोज संघर्ष करने को मजबूर हैं. यहां रहने वाले लोगों का आरोप है कि सरकार ने विस्थापन के समय बड़े-बड़े सपने दिखाए थे, लेकिन उसमें से एक वादा भी पूरा नहीं हो पाया है. लोग आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.
प्रदेशवासियों के लिए अपना सबकुछ छोड़ विस्थान करने वाले लोग आज भी अपने शहर हरसूद की बरसी पर अपने सारे काम धंधा छोड़ कर इस खंडहर हो चुके शहर में आते हैं. जब गर्मियों के दिनों में बांध के बैकवाटर का पानी उतरता है, तो दूर-दूर जा बसे लोग अपने उजड़े हुए कस्बे से मिलने चले आते हैं. हर साल 30 जून को इसके उजाड़े जाने की बरसी पर सैकड़ों लोग इकट्ठा होते हैं और अपनी इमारतों, अपने मकान की खंडहरों में अपने यादों को टटोलते हैं.
खंडवा से 70 किमी दूर हरसूद को राजा हर्षवर्धन ने बसाया था. अब यह शहर पानी में डूब गया है. लेकिन डूबने से पहले इसके हजारों लोगों को खंडवा के पास छनेरा में बसा दिया गया था. यह एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन माना जाता है. खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर की गहराइयों में यह शहर भले ही डूब गया है, लेकिन लोगों के दिलों में इसकी यादें अमर हो गई है. आज भी हरसूद में पले-बढ़े लोग अपने कस्बे को याद करते हैं, तो उनके मन में एक दर्द का भाव उमड़ पड़ता है. उनकी यादे हरी हो जाती हैं.
हरसूद उजड़ जाने के बाद अलग-अलग शहरों में बस गए लोगों की आंखें 30 जून को नम हो जाती है. कई लोग पुराने हरसूद की तरफ अपनी यादें ताजा करने चले आते हैं. यहां सब कुछ उजाड़ है और बहुत कुछ पानी में डूबा हुआ है. कई बुजुर्ग अपने बच्चों को पुराने हरसूद का भूगोल समझाते हैं. नए हरसूद (छनेरा) में पांच हजार लोगों को बसाने की योजना थी, लेकिन करीब 2300 परिवार ही पहुंचे. लोगों को सपना दिखाया गया था कि छनेरा को एक खूबसूरत सिटी की तर्ज पर बसाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो काफी लोग अलग-अलग शहरों में बस गए. बता दें कि हरसूद का विस्थापन एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन माना जाता है. अब देखना यह होगा कि देश के विकास में इन लोगों ने जो अपना बलिदान दिया है उसके बदले उन्हें न्याय और विकास कब मिलता है.
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