फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ के गौठान महिलाओं की तकदीर बदल रहे हैं. महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं. भूपेश सरकार की योजनाएं धनवर्षा कर रही हैं. यूं कहें कि महिलाओं की झोली अब विकास की बयार से छलक रही हैं. मेहनत के बूते महिलाएं नित नई इबारतें लिख रही हैं. कहानी महासमुंद की है, जहां पेवर ब्लॉक से बदली महिलाओं की जिंदगानी बदल गई. रीपा के माध्यम से खुशहाली की निशानी देखने को मिल रही है. नारी शक्ति ने मेहनत तले सफलता की कहानी लिखी है.

दरअसल, महासमुंद कभी दूसरे के खेतों में, फैक्ट्री में मजदूरी करने वाली महिलाएं आज खुद मालकिन बन गई हैं. अब वे खुद के लिए काम कर रही हैं. महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क के माध्यम से इन महिलाओं की जिंदगी में आत्मनिर्भरता की एक नई रोशनी चमक रही है.

महासमुंद विकासखंड अंतर्गत ग्राम कांपा की ग्रामीण खेतिहर और गरीब महिलाओं ने एक समूह बनाया, जिसे नाम दिया दुर्गा स्वयं सहायता समूह. इस समूह में 10 महिला सदस्य हैं. ये महिलाएं सन 2018 से बिहान से जुड़कर आत्मविश्वासी बने और अब 2022 में रीपा से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. तकनीकी और मेहनत के कार्य को आमतौर पर महिलाओं के लिए दुरूह कार्य माना जाता है, लेकिन फ्लाई ऐश ईंट बनाने के इस काम को महिलाओं ने बखूबी करके दिखाया है.

विगत 3 महीनों में ही इन्होंने करीब 67हजार ईंट बनाए हैं. इनमें से 40 हजार ईंट को पंचायत के माध्यम से विक्रय किया गया है, जिससे इन्हें ₹1लाख का लाभ हुआ है. समूह की सचिव कल्याणी दुबे ने बताया की समूह के अंतर्गत वर्मी कंपोस्ट बनाने का भी काम करते हैं, जिससे उन्हें करीब ₹1लाख 30 हजार का विक्रय किया है. इसी तरह समूह से जुड़ने के पश्चात करीब ₹1लाख 20 हजार आंतरिक लेन देन हो रहा है.

उन्होंने बताया कि प्रारंभिक प्रशिक्षण कब पश्चात अब आसानी से ईंट बना पा रही हैं. इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा उसे रीपा में आवश्यक मशीन व सन्साधन उपलब्ध कराया गया है। ईंट बनाने के लिए रेत ,जिप्सम, चूना और पानी को मिक्सिंग मशीन में डालते हैं.

लिफ्ट कन्वेयर बेल्ट से कंप्रेसर चेंबर में भेजा जाता है. जहां कम्प्रेस कर ईंट तैयार किया जाता है. समूह की अध्यक्ष अहिल्या साहू और सचिव कल्याणी दुबे ने बताया कि वह प्रति ईंट लगभग ढाई रुपए की दर से विक्रय करते हैं. वहीं समूह से जुड़ी देवकी सोनी दीपलता और उर्वशी दुबे ने कहा कि हमने सोचा नहीं था कि हम खुद मशीन का संचालन करेंगे.

इन महिलाओं के चेहरे पर आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की चमक देखी जा सकती है. वे कहते हैं कि कभी हमारे दिन दूसरों के यहां मजदूरी में गुजर जाते थे, लेकिन आज हम खुद के लिए काम कर रहे हैं. मालकिन जैसे महसूस करते हैं. ये रीपा से ही सम्भव हो सका.

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