फीचर स्टोरी । छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार की ओर से आदिवासियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है. इन योजनाओं में एक योजना है ‘वनधन’. वनधन सही मायने में आज आदिवासियों के लिए जनधन बन गया है. वनधन विकास योजना का लाभ लेकर आज आदिवासी महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. उनके पास अब अपने ही क्षेत्र में वनो से प्राप्त ऊपज से रोजगार है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक महिला सशक्तिकरण देखने को मिल रहा है.

सुमनी के लिए वनधन बना जनधन

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर वनधन विकास की सफलता बताने वाली बस्तर के नानगुर निवासी सुमनी बघेल से मिलिए. सुमनी बघेल बताती हैं कि दो साल पूर्व तक गांव में कोई खास काम नहीं था. वनपोज आधारित जिंदगी में जैसे-तैसे चल रही थी. व्यापारी गाँव वाले कम दरों पर वनोपज खरीदते थे. लेकिन अब सरकार की ओर से दाम बढ़ाए जाने के बाद भी व्यापारियों के ऊपर दबाव बना है. वनधन विकास से जुड़ने के बाद फायदा अलग से होने लगा है.

सुमनी बताती हैं कि समूह में 10 महिलाएं कार्य करती हैं. खेती किसानी के कार्यों से सभी महिलाएं मुक्त जब होती हैं, तब 2 से 3 महीने कार्य कर हम इस योजना से लाभ कमाते हैं. समूह के द्वारा वर्तमान समय में वन धन योजना के तहत लघु वनोपजों का संग्रहण कार्य किया जा रहा है. जिसके अंतर्गत हर्रा, बहेरा, गिलोय, महुआ, इमली आदि का संग्रहण किया जा रहा है. आज समूह 12 लाख से 15 लाख रुपए तक की खरीदी कर पाने में सक्षम है.पहले व्यापारी लघु वनोपजों को ग्रामीणों से कम दामों में खरीदकर मोटा मुनाफा कमाया करते थे, परंतु जब से आप ने समर्थन मूल्य की दर निर्धारित की है गांव वालों को उचित मूल्य की जानकारी हुई और अब वे निर्धारित मूल्य में हमारे पास वनोपज विक्रय कर आर्थिक लाभ उठा रहे हैं.

अंजना की कहानी, अंजना की जुबानी

सुमनी बघेल की तरह ही अंजना बघेल की कहानी है. बस्तर जिले के चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र में बड़े किलेपाल गाँव की रहने वाली अंजना को वनधन विकास योजना से बड़ा सहारा मिला है. अंजना के पास कुछ माह पहले तक कोई रोजगार नहीं था. इस बीच उन्हें वनधन विकास योजना की जानकारी मिली.

वनधन योजना से जुड़ने से पूर्व अंजना एक महिला समूह का गठन किया. समूह के गठन के बाद उन्होंने योजना से जुड़ी पूरी जानकारी ली और प्रकिया का पालन करते हुए आगे बढ़ी. 10 महिला सदस्यों के साथ अंजना लघु वनोपजों का संग्रहण शुरू किया. संग्रहण के साथ प्रसंस्करण के कार्य को भी आगे बढ़ाया. संग्रहित वनोपजों को बाजार में बेचने पर समूह को फायदा होना शुरू हुआ. आज समूह को ढाई लाख रुपये की आय प्राप्त हो चुकी है.

अंजना इस बात बेहद खुश हैं कि वनधन विकास से न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली, बल्कि उनके जैसे ही आज सैकड़ों आदिवासी इस योजना से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

बस्तर से जशपुर, विकास भरपूर

बस्तर की तरह ही सरगुजा अँचल की आदिवासी महिलाएं भी सशक्त हो रही हैं. स्वालंबी बनने और आत्मनिर्भर होने की कहानियाँ भी सरगुजा अँचल में ढेरों हैं. बस्तर हो या जशपुर भूपेश सरकार में हर कहीं विकास भरपूर दिखाई दे रहा है.

जशपुर इलाके में भी वनधन विकास योजना की सफलता देखीं जा सकती है. जशपुर जो कि सघन वन और विशिष्ट पर्यावरण के लिए जाना जाता है, वहाँ भी भरपूर वनोपज है. साल बीज, महुआ फूल, तेंदू पत्ता के साथ कई उच्च गुणवत्ता के वनोपज पाए जाते हैं.

वनधन योजना के बारे में उप वनमंडलाधिकारी एसके गुप्ता बताते हैं कि राज्य सरकार की वनधन योजना के तहत स्थानीय आदिवासी महिलाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं से जोड़ने का काम लगातार किया जा रहा है. सरकार की ओर से संचालिक वनधन विकास योजना से आज जिले में सैकड़ों महिलाएं जुड़ गई हैं.

महिलाएं समूह बनाकर वनधन विकास योजना में काम कर रही हैं. इन्हीं में से एक है अमर स्व-सहायता समूह. समूह की महिलाओं के फूल झाड़ू बनाने का काम है. 5 हजार क्विंटल की दर फूल झाड़ू का संग्रहण किया जा रहा है. समूह में 10 सदस्य हैं. समूह की ओर से कुछ दिनों में 50 हजार रुपये तक झाड़ू का निर्माण किया जा चुका है. इससे समूह को विक्रय के बाद शुद्ध 13 हजार रुपये की आय हुई है.

फूल झाड़ू की मांग क्षेत्र में बहुत है. वहीं वनधन विकास से लाभांवित महिलाओं को बड़ा बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है. मार्केटिंग के लिहाज समूह की ओर निर्मित उत्पादों को संजीवनी केंद्रों में भी विक्रय के लिए भेजा रहा है.