फीचर स्टोरी. भूपेश सरकार के 3 साल पूरे हो गए हैं. इन तीन सालों में भूपेश सरकार ने छोटी-बड़ी कई योजनाएं संलाचित की. इन योजनाओं का बेहतरीन क्रियान्वयन भी जमीनी स्तर पर हुआ. हितग्राहियों को योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ मिल सके इस पर भी विशेष ध्यान दिया गया. खुद मुख्यमंत्री अपनी महत्वकांक्षी योजनाओं को लेकर गंभीर दिखे हैं. नतीजा यह रहा कि बड़ी संख्या में राज्य के लोग लाभांवित हो गए.

खास तौर पर महिला समूहों को आर्थिक तौर पर उन्नत और सशक्त बनाने की दिशा में शानदार काम हुआ है. सरकार के इन कामों को धरातल पर आज देखा भी जा सकता है. आज सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर महिला स्व-सहायता समूहों ने अपनी जिंदगानी बदली है. बात ऐसे ही एक सफल कहानी की जिसे पढ़कर आपकों प्रेरणा मिलेगी. आप दूसरों को प्रेरित भी कर पाएंगे. विशेषकर उन ग्रामीण या कमजोर तबके की महिलाओं को जो इस दिशा में काम करती होंगी या करना चाहती होंगी.

12 महिलाओं ने संभाली कमान, मछली पालन से नई पहचान

ये कहानी है कोरबा जिले के पाली विकासखंड में नवापारा-कपोट गाँव की. गाँव में 12 महिलाओं ने मिलकर एक स्व-सहायता समूह का निर्माण किया है. समूह का नाम है गरिमा महिला स्व-सहायता. नाम के अनुरूप गरिमापूर्ण काम गरिमा समूह की महिलाओं ने किया. समूह की महिलाओं मिलकर मछली पालन करने का निर्णय किया. महिलाओं ने खुद कमान संभाली और आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ गए. आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं जब घरों बाहर निकलकर व्यवसायिक खेती की ओर बढ़ीं तो जाहिर सफलता कदम चूमेगी. सफल कदमों के साथ महिलाएं आगे बढ़ती गईं.

समूह की अध्यक्ष अमृता पावले इस बारे में विस्तार से बताती हैं. अमृता कहती हैं कि पहले हमारी आर्थिक निर्भरता समय-समय पर मिलने वाली ग्रामीण मजदूरी पर थी. परिवार का गुजारा इससे अच्छे नहीं हो पाता था. अच्छी आमदनी के लिए हमें स्व-सहायता समूह बनाकर व्यवसाय करने की जानकारी मिली. गाँव की 12 महिलाओं ने मिलकर हमने एक समूह का निर्माण किया. हमने तय की गाँव के तालाब में मछली पालन करके देखते हैं. हमें इसके लिए मछली पालन विभाग से पूरी जानकारी और योजनाओं से संबंधित मदद मिली. यह हमारे जीवन की एक नई शुरुआत थी.

मछली पालन का व्यवसाय पुरुषों का वर्चस्व वाला माना जाता है. लेकिन हमने इस वर्चस्व को तोड़ने का काम किया है. आज हम सफलता की ओर बढ़ चले हैं. मछली पालन विभाग की ओर से हमें कई तरह से मदद पहुँचाई गई. हमें प्रशिक्षण भी दिया गया. हमने गाँव स्थित 10 एकड़ तालाब को लीज पर लिया. सरकारी योजनाओं संबंधित प्रकिया पूरी होने के बाद हमने जब शुरुआत की तो यह बिल्कुल नया अनुभव था.

भूपेश सरकार ने चूंकि मछली पालन को अब राज्य में खेती का दर्जा दे दिया है, इसलिए खेती में दी जाने वाली अनेक छूट संबंधी लाभ भी हमें प्राप्त हुआ. मछली पालन विभाग के अधिकारियों ने मछली पालने के तरीके सीखाये, विभागीय योजनाओं के तहत मछली बीज, पूरक आहार, जाल आदि भी मिला. डीएमएफ मद से रोहू, कतला, मृगला जैसे मिश्रित मछली बीज, ग्रास कार्प, कामन कार्प मछली बीज और संतुलित परिपूरक आहार मिला. इस खेतीनुम मछली पालन से पहले साल मुनाफा कम हुआ, लेकिन अनुभव खूब अच्छा रहा. दूसरे साल तो जैसे यह लाभ का धंधा साबित होने लगा. चार-पांच महीने में ही मछलियों में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है और इस सीजन में गरिमा स्वसहायता समूह ने लगभग साढ़े आठ सौ किलो मछली निकालकर स्थानीय बाजार में बेची है.

अमृता कहती हैं कि मछली पालन का धंधा अब अच्छे से चल निकला है. थोक व्यापारी सूचना पर तालाब पर आते हैं और बोली लगाकर मछली खरीद कर ले जाते हैं. पाली और बनबांधा गांव के स्थानीय बाजार में भी मछली बेची जाती है. इस सीजन में अभी तक लगभग सवा लाख रूपये की मछली बिक चुकी है. इससे समूह को साठ हजार रूपये से अधिक की शुद्ध आय हुई है. इस लाभांश को समूह के बैंक खाते में जमा किया गया है. लाभांश में से कुछ पैसा बचाकर बाकी राशि को सदस्यों में बराबर-बराबर बांटा जाता है. इस वर्ष मछली पालन विभाग की मौसमी तालाबों में स्पॉन संवर्द्धन योजना के तहत समूह को 25 लाख मिश्रित स्पॉन दिया गया है. समूह ने इसमें से 10 हजार स्टे.फ्राई का विक्रय किया है और लगभग 20 हजार स्टे.फ्राई अभी भी तालाब में संचित है. मछली पालन को आगे बढ़ाने और उत्पादन में वृद्धि करने की भी समूह की योजना है.