आज श्रीकृष्ण प्रागट्य उत्सव है. श्रीकृष्ण के तत्व को समझने का प्रयास हम करेंगे. श्रीकृष्ण परम तत्व हैं. राष्ट्र की चेतना हैं श्रीकृष्ण की लीला होती है. लीला का तात्पर्य जो जीवन में लय ला दे, जीवन को स्वर दे दे वो लीला है. हर समय हर परिस्थितियों में समाधान का स्वर दे सके उसी का नाम उसी का श्रीकृष्ण है. इसीलिए कवि राकेश मधुकर की कविता की यह लाईन “गीता के गायक को फिर आवाज़ दो, पांचजन्य सा साज दो” के माध्यम से मैं आप को बताना चाहता हूं कि युवा शक्ति के रूप में कैसे श्रीकृष्ण ने चल रही दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ़ आवाज़ उठाया.

संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कार्डिनेटर, लल्लूराम डॉट कॉम

एक प्रसंग के माध्यम से इसे हम समझने का प्रयास करेंगे. जब दीपावली के उत्सव के बाद नन्दगाँव के सभी लोग इंद्र देवता का यज्ञ करने की तैयारी करते है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए नन्द बाबा के साथ सभी ग्रामवासी इस कार्य में लगे रहते हैं. श्रीकृष्ण जब पूछते हैं तो उन्हें बताया जाता है कि इंद्र देवता की कृपा से ही वर्षा होती है. इसलिए यह सब आयोजन हो रहा है. तब श्रीकृष्ण नन्द बाबा से कहते हैं कि बाबा जब यह सब इंद्र देवता के अधिकार क्षेत्र में हैं तो वो समुद्र में बरसात क्यों होती है या उन पहाड़ों में जहां कोई यज्ञ नहीं करता तो वहां क्यों बरसात होती है. यदि उनमें सामर्थ्य है तो क्या वो किसी का स्वभाव बदल सकते हैं. इंद्र देवता और बादल का बरसात करना उनका स्वभाव और कर्म है और सभी को अपना कर्म करना पड़ता है. इसलिए बरसात कर वो कोई उपकार नहीं करते हैं वो उनका कर्म ही है. इसलिए इस संसार में कोई किसी को सुख-दुख नहीं दे सकता है, भय सुख-दुख ये सब कर्म के परिणाम हैं. इसलिए जो प्रत्यक्ष है उसकी हमे पूजा करनी चाहिए.

गिरिराज गोर्धन की पूजा करने श्रीकृष्ण सभी को कहते हैं. उनका मानना था ये हमें वनसंपदा प्रदान करते हैं, गौ जो हमें दूध और अन्य चीजें प्रदान करते हैं उनकी पूजा करनी चाहिए. यह देखा जाए तो उस समय की एक क्रांतिकारी सोच थी जो पुराने और दकियानूसी सोच पर एक प्रहार था. रूढ़िवादी परम्परा के विरुद्ध एक वैचारिक आंदोलन का शंखनाद था गोवर्धन पूजा. आज देश की बदली हुई तस्वीरों में पांचजन्य के जय घोष करने वाले कृष्ण की आवश्यकता है जो विखण्डित और दिग्भ्रमित चिंतन को राष्ट्रबोध कराए. उसके बाद विधि-विधान से गोवर्धन पूजा की गई. उनकी पूजा ही प्रकृति की पूजा है कहने का तात्पर्य ये है की पर्वत श्रृंखलाएं नहीं होती, हरियाली नहीं होती,  तो क्या बारिश संभव है.  उसी बात को श्रीकृष्ण ने उल्लेखित किया साथ ही गौ यज्ञ के माध्यम से गौ संवर्धन और उनकी रक्षा का भी संदेश था.

इस बात को लेकर इंद्र देवता बहुत नाराज होते हैं. आपने देखा होगा सम्मान के आकांक्षी व्यक्ति की वाणी का संतुलन जल्दी बिगड़ जाता है. वहीं इंद्र देवता के साथ होता है. इसीलिए उन्होंने प्रलयंकारी बादलों को ब्रज में जाकर उनके लोगों और पशुधनों को दंड देने का आदेश देते हैं, इसके बाद मूसलाधार बारिश होने लगती है. उसके बाद नेतृत्व कर रहे श्रीकृष्ण सभी को कहते हैं कि डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके पास समाधान था जब भी आप नेतृत्व करें तो आपके पास समाधान होना चाहिए यदि किसी प्रकार से जनता दुखी है उन्हें कोई परेशान कर रहा है तो नेतृत्व करने वाले में वो साहस होना चाहिए कि वो उसका समुचित जवाब दे सके.

भारत की युवा शक्ति के सामर्थ को भी श्रीकृष्ण उद्घाटित करते हैं, श्रीकृष्ण ने गिरिराज को उठा लेते हैं वो कहते हैं चिंता करने की आवश्यकता नहीं है सभी गिरिराज जी के नीचे आ जाते हैं. 7 दिन तक लगातार बारिश होती है और कन्हैया यूं ही सबकी रक्षा करते हैं इसके बाद इंद्र लज्जित होते हैं. बारिश बंद होती है और धूप निकल आती है. लोग धीरे-धीरे बाहर निकल आते हैं. सभी जीव जिनकी रक्षा प्रभु करते वो बाहर आ जाते हैं. सामर्थ को देखकर फिर कहना पड़ता है “गीता के गायक को आवाज दो” जो भारत के मूल्यों, भारत की संस्कृति की रक्षा के लिए गोर्वधन को अपनी उंगली में उठाकर नई चेतना जाग्रत कर सके. राधेकृष्ण.