दिल्ली. देश में बेरोजगारी का आलम यूं है कि एक अदद नौकरी के लिए छात्र अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार रहते हैं. बात जब सरकारी नौकरी की हो तो वे एक अदद सरकारी नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत और जिंदगी के कई साल बर्बाद कर डालते हैं. ऐसा माना जाता है कि सरकारी नौकरियां आज भी सुरक्षित भविष्य की गारंटी हैं लेकिन एसएससी की कार्यप्रणाली के बाद छात्रों का सरकारी नौकरियों पर से भरोसा उठने लगा है.

लल्लूराम डाॅट काॅम की एक्सक्लूसिव खबर में इस बात का खुलासा हुआ है. एसएससी यानि स्टाफ सेलेक्शन कमीशन. इसके जिम्मे लाखों छात्रों को नौकरी देने की जिम्मेदारी रहती है. साल में कई प्रतियोगी परीक्षाएं कराकर लाखों छात्रों को नौकरी देने वाले इस आयोग की परीक्षाओं के लिए देशभर के छात्र एड़ी चोटी का जोर लगाकर पढ़ाई करते हैं. परीक्षाओं की तैय्यारी के नाम पर गरीब और सामान्य परिवारों के छात्र अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि एसएससी जैसी सरकारी संस्था को छात्रों के भविष्य की न तो कोई परवाह है और न ही वह उन्हें नौकरी देने को लेकर गंभीर है. एसएससी की कंबाइंड ग्रेजुएट लेवेल परीक्षा जो छात्रों के बीच सीजीएल नाम से मशहूर है. हर साल हजारों छात्र सीजीएल परीक्षा पासकर सरकारी नौकरी हासिल करते हैं. एसएससी ने सीजीएल परीक्षा में करीब दस हजार पदों के लिए आवेदन मांगे थे. इन पदों के लिए परीक्षा जून 2016 में आयोजित की गई. अगस्त 2017 में चयनित छात्रों की सूची भी जारी कर दी गई. उन्हें नियुक्ति पत्र भी जारी कर दिए गए लेकिन हालत ये है कि पांच महीने बीतने के बाद भी 10,661 छात्रों को अभी तक न तो नौकरी मिली है और न ही उसके संबंध में कोई जानकारी. आलम ये है कि एक अदद नौकरी पाने की आस में अब छात्र हर दर पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा रहे हैं लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.

लाखों छात्रों ने आजमाई थी किस्मत

जून 2016 में हुई टियर 1 परीक्षा में करीब 25 लाख छात्रों ने अपनी किस्मत आजमाई थी जिनमें से करीब 35 हजार छात्रों ने मुख्य परीक्षा पास की थी और 10,661 छात्र अंतिम रूप से विभिन्न पदों के लिए सफल घोषित किए गए थे. गौरतलब है कि इस बारे में छात्रों ने कई कोर्ट केस भी एसएससी पर किए थे जिसके बाद बमुश्किल 5 अगस्त 2017 को एसएससी ने ये लिस्ट जारी की. छात्रों द्वारा जब इस सिलसिले में एसएससी से जानकारी मांगी गई तो एसएससी अधिकारियों ने उन्हें सीधा जवाब देने के बजाय टालमटोल करते रहे. थक हारकर छात्रों को कैट( केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण) की शरण लेनी पड़ी. कैट में इस मामले की सुनवाई चल रही है.

2015 के छात्रों को भी एसएससी दे चुका है नौकरी के नाम पर धोखा

2015 में एसएससी ने पोस्टल असिस्टेंट, सार्टिंग असिस्टेंट,लोवर डिवीजन क्लर्क व डाटा इंट्री आपरेटर के 3523 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे. करीब दो साल की जद्दोजहद के बाद 28 अगस्त 2017 को इन पदों के लिए चयनित छात्रों की मेरिट सूची जारी कर दी थी. इतना वक्त बीतने के बाद भी चयनित छात्रों को कोई उम्मीद या आश्वासन की किरण नहीं दिखती है. उनका भविष्य एसएससी जैसी सरकारी संस्था ने अंधकारमय बना दिया है.

छात्रों की समस्याओं को लेकर एसएससी कितना संजीदा है. इसका नमूना उस वक्त लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम को हुआ जब इस मामले पर बात करने के लिए हमने एसएससी के निदेशक मोहन लाल हीरवाल से बात करने के लिए फोन किया तो उनके पीए ने बताया कि इस बारे में वह कोई बयान नहीं देंगे. एसएससी के चेयरमैन असीम खुराना ही इस बारे में कोई जवाब दे सकते हैं. एसएससी के निदेशक ने बड़ी सफाई से गेंद चेयरमैन के पाले में डाल दी. लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम ने जब एसएससी के चेयरमैन असीम खुराना से बात करने के लिए उनके कार्यालय में संपर्क किया और इस बारे में जब उनसे बात करने की कोशिश की गई तो उनके पीए ने बताया कि साहब मीटिंग में व्यस्त हैं और अभी जवाब नहीं दे सकते. इस बारे में जब लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम ने कहा कि ये हजारों छात्रों के भविष्य से जुड़ा मामला है. एसएससी को इस बारे में कम से कम अपना रूख साफ करना चाहिए व बताना चाहिए कि किन वजहों से छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. जब चैयरमैन कार्यालय से हमारी टीम ने ये पूछा कि चैयरमैन कब बातचीत के लिए उपलब्ध होंगे तो हमें बताया गया कि ये नहीं बताया जा सकता कि वो बातचीत के लिए कब उपलब्ध होंगे. गौरतलब है कि छात्रों की भी यही शिकायत है कि एसएससी में न तो उनकी दिक्कतों की सुनवाई होती है और न ही अधिकारी उनसे मिलते हैं.

लल्लूराम डाॅट काॅम की पड़ताल में इस बात का खुलासा हो गया कि एसएससी और इसके आला अधिकारियों की बेरोजगारों को नौकरी देने की ईमानदार नीयत ही नहीं है. जिसका नतीजा है कि लाखों बेरोजगार छात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत उन सभी दरवाजों को खटखटा चुके हैं लेकिन उन्हें अभी तक न तो नौकरी मिली है और न ही न्याय. खास बात ये है कि उनकी तकलीफ सुनने वाला कोई नहीं है. इस बारे में लल्लूराम डाॅट काॅम की टीम ने कई छात्रों से बात की उन सबका साफ कहना था कि एसएससी छात्रों को नौकरी देने के लिए संजीदा ही नहीं है. वह सिर्फ नौकरी देने के नाम पर खानापूर्ति कर रहा है.