bilaspur high court

बिलासपुर। संसदीय सचिव की नियुक्ति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई. बिलासपुर हाईकोर्ट में सरकार ने अपना हलफनामा पेश किया. इसमें सरकार ने अपनी दलीलें और तथ्य रखे हैं. सरकार की ओर से महाधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री 25 जुलाई तक अपना हलफनामा देंगे. मुख्यमंत्री उनकी ओर से दिल्ली के एक वकील पेश होगें.  इस पर दूसरे पक्ष के वकील ने तारीख बढ़ाने की मांग पर आपत्ति जताई. लेकिन कोर्ट ने दूसरे पक्ष की आपत्ति को खारिज कर दिया.

याचिकाकर्ताओं ने मांगा स्टे

इस पर याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि इस मामले में जब तक कोर्ट फैसला नहीं करता तब तक संसदीय सचिवों को राज्य सरकार की तरफ से मिले अधिकारों और सुविधाओं से वंचित रखा जाए. इस पर कोर्ट ने कहा कि वो 25 जुलाई को अपना फैसला सुनाएगी. तब तक संसदीय सचिवों और मुख्यमंत्री को अपना हलफनामा देने को कहा गया है.

इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश टीबी राधाकृष्णन और न्यायधीश शरद गुप्ता की युगल खंडपीठ कर रही है. याचिकाकर्ताओ की ओर से कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े और अभ्युदय सिंह ने पैरवी की.

एक याचिका में संसदीय सचिव पद छीनने की मांग, दूसरी याचिका में विधायक खत्म करने की मांग

गौतलब है कि संसदीय सचिवों को लाभ का पद बताते हुए कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश चौबे ने याचिका लगाई है. पहली याचिका में मांग की गई है कि जिन विधायकों को सरकार ने संसदीय सचिव बनाए हैं उन्हें पद से हटाया जाए. दूसरी याचिका में मांग की गई है कि इसे ऑफिस ऑफ प्राफिट का केस मानते हुए उनका विधायकी का अधिकार भी छीन लिया जाए. याचिकाकर्ताओं ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और अलग- अलग राज्यों में इस संबंध में आए फैसलों का हवाला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि अगर किसी सांसद या विधायक ने आॅफिस आॅफ प्राॅफिट का पद लिया तो उसे सदस्यता गंवानी होगी चाहे वेतन या भता लिया हो या नहीं.

11 विधायक हैं संसदीय सचिव

सरकार ने इसी मसले पर बुधवार को अपना पक्ष रखा. हांलाकि इस मामले में मुख्यमंत्री और संसदीय सचिवों को भी हलफनामा पेश करना है. छत्तीसगढ़ में 11  विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया है. छतीसगढ में 90 सदस्यीय विधानसभा वाले राज्य में नियम के मुताबिक -15% फीसदी ही मंत्री बनाए जा सकते हैं. यानी कुल 13 मंत्री. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है. इस आधार पर मंत्री की संख्या 24 हो जाती है.

क्या-क्या मिलता है संसदीय सचिवों को

संसदीय सचिवों को मिलने वाली गाड़ी, बंगला और ऑफिस पर भी सवाल उठाए गए हैं. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि संसदीय सचिवों को मंत्रालय में अलग से कमरा, विधायक के वेतन -73 हजार रूपया महीने के  साथ 11 हजार रूपये अतरिक्त मिलते हैं. बंगले में दूरभाष की सुविधा, गाड़ी और उसका डीज़ल राजकोश से मिलता है. यही नहीं सचिवों को 1-4 के सुरक्षा गार्ड भी मिले हैं. जबकि संविधान के अनुच्छेद -102 (1) ए के तहत सांसद अथवा विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकते है. जहां वेतन भते या अन्य फायदे ले रहे हों.  अनुच्छेद -191 (1) ए जनप्रतिनिधि कानून की धारा (9) के तहत आॅफिस आॅफ प्राॅफिट में सांसदों विधायकों के अन्य पद लेने को रोकती है.

किन-किन विधायकों का पद खतरे में

  1.  राजू सिंह क्षत्रीय
  2.  तोखन साहू
  3.  अंवेश जांगडे
  4. लखन लाल देवांगन
  5. मोतीलाल चंद्रवंशी
  6. लाभचंद बाफना
  7.  रूपकुमारी चौधरी
  8. शिवशंकर पैकरा
  9.  सुनीति राठिया
  10.  चंपादेवी पावले
  11.  गोवर्धन सिंह मांझी

दूसरे राज्यों की स्थिति

ऐसा नहीं है कि संसदीय सचिवों का मसला सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित है. दिल्ली सरकार के विधायकों पर भी खतरा मंडरा रहा है. मणिपुर और पश्चिमी बंगाल की सरकारों ने कानून में संशोधन करने की कोशिश की है मगर मामला कोर्ट गया तो इसे रद्द कर दिया गया. गलत मानते हुए रद्द कर दिया. जबकि पंजाब और हरियाणा का मामला कोर्ट पहुंचा.

 

 सुप्रीम कोर्ट का अहम् फैसला

जया बच्चन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में कहा गया अगर किसी सांसद या विधायक ने आॅफिस आॅफ प्राॅफिट का पद लिया है तो उसे सदस्यता गंवानी होगी चाहे वेतन या भता लिया हो या नहीं