गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नए संसद भवन में सेंगोल (राजदंड) के स्थापना की जानकारी दी.जिस दिन संसद राष्ट्र को समर्पित होगी, उसी दिन तमिलनाडु से आए विद्वान ये सेंगोल (Sengol) पीएम को देंगे. जिसे संसद में स्पीकर के आसन के पास रखा जाएगा. 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस सेंगोल को स्वीकार किया था. अब एक बार फिर इतिहास दोहराने जा रहा है. इससे पहले हम सेंगोल से जुड़ा इतिहास आपको बताने जा रहे हैं.

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक भारत के आखरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनने से कुछ दिनों पहले पूछा था कि आप देश की आजादी को किसी खास तरह के प्रतीक के जरिए सेलिब्रेट करना चाहते हैं तो बताएं. माउंटबेटन के इस सवाल को लेकर पंडित नेहरू भारत के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व गवर्नर सी. राजगोपालाचारी (राजा जी) के पास गए. राजगोपालाचारी मद्रास के सीएम रह चुके थे, राज्य के साथ वे भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बखूबी समझते थे. उन्होंने बहुत विचार करके नेहरू जी को सेंगोल का नाम सुझाया. उन्होंने नेहरू को राजदंड भेंट करने वाली तमिल परंपरा के बारे में बताया. इसमें राज्य के महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करते हैं. परंपरा के अनुसार यह राजगुरु, थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के होते हैं.

मठ के दल को दिल्ली लाने की गई थी विशेष विमान की व्यवस्था

सी. राजगोपालाचारी ने सुझाव दिया कि आपके पीएम बनने के बाद माउंटबेटन आपको यह राजदंड स्वतंत्रता और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में दे सकते हैं. जवाहरलाल नेहरू इस पर राजी हो गए और लगे हाथ सी राजगोपालाचारी को इसकी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी दे दी. इसके बाद तमिलनाडु के सबसे पुराने मठ थिरुवदुथुराई से संपर्क किया गया. 20वें गुरुमहा सन्निथानम ने इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की. उन्होंने एक जौहरी से सेंगोल (sengol) बनाने के लिए कहा. जिसके बाद चांदी का सेंगेाल तैयार कराया गया. मठ की ओर से ही एक दल को विशेष विमान से नई दिल्ली भेजा गया, ताकि सेंगोल को लॉर्ड माउंटबेटन तक पहुंचाया जा सके.

आजादी के 15 मिनट पहले सौंपा

14 अगस्त, 1947 को आजादी मिलने से 15 मिनट पहले मठ के पुजारी ने राजदंड माउंटबेटन को दिया. इसके बाद उस पर पवित्र जल छिड़का गया. पुजारी ने वहां शैव समाज के संदत थिरुगनाना सांबंथर द्वारा लिखे भजन गाए. इस दौरान उस्ताद टीएन राजरथिनम ने नादस्वरम बजाया था. कुमारस्वामी थम्बिरन ने आधीरात में ही जवाहर लाल नेहरू के माथे पर तिलक करके उन्हें सेंगोल सौंप दिया था जो सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना.

ऐतिहासिक साम्राज्यों से जुड़ा इतिहास

माना जाता है कि सेंगोल (राजदंड) का पहला इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ईसा पूर्व) में मिलता है. इसे गुप्त साम्राज्य (320 से 550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) और विजयनगर साम्राज्य (1336 से 1646 ईस्वी) से भी जोड़कर देखा जाता है. इनके साम्राज्य में भी सेंगोल का उपयोग किया गया. ये भी माना जाता है कि मुगलों और अंग्रेजों ने भी सेंगोल का इस्तेमाल अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में किया गया था.

अब तक यहां रखा था सेंगोल

गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि अभी तक सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में था. सेंगोल के बारे में अधिकांश लोगों को जानकारी नहीं थी. ये हमारे देश की परंपरा का अहम अंग है. शासन न्याय और नीति के अनुरूप चले ये इसका भाव है.

क्या है सेंगोल ?

सेंगोल का मतलब शंख होता है. सेंगोल शब्द संस्कृत के ‘संकु’ से लिया गया है. जिसका मतलब शंख होता है. सेंगोल चांदी का बना हुआ एक दंड (डंडी) है. जिसमें सोने का वर्क किया किया गया है. इसके शीर्ष पर नंदी को विराजमान हैं. जो शक्ति, सत्य और न्याय का प्रतीक हैं. इसके नीचे कुछ कलाकृतियां बनी हुई हैं. अब तक ये नेहरू की सोने की छड़ी के रूप में जाना जाता रहा है. सेंगोल के निर्माण में शामिल और वुम्मिदी परिवार के दो सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) आज भी जीवित हैं. इसके अलावा जिन पुजारी ने पंडित नेहरू को यह सेंगोल सौंपा था, वो 28 मई को होने वाले समारोह में भी उपस्थित रहेंगे.

75 साल बाद खुद को दोहराएगा इतिहास

सेंगोल की नई वेबसाइट के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 की भावना को दोहराते हुए वही समारोह एक बार फिर 28 मई, 2023 को नई दिल्ली में संसद परिसर में दोहराया जाएगा. दिल्ली में इस अवसर पर तमिलनाडु के कई आधीनमों के प्रणेता उपस्थित रहेंगे. वे अनुष्ठान में हिस्सा लेंगे और कोलारु पदिगम गाएंगे. सेंगोल को गंगा जल से शुद्ध किया जाएगा, जैसा कि पहले किया गया था. जिसके बाद इसे प्रतीक के रूप में प्रधानमंत्री को सौंपा जाएगा.