रायपुर। शिक्षक दिवस बस कुछ ही दिन दूर है,लेकिन आज हमारी मुलाकात हुई एक ऐसे शिक्षक से,जिनकी कहानी ये बताती है कि आखिर क्यों हिन्दुस्तान में गुरु को भगवान का दर्ज़ा दिया जाता है. ये कहानी है बालोद के रहने वाले शिक्षक अरविन्द शर्मा की.
अरविन्द शर्मा जन्म से दृष्टिहीन हैं और पेशे से शिक्षक हैं. अरविन्द को उनकी शैक्षणिक कार्य के लिए राज्य सरकार पुरस्कृत भी कर चुकी है.
अरविन्द बालोद के उस स्कूल में पढ़ाने का काम करते थे,जो विशेष रूप से मूक-बधिर और दृष्टिहीन बच्चों के लिए बनाया गया है. लेकिन अब ये स्कूल बंद हो चुका है. सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए स्कूल को अनुदान देना बंद कर दिया है.पिछले दो साल से इस स्कूल को अनुदान नहीं दिया गया. लेकिन इसके बाद भी अरविन्द क़र्ज़ लेकर भी इस स्कूल को चलाते रहे. लेकिन जब कर्ज़ लाखों का हो गया तो मजबूरन अरविन्द को ये स्कूल बंद करना पड़ा.
लेकिन स्कूल के बंद के बाद भी अरविंद ने अपना शिक्षक धर्म निभाना नहीं छोड़ा. अरविन्द आज अपने ही स्कूल में पढाई कर चुकी कक्षा सातवीं की छात्रा चमेली को लेकर रायपुर पहुंचे थे. यहाँ के एक स्कूल में उसका एडमिशन कराने. क्यूंकि स्कूल के बंद होने से चमेली की पढाई पूरी तरह बंद हो गयी थी.
अरविन्द कहते हैं कि
चमेली स्कूल की सबसे होनहार छात्र रही है. जूडो में भी कई मैडल ला चुकी है और तो और सामान्य छात्रों को पछाड़ते हुए टॉपर भी रही है. ऐसे में जब मुझे पता चला की चमेली की पढाई अब बंद हो जाएगी तो मैं चमेली को अपने साथ लेकर रायपुर आ गया. ताकि यहाँ एडमिश कराकर उसकी पढाई आगे जारी रख सकूँ.
अरविन्द कहते हैं कि मै आगे का संघर्ष ऐसे ही जारी रखूँगा. जब तक सरकार मदद ना कर दे और वो स्कूल दुबारा शुरू ना हो जाए.
आपको बता दें अरविन्द एक बेहतरीन खिलाड़ी भी रहे हैं और अरविन्द को कल भी अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए मुख्यमंत्री के हाथों सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया है,