हिंदू धर्म में मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं लेकिन इनके अलावा कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जो अपने दिव्य चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं. छत्तीसगढ़ राज्य का डोंगरगढ़ मंदिर भी कुछ ऐसा ही है. मां बमलेश्वररी मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को हज़ार से भी ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. नवरात्रि में यहां पर काफी श्रद्धालु आते हैं. खास बात ये है कि यहां हवन के दौरान लाल मिर्च का इस्तेमाल होता है, इसकी वजह भी बेहद खास है.

नर्तकी और संगीतकार की प्रेम कहानी

ऐसी मान्यता है कि इस जिले के राजा कामसेन को संगीत और कला बहुत पसंद थी. उनके दरबार में कामकंदला नाम की एक बहुत ही सुंदर और अपनी कला में निपुण नर्तकी थी. उसके साथ जुगत बैठाने वाला एक संगीतकार था जिसका नाम माधवानल था. साथ काम करते-करते दोनों के बीच प्रेम हो गया था और जब राजा को ये बात पता चली तो उसने माधवानल को राज्य से बाहर निकलवा दिया.

तब माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्यय की शरण में पहुंच गए. उसने राजा विक्रमादित्या से कामकंदला से मिलने के लिए मदद मांगी. राजा विक्रमादित्यप ने राजा कामसेन को संदेश भेजा कि वो दोनों प्रेमियों को मिलने की अनुमित दें. कामसेन के इनकार करने पर दोनों राजाओं के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों ही राजा वीर योद्धा थे. एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा मां विमका कां दोनों के बीच युद्ध होते देख महाकाल और मां विमला भी अपने भक्तों की मदद करने लगीं.

मिलन का हुआ फैसला

ऐसा कहा जाता है कि युद्ध को भयंकर रूप लेते देख दोनों राजाओं के ईष्टो देवताओं ने कामकंदला और माधवानल का मिलन करवा दिया. इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने मां बम्लेश्वरी से पहाड़ी में प्रतिष्ठित होने का निवेदन किया. बस तभी से यहां पर मां बमलेश्वंरी मंदिर स्थित है और मां स्थानीय लोगों की अधिष्ठात्री देवी हैं.

हवन की अनूठी विधि

मां बम्लेश्वीरी मंदिर में हवन की विधि भी बहुत अनूठी है. यहां पर हवन सामग्री में लाल मिर्च का प्रयोग किया जाता है. किवदंती है कि लाल मिर्च शत्रुओं का नाश करती है इसलिए यहां पर हवन सामग्री में लाल मिर्च का प्रयोग किया जाता है ताकि हवन करवाने वाले व्यक्ति के सभी शत्रुओं का नाश हो जाए, अगर आप भी किसी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो देवी मां के इस मंदिर में जरूर आएं. कहा जाता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और यहां आने वाले भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. -ज्‍योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी