फीचर स्टोरी. बस्तर अब बदल ही नहीं रहा, बल्कि तेजी से बदल रहा है. 2018 के बाद का बस्तर एक नए बस्तर के रूप में स्थापित हो रहा है. बस्तर की चर्चा अब नक्सल समस्या के लिए कम, वहां के आदिवासियों के जीवन में बदलाव पर ज्यादा हो रही है. बस्तर में बदलाव की आज अनगिनत कहानियां मिल जाएंगी. अबूझमाड़ से लेकर सघन जंगल और पहाड़ तक इस बदलाव को देखा जा सकता है. ऐसे ही बदलाव की एक कहानी मंगलपुर की महिलाओं की है.

मंगलपुर गांव आज वहां की महिलाओं के लिए मंगलमय हो गया है. भूपेश सरकार की योजनाओं से गांव की महिलाओं की जिंदगी इस तरह बदलने लगी है कि अब गांव जैसे सब मंगल ही मंगल है. दरअसल कहते हैं इरादे मजबूत हो, भरपूर मेहनत और लगन हो तो फिर कठिन परिस्थितियों के बाद भी सफलता निश्चित ही है. सफलता की यही कहानी मंगलपुर गांव की महिलाओं की है.


मंगलपुर गांव जंगल और पहाड़ों के बीच बसा एक खूबसूरत गांव है, लेकिन गांव की जमीन पथरीली है. पथरीली जमीन पर खेती करना कितना कठिन होता है इसे सहज समझा जा सकता है, लेकिन मां दंतेश्वरी महिला समिति की 43 महिलाओं ने पथरीली जमीन को आज हरा-बना दिया है. पथरीली जमीन पर अब हरित क्रांति है. पथरीली जमीन पर अब पपीता क्रांति है.

सफलता की कहानी, हेमवती कश्यप की जुबानी
मां दंतेश्वरी महिला समिति की सचिव हेमवती बताती है कि सफलता की पहली कड़ी थी सुराजी योजना. भूपेश सरकार की नरवा-गरवा-घुरवा-बारी का लाभ हमें मिला. हमने बारी के तहत फल की खेती करना तय किया, लेकिन हमारे सामने शुरुआती जो चुनौती थी, गांव में पथरीली जमीन का होना. पथरीली जमीन पर खेती आसान नहीं. ऐसे में करीब 2 महीने तक हमने सिर्फ पत्थर बीनने का काम किया. पत्थर बीनने के बाद जमीन को लाल मिट्टी से समतलीकरण करने का काम हुआ.


जमीन समतीकरण के पहले पड़ाव के बाद हमने तय किया कि पपीता की खेती करेंगे. पपीता का पौधा लगाने के लिए बेड बनाये. बड़ा बेड बनाने के लिए पुनः मिट्टी डाली गई. समतीकरण के लगभग डेढ़ महीने के बाद जमीन पौधा रोपने लायक तैयार हुआ. उद्यानिकी विभाग की ओर से पपीता का पौधा प्राप्त हुआ.

हेमवती बताती है कि करीब 10 एकड़ हम पपीता की खेती कर रहे हैं. करीब 5500 पौधा का रोपण किया गया है. अब तक 300 टन पपीता का उत्पादन हो चुका है. विशेष बात यह है कि यहां इंटर क्रॉपिंग द्वारा पपीते के बीच में सब्जियां उगाई जा रही है. एशिया में पहली बार यहां उन्नत अमीना किस्म के पपीते की खेती की जा रही. ये पपीता बहुत मीठा और स्वादिष्ट होने साथ ही पोषक भरा हुआ है.


उन्होंने बताया कि हमने 10 एकड़ में 300 टन पपीता उगाकर 40 लाख रुपये का विक्रय किया. वहीं लागत निकालने के बाद करीब 10 लाख की कमाई हुई है. इसके साथ पपीता की खेती कर हमें पहली बार हवाई जहाज में बैठ दिल्ली जाने का मौका मिला. सच में आज हमारी जिंदगी भूपेश सरकार में बदल गई है.

वेदर स्टेशन और मोबाइल एप्प का उपयोग
महिलाओं की बाड़ी में एक अत्याधुनिक तकनीक का वेदर स्टेशन लगा है. जिसके द्वारा उपयुक्त तापमान, वाष्पीकरण दर, मिट्टी की नमी, हवा में नमी की मात्रा, हवा की गति, हवा की दिशा का मापन किया जाता है. इस जानकारी का उपयोग महिलाएं अपने मोबाइल में एप से सिंचाई के लिए कर रही हैं. इस तकनीक के इस्तेमाल से उत्पादकता बढ़ी है.

दिल्ली में बिक रहा बस्तर की बाड़ी का पपीता
बस्तर के दरभा ब्लॉक के मंगलपुर गांव में महिलाओं द्वारा उगाए पपीते का मीठा स्वाद दिल्ली तक पहुंच रहा है. दिल्ली की आजादपुर मंडी में पपीते की लगभग 5 टन की तीन खेप बेची जा चुकी है. जिसके 80 रुपये प्रति किलो की दर से दाम मिले हैं. ये सम्भव हुआ इन महिलाओं की हौसले और कड़ी मेहनत से.

मुख्यमंत्री ने उन्नत कृषि का किया निरीक्षण
बस्तर दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश दरभा घाटी के नीचे की जा रही पपीता की खेती को देखने के लिए पहुंचे. उन्होंने मां दंतेश्वरी महिला समिति के सदस्यों से मुलाकात की. हेमवती कश्यप से उन्होंने खेती के बारे में पूरी जानकारी भी ली. मुख्यमंत्री ने इस दौरान पपीता बारी का निरीक्षण भी किया. उन्होंने उन्नत तरीके से की जारी खेती के लिए महिलाओं को बधाई दी. दरअसल महिलाएं यहां ऑटोमेटेड ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से सिंचाई की व्यवस्था की है. इससे उपयुक्त मात्रा में ही पानी और घुलनशील खाद पपीता की जड़ों तक पहुंच रहा है. वहीं इरिगेशन सिस्टम ऑपरेटर मनीष कश्यप ने मुख्यमंत्री को बताया कि यह पूरा सिस्टम कंप्यूटरिकृत है, जिसे इंटरनेट द्वारा कहीं से भी ऑपरेट किया जा सकता है.

यहां के लोग बहुत मेहनतकश हैं: भूपेश बघेल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महिलाओं का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि तरक्की के लिए मेहनत जरूरी है, बस जानकारी और हौसले की जरूरत है. यहां के लोग बहुत मेहनतकश हैं. आपने जो सीखा है, उसे और लोगों को भी सिखाएं. मंगलपुर की ही तरह बस्तर के हर गांव के किसान ऐसी खेती कर के तरक्की कर सकते हैं.