फीचर स्टोरी. छत्तीसगढ़…आत्मनिर्भर छत्तीसगढ़ बनने की ओर अग्रसर हो चला है. विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ने वाला राज्य छत्तीसगढ़ नए आयामों को छूते हुए गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के नारे को साकार कर रहा है. यह सब हो रहा आत्मनिर्भर महिलाओं की बदौलत. उन महिलाओं के जरिए जो समूह बनाकर स्वरोजगार को प्राप्त कर रही हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर रही हैं. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाली और समूह बनाकर काम करने वाली आदिवासी महिलाओं की ये रिपोर्ट जशपुर से है.

जशपुर जो प्राकृतिक तौर पर एक समृद्ध जिला है. नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण जशपुर जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. जिले में ज्यादातर उरांव जनजाति के लोग निवास करते हैं. जशपुर जिले में पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं. इन सबके बीच जशपुर जिले की एक पहचान और भी रही है. जशपुर जिला मानव तस्करी के लिए भी बदनाम रहा है. जशपुर की आदिवासी लड़कियों को बहला-फुसला कर लोग काम के बहाने ले जाते और दूसरे राज्यों में ले जाकर बेच देते रहे हैं. इसके पीछे की एक बड़ी वजह रही है बेरोजगारी. लेकिन अब जशपुर अपने दामन से यह दाग मिटाने लगा है. सरकारी नीतियों और योजनाओं ने जशपुर के माथे से तस्करी का कलंक मिटाने का काम किया है.

इस रिपोर्ट में बात करेंगे जशपुर में सामुदायिक खेती और महिला समूहों की. भूपेश सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर जिले की आदिवासी महिलाएं स्वालंबी बन रही हैं. आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर आदिवासी महिलाओं के जीवन प्रगति और गति देने में सबसे बड़ी भूमिका रही है नरवा-गरवा, घुरवा-बारी(सुराजी) योजना की.

चंपा महिला स्व-सहायता समूह

जशपुर जिला कांसाबेल पूरे जिले में मॉडल गौठान के रूप में चर्चित है. लेकिन यहां चर्चा मॉडल गौठान में कार्यरत चंपा महिला स्व-सहायता समूह की. चंपा महिला स्व-सहायता समूह की चर्चा पूरे जिले में है. चंपा स्व-सहायता समूह की महिलाएं सामुदायिक खेती को लेकर चर्चा में हैं. रजौटी गौठान में समूह की महिलाओं को सामुदायिक खेती के लिए सुराजी योजना अंतर्गत सब्जी उत्पादन हेतु 0.400 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराया गया है.

चंपा महिला समूह को उद्यानिकी विभाग और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से प्रशिक्षण और सहयोग भी दिया गया है. समूह की ओर से सब्जी की खेती और मसाला निर्माण का कार्य किया जा रहा है. सामुदायिक खेती को उन्नतशील बनाने के लिए स्थानीय अधिकारियों की हो रही पूरी मदद की जा रही है. ड्रीप सिस्टम के तहत सिंचाई की सुविधा भी दी जा रही है.

वहीं उत्पादित सब्जियों को बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है. चंपा समूह की ओर से अभी धनिया, अदरक, बैंगन, मिर्च, आलू, हल्दी, प्याज, भिंडी, कद्दू जैसे कई सब्जियों की खेती की जा रही है. उत्पादित सब्जियों मसाला भी तैयार किया जा रहा है. धनिया मसाला, मिर्च मसाला, आदि बाजार के तौर पर प्राथमिकता में सी-मार्ट तक उत्पादों को पहुंचाया जा रहा है.

चंपा समूह की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक सब्जी का उत्पादन अच्छा हो रहा है. यहां पूरी तरह जैविक खेती जा रही है. समूह को खेती में करीब 20 हजार रुपये की लागत आई है. लेकिन इससे लाभ कई गुना अधिक हुआ है. अभी तक समूह को 1 लाख 35 हजार रुपये की आमदनी हो चुकी है.

रानी महिला स्व-सहायता समूह

कुछ ही महीनों में 51 हजार की शुद्ध आमदनी प्राप्त करने वाली रानी महिला स्व-सहायता समूह जिले में आत्मनिर्भर समूह है. चंपा महिला समूह की तरह ही रानी महिला स्व-सहायता समूह भी सामुदायिक खेती कर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है. समूह की महिलाओं को आजीविकामूलक योजनाओं से जोड़ने का काम किया गया है. समूह की महिलाएं दोकड़ा गौठान में कार्यरत हैं. गौठान के पास समूह को 0.200 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराया गया है.

रानी समूह की महिलाओं ने सामुयादिक खेती की शुरुआत 4 हजार रुपये की लागत मूल्य के साथ की. खेती में उन्होंने टमाटर, बैंगन, मिर्च, कद्दू का फसल मुख्य रूप से का उत्पादन किया. अच्छी पैदावारी होने के चलते कम समय में अच्छी आमदनी भी हो गई. समूह ने अब तक सब्जी के उत्पादन से 51 हजार रुपये की आमदनी प्राप्त कर ली है.

इसके साथ ही गौठान में संचालित अन्य आजीविकामूलक गतिविधियों का प्रशिक्षण भी समूह की महिलाओं की ओर से लिया जा रहा है. गौठान समिति के साथ स्थानीय प्रशासन की ओर पूरा सहयोग किया जा रहा है.

सहेली महिला स्व-सहायता समूह

इसी तरह से जशपुर जिले में संचालित बालाझार गौठान में सहेली महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति में देने जुटी हैं. बालाझार गौठान में कार्यरत सहेली महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं सामुदायिक खेती से जुड़ीं हैं. हरी सब्जियों के उत्पादन के साथ ही महिलाओं ने खुद के जीवन को हरा-भरा का काम किया है.

समूह की सदस्य अनिता ने बताया कि उनके द्वारा गौठान की एक एकड़ भूमि पर लौकी, करेला और तोरई सहित अन्य मौसमी सब्जी का उत्पादन करती हैं. जिससे समूह को लगभग 20 हजार की आमदनी हुई है. उन्होंने बताया कि बारी में सब्जियों का उत्पादन अच्छा हुआ है. स्थानीय बाजारों में ताजा सब्जियों की मांग भी अधिक होती है जिससे उनके सब्जियां आसानी से विक्रय हो जाते है. बाजार के अनुरूप भी सब्जियों का उत्पादन किया जाएगा. सब्जी उत्पादन के लिए उन्हें प्रशासन के माध्यम से प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया.