विधि अग्निहोत्री, रायपुर/ डब्बू ठाकुर, कोटा। बढ़ती जनसंख्या के बीच रोजगार के साधन सीमित हो रहे हैं. ऐसे में हर किसी को रोजगार मिल पाना आसान नहीं है. जहां स्वरोजगार अपनाकर अपनी किस्मत बदली जा सकती है. ऐसा ही बिलासपुर जिले के कोटा में देखने को मिला. यहां रहने वाले फेकू लाल ने डेयरी व्यवसाय में अपनी किस्मत अजमाई और कुछ ही सालों में वे सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन करने वाले किसान बन गए. आज आलम यह है कि उनकी डेयरी देखने आस-पास के गांवों के किसान उनके घर पहुंचते हैं.

साधारण कृषक परिवार में जन्मे फेकू लाल बचपन से ही अपने पिता के साथ कृषि के कार्य में हाथ बंटाते थे. परंपरागत तरीके से धान की खेती करने की वजह से बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चल पाता था. 1982 में उन्होंने 11 वीं पास की लेकिन परिवार की अच्छी नहीं होने और मां के बीमार पड़ने की वजह से वे उस वक्त आगे पढ़ाई नहीं कर सके. जो भी थोड़ा बहुत पैसा था वह मां के इलाज में खर्च हो गए. इलाज के दौरान ही मां की मृत्यु हो गई. जिसके बाद वे प्रायवेट बीए की परीक्षा देने लगे और 1986 में ग्रेजुएशन किया.

स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद वे भी खेती किसानी करने लगे. हालांकि खेती किसानी से परिवार को बहुत ज्यादा आमदनी नहीं होती थी. दूध की जरुरतों को पूरा करने के लिए हर घर की तरह उनके घर में भी गायें थी. गाय जब बीमार होती थीं तो उनके इलाज के लिए वे डॉक्टर को बुलाया करते थे. गांव वालों की तरह वे भी उन्नत किस्म के बैलों से गायों का गर्भाधान कराने के लिए पशु चिकित्सालय ले जाया करते थे ताकि पैदा होने वाली बछिया उन्नत नस्ल की हो और ज्यादा दूध दे.

पशु चिकित्सालय के डॉ संजय राज ने उन्हें डेयरी व्यवसाय शुरु करने की सलाह दी और उन्हें सरकार की योजना बताई. जिसमें पशु पालक को डेयरी व्यवसाय के लिए लोन में सब्सिडी दी जाती है. फेकू लाल ने बताया कि 2013-2014 में उन्होंने पशु पालन विभाग से लोन के लिए संपर्क किया और 5 लाख रुपए के लोन के लिए आवेदन दे दिया. 5 लाख के लोन में उन्हें 50 प्रतिशत सब्सिडी मिली जिसमें उन्हें 25 प्रतिशत नाबार्ड और 25 प्रतिशत राज्य सरकार की तरफ से मिली. उन्हें अब सरकार को ढाई लाख रुपए ही लोन चुकाना है.

लोन से मिले पैसे से उन्होंने अच्छी नस्ल की कुछ गायें और भैंस खरीदा. पशुपालन विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन में उन्होंने गायों की खानपान और देखभाल शुरु की. देखते ही देखते कुछ ही सालों में उनका डेयरी व्यवसाय फलने-फूलने लगा और गांव व आस-पास के क्षेत्रों में वे दूध की सप्लाई करने लगे. डेयरी से उन्हें अच्छी खासी आमदनी होने लगी.

इसी आमदनी की वजह से उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी से पढ़ा लिखा कर अपना सपना पूरा किया. उनका बड़ा बेटा बीफार्मा की पढ़ाई कर आज खुद का मेडिकल स्टोर चला रहा है. छोटा बेटा मैकेनिकल इंजीनिरयरिंग में पढाई कर अब बिलासपुर में रहकर पीएससी की कोचिंग कर रहा है वहीं पढ़ा लिखा कर उन्होंने दोनों बेटियों की शादी कर दिए हैं. दोनों बेटियों में बड़ी बेटी त्रिवर्षीय मेडिकल पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर आज प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में डाक्टर के पद पर पदस्थ हैं वहीं छोटी बेटी का भी मेडिकल स्टोर है.

फेकूलाल अब अपने खेतों में खेती भी कर रहे हैं वे गायों के लिए जरुरी हरा चारा को अपने ही खेतों में उगाते हैं.

फेकूलाल का कहना है कि वे आज जो कुछ भी हैं डेयरी व्यवसाय की वजह से ही हैं जिसने उनकी और उनके परिवार की जिंदगी बदल दी. डेयरी व्यवसाय से हुए आय की वजह से ही उन्होंने न सिर्फ अपना घर बनाया बल्कि अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा लिखा कर काबिल बना दिया है. फेकूलाल का कहना है कि उनकी डेयरी देखने बहुत से लोग आते हैं कई लोग तो डेयरी का काम देखकर पीछे भी हट जाते हैं.