प्रदीप गुप्ता, कवर्धा। अनेकों डिग्री हासिल करने के बाद युवा सरकारी नौकरी की तैयारियों में सालों बिता देते हैं या फिर नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या में हर किसी को सरकारी नौकरी मुहैया मिलना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में बेरोजगारी के दंश से बड़ी संख्या में युवा जूझ रहे हैं लेकिन इन सबके बीच ऐसे लोग भी हैं जो स्वरोजगार की राह अपनाकर अपना एक अलग मुकाम बना रहे हैं.
इनकी छोटी-छोटी कहानियां उन युवाओं के लिए एक प्रेरणा, एक मिसाल है जो बेरोजगारी से तंग आकर या तो गलत रास्ता चुन लेते हैं या फिर आत्महत्या जैसा कोई आत्मघाती कदम उठा लेते हैं. कवर्धा जिले का एक आदिवासी युवक कमलेश मरावी ऐसे लोगों के लिए एक बड़ा उदाहरण है.
कवर्धा जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर जेवड़नकला नाम की छोटी सी जगह में रहने वाला कमलेश मरावी पढ़ने के लिए साइकिल से कवर्धा जाया करता था.  परिवार की आर्थिक तंगी की वजह से 12 वीं से आगे नहीं पढ़ पाया. 2006 में जैसे-तैसे 12 वीं पास करने के बाद परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई. नौकरी की तलाश में कम पढ़ाई उसकी राह में एक बड़ी बाधा के रुप में सामने खड़ी हो गई.
थक हार कर कमलेश ने 2012 में नौकरी की बजाय खुद का ही व्यवसाय चालू करने का मन बना लिया और उसने जिले के महाराजपुर नामक एक कस्बे में एक छोटी सी मोबाइल दुकान चलाने लगा. शुरुआत में दुकान अच्छी नहीं चलती थी लेकिन उसने हार नहीं मानी, रिचार्ज सहित मोबाइल की छोटी-छोटी एसेसरीज उसने रखना शुरु किया. धीरे-धीरे लोग रिचार्ज कराने उसकी दुकान पहुंचने लगे. इस तरह उसकी दुकान चलने लगी और 5 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी उसे होने लगी.
इतनी छोटी से कमाई में न उसके दुकान का खर्चा निकल पा रहा था और न ही उसके परिवार का लिहाजा उसने दुकान बढ़ाने की सोची लेकिन एक बार फिर आर्थिक तंगी ने उसके कदम रोक दिए. इसी दौरान सन् 2016 में कमलेश की मुलाकात एक व्यक्ति से हुई जिसने उसे सरकार द्वारा स्वरोजगार की कई योजनाओं की जानकारी देते हुए लोन लेने की सलाह दी.
जिला मुख्यालय जाकर कमलेश ने लोन संबंधी सारी जानकारी ली और अनुसूचित जनजाति स्माल बिजनेस योजना के तहत उसने फार्म भरा. बिजनेस बढ़ाने के लिए योजना के तहत 3 लाख रुपए लोन पास हो गया. लोन मिलने के बाद उसने मोबाइल एसेसरीज के साथ ही सस्ते मोबाइल और अन्य सामान भी बेचना शुरु कर दिया.
देखते ही देखते इलाके में उसकी दुकान सबसे ज्यादा चलने लगी. आस-पास के गांव वाले भी उसकी दुकान आने लगे. इस तरह जो युवक नौकरी की तलाश में कई सालों तक दर-दर ठोकरें खा रहा था वही युवक खुद का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर हो गया. अब कमलेश प्रतिमाह औसतन 20 हजार की कमाई होने लगी.
आत्मनिर्भर हो चुके कमलेश ने धीरे-धीरे पैसों की सेविंग शुरु कर दी और अपने भाई-बहनों की शादी कर उनका भी घर बसा दिया. कमलेश के साथ पढ़ने वाले सहपाठी और उसके गांव के आस-पास रहने वाले लोगों के बीच वह लोकप्रिय हो गया है. अब लोग अपने बच्चों को उसका उदाहरण देने लगे हैं