छत्तीसगढ़ में लोकनृत्य और लोककला की परंपरा रही है. पंथी, करमा, सुआ नृत्य जैसे नृत्य की सैकड़ों विधाएं प्रदेश के गांव-गांव में मौजूद हैं. जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई. कुछ नृत्य विशेष जाति समुदाय द्वारा किया जाता है. जिसकी एक विशेष खासियत भी होती है. उन्हें में से एक है बार नृत्य. हजारों सालों से माघ माह (जनवरी-फरवरी) में आयोजित होने वाले नृत्य की खासियत है कि इस नृत्य का आयोजन 5 वर्ष के अंतराल में होता है.

बार नाचा में थिरकते हैं हजारों वनवासी

छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले कंवर जनजाति के द्वारा किया जाने वाला प्रसिद्ध पारंपरिक बार नृत्य है. कंवर जनजाति के इस बार नाचा में गांवों के किसी खुले मैदानी जगह में भीम-देवता की स्थापना की जाती है. 12 दिन के इस महोत्सव में 11 दिन देव स्थल पर तेल चढ़ाया जाता है. 12वें दिन बार राजा और बार रानी का विवाह किया जाता है. लोग स्थापित देवता की पूजा आराधना कर जीवन में सुख-शांति हेतु प्रार्थना करते हैं. पूजा करने के बाद लोग नृत्य क्रिया प्रारंभ करते हैं. Read More – Today Recipe : खिचड़ी में Try करें कुछ नया, बनाएं पौष्टिकता से भरपूर हरियाली खिचड़ी …

सामूहिक होता है भोज

इस समूह नृत्य में पूरा कुनबा एक जगह पर जुटता है. कंवर लोग विवाहित बेटियों को भी पूरे परिवार के साथ इस आयोजन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं. अंत में हर दिन एक बकरे की बलि देने के बाद सामूहिक भोज का आयोजन किया गया. आसपास के गांवों से हजारों लोगों ने भीम देवता की पूजा करने आते हैं.

जो बैल पहले छूटा वो हुआ बैगा का…

12वें दिन दो बैल गाड़ी में जोतकर छोड़ दिए जाते हैं. बैलों को बहुत हल्के तौर पर बांधा जाता है. इनमें से जो बैल पहले रस्सी खोलकर अलग हुआ, उसे बैगा को दान कर दिया गया. Read More – आज भी याद आते हैं Papa, Ranbir Kapoor ने मोबाइल के वॉल पेपर पर लगाई Rishi Kapoor की Photo …

अब नहीं दी जाती बलि, केवल रश्म होती

पहले के समय में पीढ़ी बदलने पर परिवार के मुखिया को भैंस की बलि देने की परंपरा थी. समय में बदलाव के साथ अब इस परंपरा में बदलाव हो गया है. अब बलि देने के बजाय प्रतीकात्मक रूप से कान और पूंछ को काटने के बाद उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है.