वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान,
उमड़कर आँखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान.
ये पंक्तियाँ सुमित्रा नंदन पंत द्वारा रचित हैं. पंत जी छायावादी कवी थे उनका जन्म २० मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ था. कहते हैं कि जन्म-भूमि के नैसर्गिक सौन्दर्य ने उनके भीतर के कवि को बाहर लाने का काम किया. आज इनकी 117 वीं वर्षगाँठ है.
झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भंवरा गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने. निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही. उनका संपूर्ण साहित्य ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है. जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के गन समाहित हैं.
हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण (1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से सम्मानित किया गया. सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौशानी में उनके पुराने घर को जिसमें वे बचपन में रहा करते थे, सुमित्रानंदन पंत वीथिका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है. इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है. इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है. उनका देहांत 1977 में हुआ.