सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को दिल्ली रिज क्षेत्र में बिना अनुमति पेड़ काटने के मामले में अवमानना का दोषी ठहराया है. ये पेड़ CAPFIMS पैरामिलिट्री अस्पताल तक पहुंचने के लिए सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत काटे गए थे. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक कानून के शासन वाले राष्ट्र में न्यायपालिका पर गहरा विश्वास होता है, और जानबूझकर अवहेलना करने पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. कोर्ट ने इस मामले को दो भागों में विभाजित किया: पहला, अनुमति लेने की अनिवार्यता का उल्लंघन और दूसरा, कोर्ट से जानबूझकर यह छिपाना कि पेड़ों की कटाई पहले ही हो चुकी थी. जानबूझकर जानकारी न देना न्यायिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों पर आघात करता है, और प्रतिवादियों का आचरण अवमाननापूर्ण माना गया है, जो आपराधिक अवमानना के दायरे में आता है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.कोटिश्वर सिंह की बेंच ने निर्देश दिया है कि भविष्य में पेड़ लगाने, सड़क बनाने, पेड़ काटने या किसी अन्य पर्यावरणीय गतिविधि से संबंधित सभी अधिसूचनाओं या आदेशों में इस कोर्ट के समक्ष संबंधित कार्यवाही का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्देश अज्ञानता को बचाव के रूप में इस्तेमाल करने से रोकने के लिए दिया गया है.
कोर्ट ने सुभाशीष पांडा, जो पूर्व में DDA के उपाध्यक्ष रह चुके हैं और अब DDA से जुड़े नहीं हैं, के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही समाप्त कर दी है. हालांकि, अन्य अधिकारियों पर 25,000 रुपये का पर्यावरणीय शुल्क लगाया गया है, जो किसी भी विभागीय कार्रवाई के अतिरिक्त होगा और बिना किसी पूर्वाग्रह के लागू किया जाएगा. इसके साथ ही, उनके खिलाफ एक औपचारिक निंदा भी जारी की गई है. कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि यह संस्थागत गलतियों और प्रशासनिक अतिक्रमण का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें अनुमति प्राप्त करने में विफलता, कोर्ट के आदेशों की अवहेलना और इसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय गिरावट शामिल है.
जजमेंट सुनाते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने प्रतिवादियों की कोर्ट के पूर्व निर्देशों का पालन न करने की स्वीकृति को ध्यान में रखा. कोर्ट ने यह विचार किया कि क्या आदेशों का उल्लंघन जानबूझकर और इरादतन किया गया था, और यदि ऐसा है, तो अवमानना को समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए. कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना CAPFIMS अस्पताल की सेवा के लिए बनाई गई थी, जो अर्धसैनिक कर्मियों की आवश्यकताओं को पूरा करती है. जज ने यह स्पष्ट किया कि संवैधानिक कोर्ट का दायित्व है कि वह जनहित के मामलों पर विचार करे और अपने निर्णयों में संवैधानिक नैतिकता तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करे.
अस्पताल का सड़क चौड़ीकरण अर्धसैनिक बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया था. गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच एक विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है. सैन्य कर्मियों और उनके परिवारों के लिए ऐसे संस्थानों का महत्व समझना आवश्यक है, क्योंकि ये लोग अक्सर अपनी आवाज नहीं उठा पाते. व्यापक जनहित हमारे साथ है, और अदालत ने इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं.
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कोर्ट ने निर्देश दिया है कि DDA और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) को तीन महीने के भीतर आवश्यक उपाय करने होंगे. इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जो 185 एकड़ भूमि की पहचान करेगी और इसका विवरण प्रस्तुत करेगी. समिति को एक वनीकरण योजना तैयार करनी होगी, जिसे वन विभाग अपनी देखरेख में लागू करेगा, जबकि वनीकरण का पूरा खर्च DDA द्वारा वहन किया जाएगा. इसके अलावा, DDA और वन विभाग को वनीकृत क्षेत्रों के रखरखाव पर एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. साथ ही, DDA और GNCTD को दिल्ली के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए समिति द्वारा सुझाए गए अन्य व्यापक उपायों को भी लागू करना होगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ये निर्देश अनिवार्य हैं और सभी पक्षों को समय-समय पर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. दिल्ली सरकार को संबंधित हितधारकों के साथ परामर्श करके सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लाभार्थियों की पहचान करनी होगी. इस पहचान के आधार पर, निर्माण की लागत के अनुरूप एक निश्चित शुल्क निर्धारित किया जाएगा.
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