नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने 15 मई 2018 के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी, जिसमें 1988 के रोड रेज मामले में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू पर महज 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था. रोड रेज मामले में अमृतसर निवासी व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी. अदालत ने गुरुवार को मामले की सुनवाई 20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद तक स्थगित कर दी है. जस्टिस एएम खानविलकर और संजय किशन कौल ने सिद्धू के वकील द्वारा परिचालित एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें मामले में स्थगन की मांग की गई थी.

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सिद्धू का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि मामले में एक नए अधिवक्ता को शामिल किया गया है और उन्हें देर रात मामले की सूचना दी गई थी. जैसे ही उन्होंने पीठ से मामले को 21 फरवरी के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आग्रह किया, न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि पत्र में एक बयान है कि मामले को अप्रत्याशित रूप से सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन यह पहले से ही एडवांस्ड लिस्ट में था. पीठ ने चिदंबरम से पूछा कि आप किस तारीख तक स्थगन चाहते हैं ? उन्होंने इस मामले में चार सप्ताह के स्थगन का अनुरोध किया. पीठ ने चिदंबरम से कहा कि मामले को बहुत पहले अधिसूचित किया गया था, समीक्षा याचिकाओं पर सितंबर 2018 में नोटिस जारी किया गया था, लेकिन आरोपी ने अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है.

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1988 में हुई घटना में पटियाला के शख्स की हुई थी मौत

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि दूसरे पक्ष को सितंबर में सेवा दी गई थी और पीठ से दो सप्ताह के बाद मामले की सुनवाई करने का अनुरोध किया. इस पर न्यायमूर्ति कौल ने चुटकी लेते हुए कहा कि उनके (सिद्धू) लिए दो सप्ताह महत्वपूर्ण हैं. पीठ ने लूथरा से कहा कि आप 2018 से नहीं आए हैं और अब आप चाहते हैं कि मामले की सुनवाई 2 हफ्ते बाद हो ? 2 या 4 हफ्ते तक मामले की सुनवाई नहीं हुई तो कुछ नहीं होगा. मामले में संक्षिप्त सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 25 फरवरी को निर्धारित की.

 

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को किया था रद्द

2018 में शीर्ष अदालत ने सिद्धू को यह कहते हुए छोड़ दिया था कि उनके खिलाफ गैर इरादतन हत्या के कठोर आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं. सिद्धू पर भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के तहत स्वेच्छा से चोट पहुंचाने का आरोप लगाया गया था, हालांकि उन्हें केवल एक हजार के जुमार्ने के साथ छोड़ दिया गया था. शीर्ष अदालत ने पाया था कि घटना 30 साल से अधिक पुरानी है और आरोपी और पीड़ित के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया. शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया था और उन्हें तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि सिद्धू को मेडिकल रिकॉर्ड सहित सभी सबूतों की जांच के बाद गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था.