Supreme Court On Waqf Amendment Act: मोदी सरकार के द्वारा वक्फ एक्ट में संसोधन कर लाए गए नए वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है। शीर्ष न्यायालय ने नये वक्फ कानून को बरकरार रखा है। हालांकि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की कुछ धाराओं पर तो रोक लगा दी है। इन प्रावधानों पर रोक मुस्लिम समुदाय के लिए राहत वाला निर्णय बताया जा रहा है। इस फैसले पर मुस्लिम नेताओं ने खुशी जाहिर की है तो दूसरा पक्ष भी आदेश का स्वागत कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून के मामले में फैसला सुनाते हुए  वक्फ संशोधन कानून के 3 प्रावधानों पर रोक लगाई है, जिसमें बोर्ड में 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम नहीं होंगे, 5 साल इस्लाम फॉलो करना जरूरी नहीं होगा। साथ ही कलेक्टर संपत्ति सर्वे नहीं करेंगे। कोर्ट ने इस फैसल से वक्फ कानून के मामले में सरकार और मुस्लिम समुदाय के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला कानून की संवैधानिकता पर नहीं है। अदालत ने वक्फ संपत्ति पर राजस्व से संबंधित कानून पर रोक लगा दी है। साथ ही, वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य न हों और वक्फ बोर्ड का सीईओ जहां तक संभव हो मुस्लिम समुदाय से हो, लेकिन गैर-मुस्लिम सीईओ बनाने पर रोक नहीं लगाई। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने धारा 3(आर), 2(सी), 3(सी) और 23 पर रोक लगाने का आदेश पारित किया है। इस तरह से अदालत ने कुछ मामलों में मुसलमानों को राहत दी तो कुछ मामलों में सरकार को। ऐसे में मुसलमानों को वक्फ कानून में किस पर आपत्तियाँ थीं और किस पर उन्हें राहत मिली है, आइए समझते हैं…

इन प्रावधानों पर रोक

  • सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसके अनुसार वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी होना जरूरी था। यह प्रावधान तब तक स्थगित रहेगा जब तक राज्य सरकारें यह निर्धारित करने के लिए नियम नहीं बना लेतीं हैं कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं है।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जहां तक संभव हो, वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी एक मुस्लिम होना चाहिए। कोर्ट ने इसको लेकर आदेश नहीं दिया है. बल्कि अपना सुझाव दिया है।
  • इसके साथ ही बोर्ड के कुल 11 सदस्यों में से 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे। ये भी एक राहत भरा फैसला माना जा रहा है। जबकि काउंसिल में 4 गैर मुस्लिम सदस्यों को रखने की मंजूरी दी है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, क्योंकि यह पहलू पहले के कानूनों में भी मौजूद था। न्यायालय ने कहा कि उसने अपने आदेश में इस पहलू पर ध्यान दिया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि कलेक्टर या कार्यपालिका को संपत्ति के अधिकार तय करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जब धारा 3(c) के तहत वक्फ संपत्ति पर अंतिम फैसला वक्फ ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट से नहीं हो जाता, तब तक न तो वक्फ को संपत्ति से बेदखल किया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट के फैसले तक राजस्व रिकॉर्ड में भी किसी तरीके की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यानि अब कलेक्टर के तय करने से ही ये साबित नहीं होगा कि संपत्ति वक्फ है नहीं।

ये वो तमाम प्रावधान हैं, जिनको लेकर कानून आने से ही विवाद चल रहा था। अब जबकि इन पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है तो मुस्लिम पक्ष इसे राहत के तौर पर देख रहा है।

वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले वकील अनस तनवीर ने कह कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार माना कि कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने का प्रथम दृष्टया मामला बनता है। उन्होंने सभी प्रावधानों या पूरे अधिनियम पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है। जैसे कि वह प्रावधान जिसमें कहा गया था कि आपको पांच साल तक मुसलमान होना चाहिए, उस पर रोक लगाई गई है क्योंकि यह निर्धारित करने का कोई तंत्र नहीं है कि कोई व्यक्ति पांच साल से मुसलमान है या नहीं। उन्होंने कहा कि जहां तक ​​गैर-मुस्लिम सदस्यों का सवाल है, अदालत ने कहा है कि वक्फ बोर्ड में, यह 3 से अधिक नहीं हो सकता और धारा 9 में 4 से अधिक नहीं हो सकता है,।और पंजीकरण पर, अदालत ने स्पष्ट रूप से समय सीमा बढ़ा दी है लेकिन प्रावधान पर रोक नहीं लगाई है।

‘वक्फ बाय यूज़’ पर नहीं मिली राहत

वक्फ जमीनों को लेकर जो पुराना कानून था, वह कहता था कि अगर कोई जमीन लंबे समय से वक्फ द्वारा ही इस्तेमाल की जा रही है तो उसे वक्फ का माना जा सकता है। तब अगर जरूरी कागज़ात नहीं भी होते थे, तब भी उस जमीन को वक्फ का मान लिया जाता था, लेकिन, अब जब नया कानून आया है, इसमें इस शब्द को ही हटा दिया गया है।

अगर कोई प्रॉपर्टी वक्फ की नहीं है तो उसे संदिग्ध माना जाएगा। यह तर्क नहीं दिया जा सकेगा कि क्योंकि पहले से ही इस प्रॉपर्टी पर वक्फ काम कर रहा था, तो इस पर अधिकार भी उनका ही रहेगा। मुस्लिम समुदाय ‘वक्फ बाई यूज़’ को बनाए रखने के पक्ष में था, जिसके लिए वक्फ कानून में रोक लगाने की मांग कर रहा था। कोर्ट ने इस पर कोई बदलाव नहीं किया. किसी वक्फ संपत्ति का अगर कागज़ात नहीं होगा तो वह वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

वक्फ के ढांचे पर मुस्लिम पक्ष को राहत

मुस्लिम समुदाय की तरफ से दूसरी सबसे बड़ी आपत्ति राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि पदेन सदस्यों के अलावा, केवल मुसलमानों को ही इन निकायों का प्रबंधन करने की अनुमति दी जानी चाहिए। मुस्लिमों का कहना था कि वक्फ बोर्ड और परिषद में सिर्फ मुस्लिम सदस्य होने चाहिए। मुस्लिम समुदाय की इस आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे और राज्य के लिए 3 से अधिक नहीं होना चाहिए। इस तरह, वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में सेंट्रल बॉडी में चार और राज्य में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम न हों. इस तरह वक्फ बोर्ड के ढांचे में मुस्लिम समाज का बहुमत होगा। नए कानून में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या निर्धारित नहीं थी, लेकिन कोर्ट ने इसे तय कर दिया है।

वक्फ कानून पर नहीं लगी रोक

सीजेआई जस्टिस गवई ने कहा कि सिर्फ Rarest of Rare यानी दुर्लभतम स्थिति में ही समग्र क़ानून पर रोक का आदेश दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि पूर्वधारणा हमेशा विधायिका से पारित क़ानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है। न्यायालय का हस्तक्षेप केवल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाता है। पीठ ने कहा कि हमने क़ानून के सभी प्रावधानों को देखा है। हमने बहस सुनी थी कि क्या पूरे संशोधन अधिनियम पर रोक लगाई जाए या नहीं। सीजेआई ने कहा कि वक़्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था 1923 से थी।

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