जगदलपुर. छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले के छिंदवाड़ा गांव में पादरी सुभाष बघेल के शव को दफनाने को लेकर उठे विवाद पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने ग्राम पंचायत और हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पादरी का अंतिम संस्कार इसाई कब्रिस्तान में करने का आदेश दिया है.

बता दें, इससे पहले 20 जनवरी को हुई मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गहरा दुःख जताते हुए कहा था कि, किसी व्यक्ति को किसी खास गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा हुआ है. यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति को अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों से दफनाने के लिए शीर्ष अदालत आना पड़ा, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे.

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विवाद की शुरुआत
65 वर्षीय पादरी सुभाष बघेल की 7 जनवरी को बीमारी के कारण मौत हो गई थी. उनके शव को गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति ग्राम पंचायत ने नहीं दी, जिससे यह विवाद खड़ा हो गया. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस और प्रशासन को गांव में तैनात किया गया था.

कानूनी लड़ाई
मृतक के बेटे रमेश बघेल ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया. इसके बाद मामले को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान देरी को अनुचित ठहराया और राज्य सरकार से जवाब मांगा.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा कि गांव में लंबे समय से ईसाई और हिंदू आदिवासियों के बीच इस प्रकार का कोई विवाद नहीं हुआ था, तो अब क्यों उत्पन्न हो रहा है. कोर्ट ने ग्राम पंचायत के फैसले को बनाए रखते हुए पादरी का अंतिम संस्कार मसीही कब्रिस्तान में करने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि “धार्मिक सौहार्द और परंपराओं का सम्मान सभी का कर्तव्य है. इस तरह के विवाद समाज में विभाजन का कारण बन सकते हैं, जो नहीं होना चाहिए.”

समाज को संदेश
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने धार्मिक सौहार्द और परंपराओं के महत्व को रेखांकित किया है. अब पादरी सुभाष बघेल का अंतिम संस्कार मसीही रीति-रिवाजों के अनुसार मसीही कब्रिस्तान में किया जाएगा.