फीचर स्टोरी। गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ किस तरह से गढ़ा जा रहा है अगर इसे देखना हो तो आपको गाँवों की ओर से जाना होगा. आपको मिलना होगा उन ग्रामीणों से जो गाँवों की बुनियादी समस्याओं के बीच आर्थिक संकट को लेकर चिंतित रहते थे. उन युवाओं और महिलाओं से मिलना होगा जिनके पास घरेलु काम-काज को छोड़ रोजगार का अभाव रहता था. लेकिन आज ऐसा नहीं है. आज गाँव में युवाओं और महिलाओं के पास काम है. गाँव को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने एक कारगर योजना है. एक ऐसी योजना जिससे गाँव-गाँव में सुराज आना शुरू हो गया. जिससे गाँव-गाँव में आर्थिक समृद्धि और खुशहाली है. एक ऐसी योजना जो गाँवों की दशा और दिशा दोनों को बदल रही है.

गौठानों से गांवों की आर्थिक समृद्धि का सपना साकार

यह एक ऐसी योजना है जिसे भूपेश सरकार ने सुराजी नाम दिया है. नाम के मुताबिक सुराजी से गाँवों में विकास का सूरज चमकने लगा है. योजना के अंतर्गत संचालित नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और गोधन ने आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दे दिया है. गाँव-गाँव अब देशी उत्पाद तैयार हो रहे, गाँव-गाँव अब वैश्विक बाजार खड़ा हो रहा है. केंचुआँ खाद(वर्मी कम्पोज), गैर रसायनिक उत्पाद( साबून, अगरबत्ती, दीया, सजावटी समान, आदि), जैविक खेती. गौठानों में गौठान समितियों के जरिए से आज इन सभी का संचालन हो रहा है. इन कार्यों में स्व-सहायता समूह की महिलाएं जुड़ीं हैं. एक आँकड़े के मुताबिक सिर्फ केंचुआँ खाद(वर्मी कम्पोज) का ही कारोबार करोड़ों रुपये से अधिक हो गया है.

 

गौठान समितियों और स्वसहायता समूहों को 6.72 करोड़ रूपए लाभांश

सरकार की ओर से प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्रदेश भर के गौठानों में तैयार एक लाख 17 हजार क्विंटल खाद में से अब तक71 हजार क्विंटल खाद बेचे जा चुके हैं. इस बिक्री से कुल 6 करोड़ 72 लाख रुपये का लाभांश मिला है. इस लाभांश को सरकार ने गौठान समितियों और स्व-सहायता समूहों में बांटा गया है. इसमें से तीन करोड़ 99 लाख रूपए का लाभांश गौठान समितियों के और दो करोड़ 73 लाख रूपए का लाभांश स्वसहायता समूहों के खाते में डाली जा रही हैं. बता दें कि प्रदेश में संचालित 5262 गौठानों में 4971 समूहों की कुल 50 हजार 772 सदस्य विभिन्न आजीविकामूलक गतिविधियां संचालित कर रही हैं.

रविन्द्र चौबे ने कांकेर की महिलाओं से की चर्चा

बीते दिनों रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय परिसर स्थित राज्य कृषि प्रबंधन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थान में रायपुर और महासमुंद जिले के गौठानों के अध्ययन भ्रमण पर आईं कांकेर जिले की गौठान समितियों और स्वसहायता समूहों की महिलाओं के साथ कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने बैठक की थी.

इस बैठक में रविन्द्र चौबे ने महिलाओं को जानकारी देते हुए बताया था कि पशुधन के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रदेश भर में स्वीकृत 9182 गौठानों में से अभी 5262 संचालित हैं. प्रदेश में 20 जुलाई 2020 से 28 फरवरी 2021 तक 42 लाख क्विंटल गोबर की खरीदी की गई है. इसके एवज में पशुपालकों को 84 करोड़ 17 लाख रूपए का भुगतान किया गया है. गौठानों में गोबर खरीदी का फायदा एक लाख 59 हजार पशुपालकों को मिला है जिनमें से 67 हजार 888 भूमिहीन हैं. गोबर बेचने वालों में 45 प्रतिशत महिलाएं हैं.
उन्होंने यह भी बताया कि बस्तर क्षेत्र के ग्रामीणों को कृषि गतिविधियों में नवाचार अपनाने, गोधन न्याय योजना को बेहतर ढंग से समझाने तथा उन्नत कृषि को अपनाने के लिए प्रेरित करने मैदानी क्षेत्रों के गौठानों का अध्ययन भ्रमण कराया जा रहा है. इसके लिए कांकेर, सुकमा, बीजापुर, बस्तर, कोण्डागांव, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले के गौठान समितियों और स्वसहायता समूहों के 25-25 सदस्यों को बुलाया जा रहा है.

जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने का आश्वासन

बैठक में ही कृषि मंत्री ने महिलाओं को नई गतिविधियां शुरू करने के लिए जरूरी संसाधन एवं मशीनें मुहैया कराने का आश्वासन दिया. कृषि विभाग की सचिव डॉ. एम. गीता ने भी महिलाओं की इच्छा के अनुरूप गौठानों में स्वरोजगार के नए काम शुरू करने के लिए शासन द्वारा गंभीरता से पहल करने की बात कही. उन्होंने उम्मीद जताई कि अध्ययन भ्रमण के दौरान बस्तर के सातों जिलों के गौठान समितियों और स्वसहायता समूहों के सदस्यों को बहुत सी नई चीजें देखने और सीखने को मिलेंगी.

स्व-सहायता समूहों की महिलाओं ने किया अनुभव साझा

वहीं अध्ययन भ्रमण का अनुभव साझा करते हुए कांकेर जिले से आई महिलाओं ने कहा कि गौठानों में विभिन्न तरह के स्वरोजगार की गतिविधियों को देखकर उन्हें काफी अच्छा लगा और वे अपने गौठानों में भी मछलीपालन, मुर्गीपालन, फेंसिंग पोल, फेंसिंग जाली एवं गौ-काष्ठ निर्माण जैसे काम शुरू करना चाहती हैं.

बस्तर क्षेत्र में पशुओं को खुला रखने की परंपरा है. परिणामस्वरूप वहां के ग्रामीणों द्वारा गौठान निर्माण एवं उनका संचालन नहीं किया जाता है. बस्तर में खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों, औद्योगिक एवं लघु कुटीर उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं. गौठान से प्राप्त होने वाले लाभों को बस्तर क्षेत्र के ग्रामीणों तक पहुंचाने एवं नई तकनीकों, उन्नत कृषि एवं उद्यानिकी को अपनाने के लिए प्रेरित करने हेतु बस्तर संभाग के गौठान समितियों के सदस्यों को मैदानी क्षेत्रों के गौठानों और वहां सफलतापूर्वक संचालित रोजगारमूलक कार्यों के अवलोकन एवं भ्रमण का कार्यक्रम कृषि विभाग द्वारा तैयार किया गया है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव

भूपेश सरकार की सुराजी योजना आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देखी जा रही है. योजना का सर्वाधिक फायदा आज उन ग्रामीण घरेलु महिलाओं को सर्वाधिक हो रहा, जो अभी तक सिर्फ खेती या मजदूरी की आजाविका तक सीमित थीं. ऐसी ग्रामीण महिलाओं के पास आज अपने घरेलु काम-काज के साथ स्यवं का स्व-रोजगार है. महिलाएं समूह के माध्यम से गौठान का संचालन के साथ विभिन्न तरीके के आजाविकामूलक कार्यों से जुड़ चुकी हैं. खास तौर पर गोधन न्याय योजना(गोबर खरीदी योजना) से लाभ अधिक हो रहा है. इस योजना के तहत गाँव-गाँव आज वर्मी खाद का निर्माण हो रहा है. वर्मी खाद की मांग आज बाजार में सर्वाधिक है. साथ उचित दाम भी इस खाद के मिल रहे है. यही वजह है कि करोड़ों का लाभांश आज गौठान समिति और खाद निर्माण करने वाले समूहों को हुआ है. इन स्थितियों को देखकर कहा जा सकता है कि सुराजी योजना गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के सपने को साकार करने में सबसे महती भूमिका निभा रही है.