रायपुर. इन दिनों राष्ट्रीय कांग्रेस के संचार विभाग के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला का एक वीडियो राज्य में खूब वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सुरजेवाला दमदारी के साथ बता रहे हैं कि तीन राज्यों में कांग्रेस की अपनी सरकार है, जिसमें से एक राज्य में अब दलित मुख्यमंत्री है और बाकी दो राज्यों में ओबीसी. ‘ये ही असल सामाजिक न्याय है, जो कांग्रेस ने किया है.’
ये बयान कांग्रेस के पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद आया. ये बयान जिस वक्त आया, उस वक़्त जयपुर से लेकर रायपुर तक ये चर्चा शबाब पर पंहुच गई कि अब पंजाब के बाद राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बारी है. इस लिहाज से ये बयान बेहद अहम था. चूंकि ये बयान रणदीप सुरजेवाला था जो कांग्रेस के मीडिया विभाग के सबसे प्रमुख व्यक्ति और राहुल के कोर ग्रुप के सदस्य हैं. लिहाजा इस बयान के मायने तलाशे जाने लगे. ये बड़ा सवाल था कि क्या इसे संकेत की तरह देखा जाए ? अगर गहलोत और भूपेश को कांग्रेस सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की तरह पेश कर रही है तो फिर उन्हें बदलेगी क्यों ? क्या यही संदेश देने के लिए सुरजेवाला ने बयान दिया कि कांग्रेस नेतृत्व दोनों मुख्यमंत्रियों के साथ है ? या फिर इस बयान को माइलेज लेने वाला एक राजनीतिक बयान भर था.
इस बयान में छिपे सियासी मायने को समझने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम ने कांग्रेस की सियासत को दशकों से करीब से देखने और समझने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों से बात की और इसके निहितार्थ को समझने की कोशिश की.
केंद्र की राजनीति के तमाम उठापटक को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय उलझन भरे इस माहौल के लिए आलाकमान पर सवाल उठा रहे हैं. वे कहते हैं- “सुरजेवाला के बयान से तो लगता है कि ओबीसी मुख्यमंत्री नहीं बदले जाएंगे. लेकिन आलाकमान ने क्या वादा किया था, ये भी महत्वपूर्ण है. राजनीति में कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती, अगर आलाकमान ने कोई वादा किया है और उसे नहीं निभाएगा तो वो आलाकमान कहाँ रह जाएगा.”
संतोष भारतीय कहते हैं कि स्थितियों को संभालने में आलाकमान कामयाब नहीं हो रहा है. वे कहते हैं कि आलाकमान ने पंजाब में जो कदम उठाये, उससे उठापठक समाप्त नहीं हुई है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के बारे में सुनाई पड़ रहा है कि वे नई पार्टी बना सकते हैं. लेकिन असल सवाल है कि आलाकमान राज्यों में क्या चाहता है, उसे साफ करना चाहिए !
कांग्रेस की सियासत पर बारीक नज़र रखने वाले राशिद किदवई का कहना है कि सुरजेवाला के बयान में जिन संकेतों को वे समझ पा रहा हैं, उसके अनुसार यथावत स्थिति रहेगी. उन्होंने कहा कि सुरजेवाला ने कहा कांग्रेस में दो मुख्यमंत्री है जो ओबीसी से हैं. इस वक़्त देश मे कास्ट सेंसेस की बात हो रही है, उसमें ओबीसी मुख्यमंत्री को बदलना बड़ा मुश्किल होगा.
राशिद किदवई जाने-माने स्तंभकार हैं और कांग्रेस की सियासत पर किताब भी लिख चुके हैं. राशिद आगे कहते हैं- ‘ मुझे लगता है कि हाईकमान जातीय समीकरण को साधने में लगी हुई है, क्योंकि पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी चुनाव है. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है .’
किदवई कहते हैं कि बदलाव का अगला दौर आएगा तो राजस्थान में आएगा. लेकिन ये बदलाव मुख्यमंत्री की कुर्सी का नहीं होगा बल्कि विस्तार और अगले चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा को लेकर होगा. वे कहते हैं कि सचिन पायलट चाहते हैं कि अगले चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए.
किदवई कहते हैं – ”जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है. यह यह नहीं खुला है कि राहुल गांधी किस के पक्षधर है ? टीएस सिंह देव ने दावा ज़रूर किया है. उस दावे की सुनवाई भी हुई है. लेकिन राहुल गांधी किसी निष्कर्ष पर पहुंचे हों, यह पता नहीं चला है. दूसरी बात यह है कि मुख्यमंत्री पिछड़ी जाति से है. उनको हटाने का फैसला लिया जाता है तो इसका अपना एक मैसेज लोगों तक जाता है.” इसलिए किदवई मानते हैं कि छत्तीसगढ़ का मामला कुछ और दिन उलझा रहेगा.
वहीं सुरजेवाला के इस बयान को देश के जाने-माने स्तंभकार अनिल चमड़िया स्पष्ट तौर पर भूपेश और गहलोत के पक्ष में देखते हैं. चमड़िया का कहना है- ”सुरजेवाला के बयान से शत प्रतिशत स्पष्ट है कि कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन नही करने जा रही है. कांग्रेस ने इस बात को समझ लिया है कि उसका भविष्य देश के पिछड़े और वंचित वर्ग के बीच में है और यह प्रतीकात्मक नहीं हो सकता. उसको वास्तविक ताकत देनी होगी.”
चमड़िया का कहना है – “राहुल गांधी उन पार्टियों के आधार को अपना आधार बनाना चाहते हैं जो ओबीसी और दलितों के बीच की पार्टी है. सुरजेवाला का बयान इस बात का ही संकेत है.”
वहीं छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वाले पत्रकार आशुतोष भारद्वाज सुरजेवाला के बयान पर कहते हैं – “प्रथम दृष्टया ये लगता है ये बयान इस बात का संकेत करती है कि छत्तीसगढ़ में अब सत्ता परिवर्तन की संभावना नहीं है लेकिन क्या इस बयान को छत्तीसगढ़ की राजनीति पर आलाकमान के निर्णय की तरह देखा जाए, इस बात का पता भविष्य में ही चल पाएगा.”