अभिषेक सेमर, तखतपुर। बिलासपुर के तखतपुर में प्रति वर्ष नवरात्री में चंडी मंदिर में जलने वाली ज्योति कलश की यात्रा नवमी तिथि में निकलती है. इस वर्ष भी इसी चैत्र नवरात्रि में जलाए गए ज्योति कलश की विसर्जन यात्रा चंडी मंदिर से निकलकर देवांगन पारा और सदर बाजार होते हुए निकली. काली बाड़ी के बम बम घाट में जाकर विसर्जित हुई. इस वर्ष चंडी मंदिर में कुल 300 ज्योति कलश जलाए गए थे, जिनमें से 15 घृत ज्योति कलश थे.

तखतपुर के देवांगन मोहल्ले में स्थित चंडी मंदिर में वर्ष के दोनो नवरात्रियों में श्रद्धालुओं द्वारा बड़ी संख्या में ज्योति कलश जलाए जाते हैं. दोनों नवरात्रियों के ज्योति कलश की भव्य विसर्जन यात्रा नवमी तिथि को निकलती है. नवरात्रि में निकलने वाली इस कलश यात्रा में वास्तव में शक्ति और भक्ति का संगम देखने को मिलता है.

नगरवासी जगह-जगह ज्योति कलश की पूजा अर्चना करते हैं, जिससे जैसी व्यवस्था बन पड़ती है. वैसी सेवा करते है. छोटी छोटी बच्चियों को सिर पर कलश उठाये देखना मन में मां के प्रति श्रद्धा और विश्वास भर देता है. इस तरह नगर में यह कलश यात्रा नवरात्रि में शक्ति की भक्ति में डूबे हुए लोगों में असीम उत्साह का संचार कर देता है.

राजा तखत की कुल देवी है चंडी मां
तखतपुर में शक्ति के दो केंद्र है जिनमें एक तखतपुर की मां महामाया और दूसरी चंडी मंदिर में विराजित मां चंडी है. कहा जाता है कि चंडी देवी तखतपुर के राजा तखत के कुल देवी है. माँ चंडी से जुड़ी कहानी के अनुसार एक बार तखतपुर में भयंकर बीमारी फैल गयी.

बीमारी के कारण लोग मरने लगे तो माँ चंडी ने सपना देकर बताया कि जंगल में इमली पेड़ के नीचे बैठी हूँ. मेरी सेवा करो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. लोगों ने जाकर देखा तो माँ चंडी इमली पेड़ के नीचे थी. लोगों ने उनका मंदिर बनाकर सेवा करना शुरू किया तो बीमारी अपने आप दूर हो गयी. तब से चंडी माता को सिद्ध शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाने लगा. ज्योति कलश की परम्परा 45 से 50 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी जो एक ज्योति कलश से आज के वर्ष तक 300 तक पहुंच गया है.

कहां से मिलती है शक्ति
ज्योति कलश की यात्रा की दूरी वैसे तो कुल दो से ढाई किलोमीटर का ही पड़ता है. लेकिन इन दो -ढाई किलोमीटर की दूरी को तय कर विसर्जित करने में 6 से 8 घंटे लग जाते हैं. इस यात्रा के दौरान कलश उठाने वाली कन्या को न कहीं आना जाना होता है न किसी प्रकार के नित्य क्रिया कर सकती है. केवल कुछ क्षणों के लिए कलश उठाकर सिर के ऊपर रखे कपड़े की गूढरी को ठीक किया जा सकता है.

कलश की यात्रा को देखने वाले इसी सोच में रहते हैं कि कलश उठाने वाली इन कन्यायों को इतनी शक्ति कहाँ से मिलती है, क्योंकि कलश उठाने वाली लड़कियों की उम्र 6 साल से लेकर 18 साल तक की होती हैं. वही कन्याएं इन कलश को उठा सकती हैं. इन छोटी छोटी बच्चियों के चयन इनके माता पिता के द्वारा ही कलश उठाने के लिए किया जाता है.

सामान्यतः कलश को उसी घर की कन्याएं उठाती है, जिन्होंने कलश जलवाया है. लेकिन कभी कभी कलश जलवाने वाले किसी और को भी कलश उठाने दे देते हैं. कलश उठाने के लिए इतना उत्साह और इतनी श्रद्धा होती है कि एक तरह से बुकिंग चलती है, जिसको कलश उठाने को मिलता है. वह अपने आप को भाग्यशाली समझता है.

एक बार कलश लेकर पंक्ति में चली गई तो विसर्जन पश्चात ही पंक्ति से निकले मिलता है. मतलब यह कि 6 से 8 घंटे बाद ही पंक्ति से निकलना होता है. इस बीच संयम शक्ति और क्षमता कहां से मिलती है, यह तो उठाने वाले ही जानें. निश्चित ही यह शक्ति माँ की ही कृपा होती है, जो यात्रा किसी भी मौसम और परिस्थितियों में एक भी कलश बिना बुझे अपनी विसर्जन यात्रा पूर्ण कर लेती है. शायद यही कारण है कि तखतपुर के लोगों का विश्वास और श्रद्धा माँ चंडी के ऊपर अगाध रूप से बना हुआ है.