कुमार इंदर, जबलपुर। International Women Day: इनसे मिलिए.. ये हैं तारा बाई। 65 की उम्र पार कर चुकी हैं लेकिन काम और सेवा भाव के प्रति इनका समर्पण देखते ही बनता है। ताराबाई को रेलवे अस्पताल से रिटायरमेंट हुए करीब 5 साल बीत चुके हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी अस्पताल में अपनी सेवाएं बिल्कुल निशुल्क दे रही हैं। निशुल्क सेवा भी ऐसी की रेगुलर ड्यूटी करने वाले भी ना दे पाए। ताराबाई हर दिन अस्पताल में सुबह से शाम तक सेवाएं देती है। यही नहीं ताराबाई ने अस्पताल के पीछे ही अपना आशियाना बनाया हुआ है, जिसे जब चाहे जैसी सेवा हो ताराबाई उसके लिए हमेशा उपलब्ध होती हैं।

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ताराबाई का कहना है कि दूसरों की सेवा ही उनका जिंदगी जीने का उद्देश्य है। ताराबाई यही संदेश दूसरों को भी देना चाहती हैं, उनका कहना है कि अपने लिए तो सभी जीते लेकिन दूसरों के लिए जीना ही जिंदगी है।

कहां जाता है जिसका सब कुछ उजड़ जाए वो जीने की उम्मीद छोड़ देता है, लेकीन ताराबाई का सबकुछ मिटने के बाद भी दूसरों के लिए जी रही है। ताराबाई के तीनों बेटे इस दुनिया में नही है लेकिन ताराबाई ने अपना सबकुछ मिट जानें के बाद भी वो दूसरों के लिए जी रही है।

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अस्पताल में नहीं आने पर मरीजों को खलती है कमी 

ताराबाई का सेवा का आलम यह है कि जिस दिन वह अस्पताल नहीं पहुंचती है। उस दिन अस्पताल के स्टाफ से लेकर डॉक्टर यही नहीं मरीजों को भी उनकी कमी खलने लगती है। ताराबाई के ना होने से पूरे अस्पताल के जुबान पर सिर्फ एक ही नाम गूंजता है वह है ताराबाई।

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आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी के लिए किसी के पास भले ही वक्त ना हो लेकिन ताराबाई दूसरों के प्रति सेवा भाव देने वाली मिसाल है। ताराबाई का कहना है कि दूसरों की सेवा ही उनका जिंदगी जीने का उद्देश्य है। ताराबाई यही संदेश दूसरों को भी देना चाहती हैं, उनका कहना है कि अपने लिए तो सभी जीते लेकिन दूसरों के लिए जीना ही जिंदगी है।

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