इसमें उन्होंने लिखा है….मेरी दिल की बात शृंखला के तहत इस बार प्रस्तुत है, “लालू परिवार और मीडिया का रोजगार”
”लालू जी और उनके परिवार से मीडिया घरानों व उनके ‘कॉरपोरेट’ कर्मियों का विशेष लगाव किसी से छुपा नहीं है। यह उसी प्रकार का लगाव है जिस तरह का भाजपा का लगाव है लालू जी से। दुःखती नब्ज़ वाला अहसास! ना पसन्द किया जाए और ना नज़रअंदाज़ किया जाए! सौतेला व्यवहार बताना, इसे कमतर करने के बराबर माना जाएगा।
बिहार में ना जाने कितने पत्रकारों की नौकरी ही लालू जी के नाम पर चल रही है? लगभग चार दशक से लालू जी राष्ट्रीय राजनीति के मज़बूत स्तम्भों में से एक रहे हैं। और यह बात किसी को पसन्द हो या ना हो, देश की राजनीति में निर्विवाद रूप से शीर्षतम नेता बने हुए हैं। चाहे केंद्र या राज्य में सत्ता से दूर रहे या हिस्सा बने रहे किन्तु प्रासंगिकता और प्रसिद्धि में कभी कोई कमी नहीं आई। कभी उन्हें गवाला तो कभी चुटीले और मज़ाक़िया अंदाज़ के लिए मसखरा बताया गया। इसपर भी जब दिल ना भरा तो हर छोटी-मोटी असफलता पर राजनैतिक अंत की गाथा सुना दी गई। पर हर बार पूर्वाग्रह पीड़ितों को खून का घूँट पीना पड़ा। कभी रेल मंत्री के अपने कार्यकाल से आलोचकों को पानी भरने पर मजबूर किया तो बार-बार दर्ज की गई अपनी वापसी से विरोधी के छाती पर साँप लोटवा दिया। बड़े-बड़े भाजपाई तुर्रम खान उनके समर्थन और जनाधार पर सेंध मारने का सपना संजोते रह गए, पर हर बार मुँह की खाई।
सामाजिक न्याय के अपने संघर्ष से जिस ऐतिहासिक सामाजिक बदलाव की उन्होंने नींव रखी, वह क्रांतिकारी था। समाज के बड़े किन्तु दबे वर्ग का शांतिपूर्ण ढंग से जागरण अपने आप में एक उपलब्धि है। पर हर उल्लेखनीय उपलब्धि और कार्यों को छुपा पर नकारात्मक पहलू कहीं से भी पैदा सामने कर देने की कवायद भाजपा समर्थित मीडिया खूब पहचानता है।
लालू जी सच्चे गौ पालक हैं, गौ सेवक हैं। किंतु दूसरों को इसी बात पर महिमामण्डित करने वाली मीडिया ने कभी लालू जी की इस बात पर प्रकाश नहीं डाला। शायद गौ पालक वर्ग से आने वाले इस नेता की संभ्रांत वर्ग के गढ़- राजनीति में बहुसंख्यक समर्थन से उथल पुथल मचा देना आज भी लोग पचा नहीं पाए हैं। आडवाणी के रथ को रोककर देश को साम्प्रदायिक आग से बचाने वाले इस नायक को कभी अपेक्षित श्रेय नहीं मिला। लालू जी सच्चे उपासक हैं और अत्यंत धार्मिक भी। हर पर्व, त्यौहार को पूरी श्रद्धा से मनाते हैं। पर कभी उन्हें एक सच्चे धार्मिक हिन्दू की छवि से नहीं नवाज़ा गया। क्या दूसरे धर्मों के धर्मावलम्बियों पर आग उगलना ही आपको सच्चा हिन्दू कहलवा सकता है? छठ पूजा पूरा परिवार पूरी तल्लीन होकर मनाता है, जिसपर पूरे सूबे की नज़र होती है। पर जैसे वह किसी और धर्म का पर्व हो, धर्म के प्रति समर्पण और श्रद्धा को उजागर ही नहीं किया जाता है। बिहार के हँसी, ठिठोली और गीत संगीत वाली लोक लुभावन होली को लालू जी ने ही राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया। लालू जी के घर ही पूजा उपासना के लिए मंदिर है, पर मीडिया ने कभी दिखाया? हाँ, पर योगी जी की गाएँ कुल कितने किलो गोबर करती है, किस रंग का गोबर करती है। यह मीडिया कर्मी को कंठस्थ है! तेज प्रताप जी शिरडी, वृन्दावन, विंध्यवासिनी या मथुरा जाते हैं तो उसे तीर्थाटन के बजाय सैर सपाटा घोषित कर दिया जाता है, पर यही काम जब मोदी या योगी करते हैं तो मीडिया के मुख से ऐसे मोती बरसते हैं कि जैसे ईश्वर की उपासना करने स्वयं ईश्वर के अवतार ही पधारे हों।
लालू जी हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन हज़ारों गरीबों को भोजन करवाते हैं, पर सिर्फ मेहमान नेताओं के फुटेज पर ही कैमरे अटक जाते हैं। लालू जी से जुड़े हर सकारात्मक पहलू को छुपा देने या नज़रअंदाज़ करने की कोशिश होती है। कुरेद-कुरेद कर छोटी छोटी बातों को बड़ा करके सनसनी पैदा की जाती है, नकारात्मक बनाया जाता है। पूर्वाग्रह से विवश, विरोधियों के अनर्गल आरोपों को ही अपनी भाषा बनाया जाता है, जाँच से पहले ही घोटाला शब्द जोड़ दिया जाता है। और जाँच में कुछ नहीं मिलने पर माफ़ी मांगने का शिष्टाचार भी नहीं दिखाया जाता है। उल्टे जाँच की विश्वसनीयता पर ही दबी ज़बान शंशय पैदा की जाती है।
अगर लालू परिवार से कोई प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवाएगा तो कहा जाएगा कि जनता को लचर स्वास्थ्य व्यवस्था पर आश्रित छोड़ खुद निजी अस्पताल में इलाज करवाते हैं। और सरकारी अस्पताल में इलाज करवाते हैं तो कहते हैं सरकारी तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है, ढोंग हो रहा है! जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध प्रोटोकॉल के मुताबिक सरकारी चिकित्सकों की सलाह ली जाती है तो हो हंगामा मचाया जाता है। अर्थात लालू परिवार कहीं इलाज ना करवाए। चित भी मेरी, पट भी मेरा! मार खा लिए तो सहनशीलता का ढोंग, पलटवार किया तो हिंसक रवैया।
अरे बीजेपी समर्थित मीडिया के लोगों, कितनी घृणा और पूर्वाग्रह पालिएगा? अगर वंचित और बहुसंख्यक समुदाय का उत्थान इतना कचोटता है तो सीधे मुद्दे पर आघात कीजिए, खुले में आइये, अपने पारम्परिक वैमनस्य और श्रेष्ठता की भावना को स्वीकारिए और बदल दीजिए अगर बदलने की ताकत हो तो! यह दुष्प्रचार का छद्म युद्ध बन्द कीजिए और अपने पूर्वाग्रह पीड़ित दोहरे रवैये पर गोल-गोल बातें छोड़ सीना ठोककर बहुजन समुदाय को ललकारिये। पर कम से कम बीजेपी हाथों बिकने के बाद अपने आपको लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मत कहिए! भाजपा की चरण वंदना और चाकरी करने से आप अपने ही पेशे को नुक़सान पहुँचा रहे है। लालू का ना कुछ बिगड़ा है ना बिगड़ेगा। लाखों करोड़ ग़रीब लोगों की दुआएँ और आशीर्वाद उनके साथ है।”