लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद। बालोद जिले के अंतिम छोर महामाया मंदिर में श्रद्धा के फूल चढ़ाने श्रद्धालुओं का हुजूम लगने लगा है. आसपास ही नहीं बल्कि दूर-दराज से लोग माता के दरबार में अपनी मनोकामना लेकर आस्था लेकर श्रद्धा के फूल चढ़ाने पहुंच रहे हैं.

जिले के अंतिम छोर व महामाया माइंस क्षेत्र के पहाड़ों में लगभग डेढ़ सौ फीट ऊपर इस मंदिर व प्राकृतिक मनोरम दृश्य को देखने लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. मान्यता के अनुसार, नि:संतान दंपती माता के दरबार में संतान प्राप्ति के लिए श्रद्धा के फूल चढ़ा माथा टेकते हैं, तो माता सहजता से उनकी मन्नतें पूरी करती है. इसके अलावा श्रद्धालु अपने हर अच्छे कार्य की शुरुआत माता के मंदिर में माथा टेक कर करते हैं.

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बड़े-बुजुर्गों की कथा के अनुसार, पहाड़ी में विराजमान मां महामाया देवी का उद्गम धरती से हुआ है, जिन्हें स्वयं भगवान विश्वकर्मा द्वारा माता का स्वरूप दिया गया है. हालांकि, मंदिर समिति के पुजारी व सालों से मंदिर की देखरेख कर रहे शख्स का कहना है कि यह मंदिर का निर्माण कब और कैसे हुआ इसके बारे में आज तक कोई नहीं बता पाया.

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मंदिर की विशेषता यह भी है कि मुख्य मंदिर वर्षों पुराना और इनका छत व दीवार पत्थरों से बना हुआ है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, आज भी मंदिर समिति के लोग पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. नवरात्रि के दोनों इस मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा 501 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए जा रहे हैं. पंचमी के बाद से यहां भक्तों की अत्यधिक भीड़ रोजाना लगना शुरू हो जाता है.

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