जयपुर. पौष कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होने वाला पौष बड़ा महोत्सव की शुरुआत 9 दिसंबर से हो गई है. इस महोत्सव को लक्खी पौष बड़ा के नाम से भी जाना जाता है. पौष बड़ा महोत्सव एक ऐसा उत्सव है जो पौष महीने में राजस्थान के विभिन्न शहरों में सर्दियों के दौरान ठंड के स्वागत में मनाया जाता है. पौष बड़ा नाम में दो शब्द है- पहला पौष हिंदू पंचांग का माह है और दूसरा बड़ा अर्थात दाल का नमकीन बड़ा या पकोड़ों.

महोत्सव का इतिहास

जयपुर में पौष बड़ा सबसे पहले घाट के बालाजी में बद्रिकाश्रम के महंत बद्री दास के सानिध्य में लखी पौषबड़ा महोत्सव सन् 1960 से मनाया गया था. जिसमें बड़ी संख्या में आम आदमी पंगत प्रसादी पाते थे. अब कई शहरों में आयोजित किया जाता है. इस त्यौहार को मनाने के लिए लोग पौष माह के किसी भी दिन का चुनाव अपनी सुविधानुसार करते हैं. अपने आराध्य देव को दाल के बड़े और गर्म हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इसके बाद सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करते हैं. Read More – हमारे दांतों को कमजोर करके नुकसान पहुंचाती हैं ये चीजें, नियमित खाने से करें परहेज …

पौष मास में दान का विशेष महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष मास दान करने के लिए बहुत अ’छा माना जाता है. “पौष बडा” में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ग्रहों से संबंध है जैसे शनि का तेल से, मिर्च का मंगल से, जीरा और धनिया का बुध ग्रह से, गेहूँ का चंद्रमा और पृथ्वी से और शक्कर का शुक्र से संबंध है. जब इन ग्रहों की ऊर्जा आदमी को मिलती है तो शीतकाल में ‘पौष’ प्राण संचारित होता है. हमारी संस्कृति में कोई भी आहार प्रसाद के रूप में बनाया जा सकता है. इसलिए सर्दी में भगवान को उष्मा पैदा करने वाली सामग्री अर्पित की जाती है यह प्रतीकात्मक है. Read More – 55 साल की उम्र में 20 का दिखता है ये Model, Physique देख हैरान हैं लोग, ऐसे रखते हैं खुद Fit …

ऋतुकाल के अनुसार भगवान का प्रसाद और परिधान बदल जाता है शीतकाल में प्रभु को सौंठ, अजवाइन और तिल से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस महोत्सव के दौरान महिलाएं मंदिर प्रांगण में भजन गाती है. नृत्य भी किया जाता है. भोग में दाल के पकौड़ों का भोग लगा कर आरती की जाती है.