भारत में दिए जाने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न, पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इन सम्मानों को किसी भी पुरस्कार विजेता के नाम के आगे या पीछे लिखना कानून के खिलाफ है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि भारत रत्न, पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे नागरिक सम्मान कोई उपाधि (टाइटल) नहीं हैं। ऐसे में इन्हें किसी के नाम के आगे या पीछे नहीं लगाया जा सकता है। हाईकोर्ट ने साफ किया कि ये सम्मान किसी तरह की उपाधि नहीं हैं और इनका इस्तेमाल नाम के हिस्से के रूप में नहीं किया जा सकता. दरअसल, यह टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन की पीठ ने एक सार्वजनिक ट्रस्ट से जुड़े विवाद की सुनवाई के दौरान की. इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था इस नियम को नजरअंदाज नहीं कर सकती.
कोर्ट ने यह बात बुधवार को एक याचिका के केस टाइटल में पद्म श्री लिखे जाने पर की। दरअसल जस्टिस सोमशेखर सुंदरेसन की बेंच याचिका की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के समय अदालत की नजर याचिका के शीर्षक पर पड़ी, जहां एक पद्म श्री पुरस्कार विजेता का नाम “पद्म श्री डॉ. शरद एम. हर्डीकर” के रूप में दर्ज था. इसमें 2004 में पद्म श्री से सम्मानित डॉ. शरद मोरेश्वर हार्डिकर भी एक पक्षकार थे। केस टाइटल में उनका नाम पद्म श्री डॉ. शरद मोरेश्वर हार्डिकर लिखा गया था। इस पर जज ने आपत्ति जताई। साथ ही कहा कि कानून के अनुसार ऐसा करना गलत है।
हाईकोर्ट ने 1995 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि पद्म पुरस्कार और भारत रत्न उपाधि नहीं हैं और इन्हें नाम के आगे या पीछे इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस सुंदरेसन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सभी पर लागू होता है। इसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने निर्देश दिया कि आगे की कानूनी कार्यवाही में सभी पक्ष और अदालतें इस नियम का पालन करें।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में अदालती कार्यवाही के दौरान सभी पक्ष इस नियम का सख्ती से पालन करें. साथ ही निचली अदालतों को भी यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि उनके रिकॉर्ड में किसी व्यक्ति के नाम के साथ पद्म या अन्य नागरिक सम्मान न जोड़े जाएं.
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