गरियाबंद. कलेक्टर की सवेदनशीलता से एक बच्चा फिर से हसने खेलने लग गया. जिस बेटे के इलाज के लिए मां-बाप ने बर्तन-जेवर बेच दिए थे. यहां तक की जब उन्हें और पैसों की जरूरत थी तब वे सरकार से मिली जमीन को बेचने के लिए कलेक्टर से अनुमती भी मांगी. बस यहीं से उस बच्चे को कलेक्टर नम्रता गांधी की पहल पर सरकारी खर्च से इलाज मिल गया और वह फिर से हसने खेलने लगा.

देवभोग के सुकलीभांठा पुराना में रहने वाले किसान अर्जुन दुर्गा के घर उस समय आफत आ गई थी जब उसका 16 साल का बेटा देवा गंभीर बीमारी का शिकार हो गया. पिता ने 6 महीने तक निजी अस्पतालों के चक्कर काट कर इलाज पर अपनी सारी जमा पूंजी गंवा डाली. अर्जुन ने पत्नी के जेवर और घर मे रखे कांसे के बर्तन तक बेच दिए. इतने इलाज के बाद भी बच्चे का घाव ठीक नहीं हो रहा था. ऐसे में बड़े अस्पताल जाने के लिए अर्जुन ने फरवरी में सरकार से मिली जमीन को बेचने के लिए कलेक्टोरेट में आवेदन लगाया.

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कलेक्टर की पड़ी नजर

पिता की इस फरियाद पर कलेक्टर की नजर पड़ते ही स्वास्थ्य विभाग को समुचित उपचार के लिए निर्देश जारी किया. मामले को बकायदा समय सीमा बैठक में लेकर उसका फॉलोअप भी कलेक्टर लेती रहीं. उनके निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने 12 फरवरी को बच्चे का इलाज शुरू कर दिया. 14 फरवरी को देवा को एम्स रायपुर में भर्ती कर गहन इलाज शुरु कर दिया गया. 16 अप्रेल को देवा जब अपने घर ठीक होकर लौटा तो परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं था. पिता अर्जुन दुर्गा ने कलेक्टर नम्रता गांधी और स्वाथ्य अमले के प्रति आभार व्यक्त किया है. पिता ने कहा कि महिला अफसर के ममता का ही असर था कि आज मेरा बेटा ठीक हो गया.

दो महीने चला इलाज

सीएमएचओ एनआर नवरत्न ने बताया कि देवा को गंभीर स्किन डीजीज था. उसे पेमीफिजियस वेलगरियस नाम की बीमारी हो गई थी. शरीर में कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां घाव का निशान होना बाकी था. कपड़ा भी नहीं पहन सकता था. अर्जुन ने अपने बेटे को उस दरम्यान कभी भी सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भी नहीं लाया था. सीएमएचओ ने बताया कि जैसे ही हमें पता चला उसे एम्स में भर्ती कर निशुल्क उपचार दिया गया. 4 मई को फॉलोअप के लिए उसे फिर से एम्स ले जाया जएगा. फिलहाल देवा ठीक हो गया है.