दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने जमानत की शर्त के रूप में लाइव लोकेशन साझा करने के निर्देश को अवैध ठहराते हुए इसे रद्द कर दिया है। मामले में ट्रायल कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत मिलने के बाद गूगल के माध्यम से अपनी लाइव लोकेशन जांच अधिकारी के साथ साझा करने का आदेश दिया था। इसके विरुद्ध आरोपी वर्धमान डिवेलपर्स के निदेशक हरिंदर वशिष्ठ ने शर्त में संशोधन की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसी शर्तें नागरिक की निजता का गंभीर उल्लंघन हैं और इन्हें लागू नहीं किया जा सकता।

जस्टिस विकास महाजन की एकल पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में फ्रैंक वाइटस बनाम एनसीबी मामले में स्पष्ट किया था कि आरोपी की लाइव लोकेशन को लगातार ट्रैक करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। ऐसा निर्देश संविधान के आर्टिकल 21 के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अदालतें ऐसा आदेश नहीं दे सकतीं जिसके तहत पुलिस किसी व्यक्ति की हर समय निगरानी कर सके। इसी सिद्धांत के आधार पर हाई कोर्ट ने माना कि जमानत की शर्त के रूप में 24 घंटे ट्रैकिंग का प्रावधान भी असंवैधानिक है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि जांच एजेंसियों को भी किसी व्यक्ति के निजी जीवन में 24 घंटे हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने यह भी माना कि जमानत देते समय आरोपी को कुछ हद तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी जानी आवश्यक है। कम से कम उसके निजी समय और गतिविधियों को साझा करने के लिए उसे बाध्य करना उचित नहीं है और न ही यह संवैधानिक मानकों पर खरा उतरता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस महाजन ने कहा कि इस प्रकार की जमानत शर्तें व्यक्ति की स्वतंत्रता को इतने स्तर तक सीमित कर देती हैं कि जमानत, व्यवहारिक रूप से, कैद का रूप ले लेती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी शर्तें न केवल आधारहीन हैं बल्कि जमानत को सजा जैसा बना देती हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। इन्हीं टिप्पणियों के साथ हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया।

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