रायपुर. 2 अप्रैल के बंद पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के एट्रोसिटी एक्ट संबंधी निर्णय पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय ले लिया है, और न्यायालय के फैसले का हम सम्मान करते हैं. हमारी पार्टी के चिंतन में दलित हित व अनुसूचित जनजातियों की सम्पूर्ण सुरक्षा प्राथमिकताओं में है. परन्तु यह बात समझ में नहीं आती कांग्रेस का समर्थन कल के बंद को किस बात के लिए है.

यह बात समझ से परे है कि कांग्रेस का वर्ग विशेष को समर्थन है या न्यायालय के आदेश को आधार बनाकर भाजपा के खिलाफ वर्ग विशेष को भड़का रही है. हर मुद्दे पर छींटाकशी करने को ही विपक्ष धर्म समझने वाली कांग्रेस पार्टी परिपक्वता का परिचय देने के बजाय हल्लाबोल की ओछी राजनीति वाले रास्ते में है.
देश भर में 60 से अधिक वर्षों तक सत्ता सुख भोग चुकी कांग्रेस पार्टी यह भूलते जा रही है इसीलिए जनता ने इन्हें विपक्ष के लिए आवश्यक सीटों की संख्या से भी वंचित कर दिया. दलित, चिंतन, पिछड़ों व वर्ग विशेष के प्रति सोच या सौहार्द्रता जैसी बातें इनके लिए प्रोपेगंडा है.

यह कांग्रेस का इतिहास देखने में साबित हो जाएगा. अनुसूचित जाति-जनजाति को सिर्फ वोट बैंक समझकर उसका उपयोग करने वाली पार्टी ने एक परिवार को खुश करने के लिए अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी को कुर्सी से ढकेल दिया था. अनुसूचित जनजाति वर्ग या जाति विशेष के लिए कभी भी कांग्रेस ने कार्य नहीं किया परन्तु आवाज जरूर उठाती है, जब अन्य कोई दलित हित का निर्णय ले ले. भाजपा ने दलित वर्ग से जब राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना, कांग्रेस ने विरोध किया, राष्ट्रपति चुना कांग्रेस ने विरोध किया.

जब जब देश में दलित व अनुसूचित जनजाति हितैषी निर्णय लिए जाते हैं, कांग्रेस विरोध करती है, इससे उनकी हताशा स्पष्ट दिखती है. आज के समय में भी जब विकास को जनता मुहर लगा रही है. कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन कर रही है, गुजरात में पाटीदारों को भड़का रही है, कहीं मुस्लिम तुष्टिकरण तो कही दलित कानून सरोकार किसी से नहीं है. देश की जनता कांग्रेस के इस दोगलापना को अच्छे से समझ रही है. बंद के समर्थन में कूदने वाली कांग्रेस पार्टी पहले स्पष्ट करे उनका वर्ग विशेष को समर्थन है, या न्यायालय के निर्णय की आड़ में भाजपा का विरोध या फिर लगातार हार का आक्रोश.