मुल्ला मुनीर को असीमित ताकत मिलने के कारण अब पाकिस्तान की न्यायपालिका गहरे संकट में है। शनिवार (15 नवंबर 2025) को लाहौर हाई कोर्ट के जज जस्टिस शम्स महमूद मिर्जा ने 27वें संविधान संशोधन के विरोध में इस्तीफा देकर इस संकट को और बढ़ा दिया। इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि वो इस संविधान संसोधन के बादईमानदारी के साथ पद पर बने नहीं रह सकते। वे इस मुद्दे पर इस्तीफा देने वाले पहले हाई कोर्ट जज बन गए। सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जिया महमूद के बेटे मिर्जा 2014 से लाहौर हाई कोर्ट में थे।
सुप्रीम कोर्ट के दो जज भी दे चुके हैं इस्तीफा
जस्टिस मिर्जा का यह कदम उन दो सुप्रीम कोर्ट जजों के बाद आया है, जिन्होंने इससे पहले ही अपना पद छोड़ दिया था। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने 13 नवंबर 2025 को संविधान का 27वाँ संशोधन मंज़ूर किया था और शुक्रवार (14 नवंबर 2025) को जस्टिस मंसूर अली शाह और जस्टिस अत्तर मिनल्लाह के इस्तीफे औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिए गए।
जस्टिस शाह ने अपनी 13 पन्नों की चिट्ठी में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने और न्यायपालिका को कार्यपालिका तथा सेना के प्रभाव में धकेलने वाला बताया। उन्होंने लिखा कि यह बदलाव संविधानिक लोकतंत्र की जड़ें हिला देता है और ‘न्याय को अधिक कमजोर और सत्ता के प्रति अधिक असुरक्षित बना देता है।’
दूसरी ओर, जस्टिस मिनल्लाह ने कहा कि जिस संविधान की रक्षा की शपथ उन्होंने ली थी, वह संशोधन के बाद अब अपने मूल अर्थ में बचा ही नहीं और इस्तीफा उनके लिए संविधान पर हमले के खिलाफ जरूरी विरोध है।
और जज भी उठा सकते हैं कदम
तीन बड़े इस्तीफों के बाद न्यायपालिका के भीतर असंतोष और गहरा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सलाहुद्दीन पन्हवार ने संशोधन के न्यायिक प्रावधानों की फुल-कोर्ट समीक्षा की माँग की है। इसी बीच, इस्लामाबाद हाई कोर्ट की जज सामन रफात इम्तियाज और जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी ने भी संकेत दिया है कि वे अगले महीने से कोर्ट में उपलब्ध नहीं रहेंगे।
दोनों ने अलग-अलग सुनवाई के दौरान कहा कि वे अगली तारीखों पर कोर्ट में नहीं बैठ पाएँगे, जिसे उच्च न्यायपालिका के भीतर संभावित बहिष्कार या इस्तीफे की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। इस तरह, लगातार हो रहे इस्तीफों और बढ़ते विरोध ने पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था को अभूतपूर्व उथल-पुथल में डाल दिया है और यह संकट आने वाले दिनों में और गंभीर रूप ले सकता है।
विवादित संशोधन से न्यायपालिका में उथल-पुथल
इस संशोधन की आलोचना सिर्फ देश के भीतर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है। इंटरनेशनल कमिशन ऑफ जूरिस्ट्स ने इसे ‘न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला’ बताया है। संशोधन के तहत एक नई फेडरल कांस्टीट्यूशनल कोर्ट (FCC) बनाई जा रही है, जो सभी संवैधानिक मामलों पर अंतिम फैसला देगी, जबकि सुप्रीम कोर्ट की भूमिका सीमित कर दी गई है और अब वह केवल दीवानी और फौजदारी अपीलों की सुनवाई करेगी।
FCC के फैसले सुप्रीम कोर्ट सहित सभी कोर्ट्स पर बाध्यकारी होंगे। इसके अलावा हाई कोर्ट के जजों का बिना सहमति के ट्रांसफर करने का अधिकार भी संशोधन में शामिल किया गया है, जिससे राजनीतिक दबाव और हस्तक्षेप की आशंकाएँ बढ़ गई हैं। इसी संशोधन के जरिए पाक फौज के मुखिया जनरल असीम मुनीर (मौलाना और मुल्ला मुनीर जैसे नामों से बदनाम) को चीफ ऑफ डिफेंस फ़ोर्सेज बनाया गया है और उन्हें आजीवन संवैधानिक सुरक्षा और इम्युनिटी दे दी गई है, जो इस बदलाव को और विवादास्पद बनाता है।
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