रायपुर. छत्तीसगढ़ परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ ने डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर में प्रारंभ किए गए, देश के प्रथम स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र के संचालन के लिए सहयोग और मार्गदर्शन दिया जाएगा. पारंपरिक वैद्यकीय ज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिक प्रमाणिकता सिद्ध करने और दुर्लभ वनौषधियों के संरक्षण संवर्धन और विकास के उद्देश्य से यह अध्ययन केन्द्र प्रारंभ किया गया है. इस केन्द्र के संचालन के लिए छत्तीसगढ़ परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ और डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर के बीच 24 दिसंबर को एमओयू किया गया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस उपलब्धि के लिए छत्तीसगढ़ परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं.
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में प्रदेश में पारंपरिक वैद्यकीय ज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिए छत्तीसगढ़ में औषधि पादप बोर्ड का गठन किया गया है और औषधि पौधों के प्रति जन जागरूकता को बढ़ावा दिया जा रहा है.
डॉ. हरी सिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने अध्ययन केन्द्र के शुभारंभ के अवसर पर कहा कि इस केन्द्र के संचालन के लिए विश्वविद्यालय हर संभव मदद करेगा और यहां विलुप्त हो रही वनौषधियों के संरक्षण केन्द्र के लिए विश्व विद्यालय परिसर में ही 10-20 एकड़ भूमि आवश्यकता अनुसार उपलब्ध कराई जाएगी. इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के 25 ख्याति प्राप्त पारंपरिक नाड़ी विशेषज्ञ वैद्य शामिल हुए.
लोक स्वास्थ्य परंपरा संवर्धन अभियान भारत के राष्ट्रीय समन्वयक वैद्य निर्मल अवस्थी से प्राप्त जानकारी अनुसार यह केन्द्र सरकार के सहयोग से संचालित किया जाएगा. उन्होंने बताया कि विगत 4 वर्षों से विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के. के. एन. शर्मा के मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्य के पारंपरिक वैद्यों को विश्व विद्यालय में आमंत्रित कर वनौषधि आधारित चिकित्सा पद्धति का विश्लेषण किया जा रहा था और पारंपरिक वैद्यों की उपचार पद्धति पर शोध कार्य प्रारंभ किए गए जिनके सार्थक परिणाम प्राप्त हुए.
अवस्थी ने बताया कि भारत का यह ऐसा पहला स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र होगा जहां सम्पूर्ण भारत की लोक स्वास्थ्य परंपरा की वैज्ञानिक प्रमाणिकता सिद्ध करने हेतु पहल की जाएगी और विश्व विद्यालय में इसके लिए अलग से विभाग बनाया गया है, जिसे यूजीसी से मान्यता मिल चुकी है और 90 लाख रूपए का आबंटन भी दिया गया है.
इस अध्ययन केंद्र में विद्यार्थियों को अनुसंधान हेतु मदद और पारंपरिक वैद्यों की उपचार पद्धति को वैज्ञानिक प्रमाणिकता मिल सकेगी. यह कार्य वैद्यों के परिवार की सतत आजीविका विकास में सहायक सिद्ध होगा, दूसरी ओर आम जनमानस को आसाध्य बीमारियों में वनौषधि चिकित्सा पद्धति का लाभ मिल सकेगा. अवस्थी ने बताया कि बस्तर, बिलासपुर और रायपुर के ख्याति प्राप्त पारंपरिक वैद्य इस कार्यक्रम में शामिल हुए, जहां वैद्यों ने आंखों से जाला निकाल कर वैज्ञानिकों को हतप्रभ कर दिया, कांकेर कोंडागांव के आदिवासी बहुल इलाके के वैद्यों ने गांठ और मुख के कैंसर, बिलासपुर के पारंपरिक वैद्यों ने भी कई असाध्य बीमारियों के सफल उपचार की जानकारी कार्यक्रम के दौरान दी.