Delhi News : दिल्ली के होलंबी कलां में देश का पहला ई-वेस्ट इको पार्क बनाया जाएगा। 11.4 एकड़ में बनने वाले इस पार्क में 51 हजार मीट्रिक टन ई-वेस्ट रिसायकल किया जाएगा। दावा किया जा रहा है कि 18 महीनों में इसका निर्माण पूरा कर लिया जाएगा। पूरी तरह से चालू होने के बाद यह दिल्ली के कुल ई-वेस्ट का 25 फीसदी हिस्सा प्रॉसेस करेगा। इसका निर्माण पीपीपी मॉडल के आधार पर होगा।
लगभग 11.4 एकड़ क्षेत्रफल में फैला यह अत्याधुनिक पार्क देश के इलेक्ट्रॉनिक कचरे को एक व्यवस्थित प्रणाली के तहत पुन: उपयोग योग्य संसाधनों में बदलने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा। इस पार्क की स्थापना पीपीपी मॉडल (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) पर की जाएगी, और इसके पूर्ण निर्माण में 18 महीने का समय लगेगा। चालू होने के बाद यह दिल्ली के कुल ई-वेस्ट का 25% हिस्सा स्वयं प्रोसेस करेगा।
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क्या है ई-वेस्ट, इसे कैसे रिसायकल किया जाता है?
ई-वेस्ट उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कचरा है जो या तो खराब हो चुके हैं या जिनका उपयोग बंद हो चुका है। इनमें मोबाइल फोन, कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर जैसे उपकरण शामिल होते हैं। इनसे निकलने वाले सीसा, मरकरी, कैडमियम जैसे हानिकारक तत्व, यदि बिना प्रोसेसिंग के फेंक दिए जाएं तो पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचाते हैं। ई-वेस्ट को कई चरणों में रिसायकल किया जाता है।
कलेक्शन: यह ई-वेस्ट को रिसायकल करने का पहला चरण है. इस प्रक्रिया में ई-वेस्ट को उन स्थानों से उठाया जाता है जहां पर इन्हें रिसायकल करले के लिए रखा जाता है. कई देशों में अलग-अलग रिसायकल बिन बने हैं जहां पर लोग अपने ई-वेस्ट छोड़ जाते हैं. यहां से इसे उठाया जाता है और रिसायकल प्लांट तक पहुंचाया जाता है.
सॉर्टिंग: अलग-अलग पॉइंट से इकट्ठा किए गए ई-वेस्ट को अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है. जैसे वो किस डिवाइस का हिस्सा है. कितना पुराना है. किस हालात में है. इस तरह 18 कैटेगरी में इसे बांटा जाता है. इस तरह यह अलग हो जाता है कि किस तरह के ई-वेस्ट को रिफर्बिश्ड करके इस्तेमाल किया जा सकता है और किसे नष्ट किया जाना है.
डिस्मेंटलिंग: इस प्रक्रिया को कई तरह से पूरा किया जा सकता है. पहली प्रक्रिया में ई-वेस्ट को मशीन से तोड़ा जाता है और उसके छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं. दूसरी प्रक्रिया में यही काम मैनुअली किया जाता है. इस प्रक्रिया का मकसद होता है कि कचरे में से काम की चीजें अलग कर ली जाए. जैसे- सर्किट बोर्ड और दूसरे कम्पानेंट को अलग करना.
मैटेरियल रिकवरी: ई-वेस्ट से निकलने वाले काम के मैटेरियल जैसे- कॉपर, एल्युमिनियम और गोल्ड को एक्सट्रैक्ट करके उसे आगे रिसायकल करके भेजा जाता है. या फिर इसे दोबारा इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, नुकसान पहुंचाने वाली चीजें जैसे- लेड और मरकरी को सावधानीपूर्वक नष्ट किया जाता है.
रिफर्बिश्मेंट/रिसायक्लिंग: कुछ चीजों को रिफर्बिश्मेंट किया जाता है. वहीं कुछ चीजों जैसे- प्लास्टिक, ग्लास, को रिसायक्लिंग करके वापस नए प्रोडक्ट बनाए जाते हैं. इस तरह ई-वेस्ट धीरे-धीरे अलग-अलग फिल्टर होता जाता है और खत्म होता जाता है.
क्यों जरूरी है ई-वेस्ट इको पार्क?
भारत, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक देश है। यहां हर साल लगभग 16 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट निकलता है। चिंताजनक पहलू यह है कि इसका मात्र 17.4% ही वैश्विक स्तर पर रिसायकल हो पाता है। अकेले दिल्ली में देश के कुल ई-वेस्ट का 9.5% हिस्सा उत्पन्न होता है। ऐसे में दिल्ली में ई-वेस्ट इको पार्क की स्थापना, न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत उपयोगी साबित होगी।
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भविष्य की ओर एक ठोस कदम
ई-वेस्ट इको पार्क, दिल्ली के लिए सिर्फ एक बुनियादी ढांचा परियोजना नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय सुधार और सतत विकास की दिशा में रणनीतिक पहल है। इसके माध्यम से न केवल कचरे की समस्या का समाधान होगा, बल्कि यह हरित रोजगार, संसाधनों की बचत और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
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