चंडीगढ़, पंजाब। खालसा साजना दिवस यानी बैसाखी के मौके पर श्री पंजा साहिब पाकिस्तान गए जत्थे में से एक सिख बुजुर्ग निशाबर सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई. मृतक की पहचान हरियाणा के करनाल के घरौंडा निवासी निशाबर सिंह (83) के रूप में हुई है. कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद निशाबर सिंह के शव को शाम पाकिस्तान से अटारी सीमा के रास्ते भारत भेज दिया गया. गौरतलब है कि बैसाखी के अवसर पर 12 अप्रैल को ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान के लिए रवाना किया गया था. इस जत्थे में कुल 705 श्रद्धालु शामिल थे, जबकि कुल 900 श्रद्धालुओं ने वीजा के लिए आवेदन दिया था. यह जत्था 14 अप्रैल यानी आज तक श्री पंजा साहिब में ही रुका हुआ था.

पाकिस्तान सरकार ने शव को पूरे सम्मान के साथ अटारी बॉर्डर के रास्ते भारत भेजा

इसके बाद इस जत्थे को श्री ननकाना साहिब के लिए रवाना होना था, लेकिन श्री पंजा साहिब में निशाबर की तबीयत 13 अप्रैल की सुबह ही खराब हो गई और कुछ मिनटों में ही उन्होंने अंतिम सांस ली. जिसके बाद उनके शव को कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद पूरे सम्मान के साथ पाकिस्तान सरकार ने अटारी सीमा के रास्ते भारत भेज दिया. गौरतलब है कि खालसा साजना दिवस पर पाकिस्तान में गुरुद्वारा पंजा साहिब में बैसाखी मनाने के लिए हरियाणा के 106 सिखों का जत्था कुरुक्षेत्र से रवाना किया गया था. जत्थेदार हरभजन सिंह मसाना व जत्थेदार भूपिंदर सिंह असंध ने बताया​ कि पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब का नाम सिख मजहब के सबसे पवित्र तीर्थों में गिना जाता है. गुरुद्वारा पंजा साहिब पाकिस्तान में रावलपिंडी से 48 किमी दूर है. वहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी श्री अमृतसर की ओर से हर साल ऐतिहासिक दिनों के उपलक्ष्य में संगत को भेजा जाता है.

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जहां जन्म लिया, वहीं अंतिम सांस ली

सिख श्रद्धालु निशाबर सिंह ने वहीं आखिरी सांस ली, जहां उनका जन्म हुआ था. दरअसल निशाबर सिंह के पासपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार वे 1939 में पाकिस्तान स्थित पंजाब के अमोके में जन्मे थे, लेकिन बंटवारे के बाद वह भारत आ गए और करनाल में परिवार के साथ बस गए, लेकिन अब उनकी अंतिम सांसें भी उसी जगह निकली, (पाकिस्तान स्थित पंजाब) जहां उनका जन्म हुआ था.

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ऐसे पड़ा पंजा साहिब नाम

एक बार गुरु नानक देव जी ध्यानमग्न थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से गुरु नानक देव जी पर एक ​बड़ी शिला लुढ़का दी. वह शिला उछलते हुए गुरु जी की तरफ आ रही थी, तभी अचानक गुरु जी ने अपना पंजा उठाया और उसे हवा में ही रोक दिया. उसी जगह पर अब गुरुद्वारा पंजा साहिब है और पंजे से पत्थर की शिला को रोकने के चलते इस गुरुद्वारे का नाम ‘पंजा साहिब’ पड़ा.

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