दिल्ली हाईकोर्ट ने सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण नीति लागू न करने पर दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2014 के आदेश के बावजूद अब तक इस दिशा में ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का यह दायित्व है कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय को समान अवसर प्रदान करे और संविधान के तहत उन्हें मिलने वाले अधिकारों को सुनिश्चित करे। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सरकार 10 दिनों के भीतर यह निर्णय ले कि ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा और योग्यता अंकों में छूट दी जाएगी या नहीं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्देश एक महिला ट्रांसजेंडर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए, जिसमें याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में कोर्ट अटेंडेंट के पद पर भर्ती के लिए ट्रांसजेंडर वर्ग को आरक्षण देने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने इस मामले को केवल व्यक्तिगत हित तक सीमित न रखते हुए इसका दायरा बढ़ा दिया और इसे जनहित याचिका (PIL) में परिवर्तित कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यह मुद्दा व्यापक सामाजिक महत्व का है और ट्रांसजेंडर समुदाय के समान अवसरों से जुड़ा है। अदालत ने इस मामले में न केवल दिल्ली सरकार बल्कि केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण से संबंधित पहलुओं पर भी विचार किया जा सके।

इस मामले की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष हुई। सुनवाई के दौरान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार को नीतिगत निर्णय लेते समय सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2014 के निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू करनी होगी। मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, “सरकार को नीतिगत निर्णय लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करना होगा और इससे जुड़ा आरक्षण प्रदान करना होगा। हम रिट याचिका का दायरा बढ़ाकर एक जनहित याचिका कर रहे हैं।” पीठ ने आगे कहा, “इस याचिका में उठाए गए मुद्दों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, जो मुख्य रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की भलाई और समान अधिकारों से संबंधित हैं, हम इसे एक जनहित याचिका (PIL) मानते हुए सुनवाई करेंगे।”

इस तरह से केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाया

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि चूंकि इस मामले में उठाए गए मुद्दों पर व्यापक और गंभीर सुनवाई की आवश्यकता है, इसलिए अदालत ने सरकारों को पक्षकार बनाकर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। हम सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव के माध्यम से भारत सरकार और समाज कल्याण विभाग के प्रधान के माध्यम से दिल्ली सरकार को इस मामले में पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी करने का निर्देश देते हैं।”

‘कई ट्रांसजेंडर आवेदन तक नहीं कर सके’

सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सरकारी भर्ती में आवेदन करने में कठिनाई हुई क्योंकि उन्हें आयु सीमा और योग्यता अंकों में छूट नहीं मिल पा रही थी। पीठ ने स्पष्ट किया, “कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसे हैं जो आयु और अंकों में छूट उपलब्ध न होने के कारण आवेदन नहीं कर सके। ऐसे में हम दिल्ली सरकार को निर्देश देते हैं कि वह अधिसूचना के अनुसार ट्रांसजेंडरों को लाभ प्रदान करने के लिए उच्च न्यायालय की सलाह से 10 दिनों के अंदर उचित निर्णय ले।”

अंतिम तिथि बढ़ाने और उसका प्रचार करने को भी कहा

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि यदि ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को आयु और अंकों में छूट दी जाती है, तो आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि को एक महीने के लिए बढ़ाया जाएगा। पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि “इस तरह की जानकारी का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए,” ताकि सभी योग्य उम्मीदवार इस अवसर से लाभ उठा सकें।

मामले पर चर्चा के दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2014 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि सरकार को ट्रांसजेंडरों को सार्वजनिक रोजगार में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी श्रेणी के रूप में मानकर आरक्षण और संबंधित लाभ प्रदान करने होंगे।

दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि सार्वजनिक रोजगार के मामले में अब तक कोई ठोस नीतिगत निर्णय दिखाई नहीं देता। पीठ को सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई कि साल 2021 में दिल्ली सरकार (GNCTD) द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आयु में पाँच साल की छूट और योग्यता अंकों में 5 प्रतिशत की छूट देने का प्रावधान था। हालांकि, अदालत को बताया गया कि उस अधिसूचना के समय सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2014 के निर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं किया गया था। अधिसूचना में ट्रांसजेंडरों के लिए आरक्षण नहीं दिया गया और छूट के प्रावधान भी अधूरी या अनुपस्थित थे।

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