रामकुमार यादव, सरगुजा. छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है. मंत्रिमंडल विस्तार से पहले सरगुजा संभाग के दो विधायक रायपुर रवाना हुए हैं, जिन्हें मंत्री बनाने की चर्चा हो रही है. बता दें कि आज शाम मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अचानक राजभवन पहुंचे थे. राजभवन में उन्होंने राज्यपाल रमेन डेका से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद चर्चा और तेज हो गई है कि साय कैबिनेट का विस्तार होने वाला है और तारीख तय हो गई है. मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से मुलाकात कर शपथ लेने वाले मंत्रियों के नाम दे दिए हैं.

अम्बिकापुर विधायक राजेश अग्रवाल और लुण्ड्रा विधायक प्रबोध मिंज रायपुर के लिए रवाना हो चुके हैं. बताया जा रहा कि साय सरकार में तीन नए मंत्रियों को जगह मिलेगी. सरगुजा के विधायकों को मंत्री मंडल में मौका मिल सकता है. राजेश अग्रवाल और प्रबोध मिंज का प्रोफाइल मजबूत है. प्रबोध मिंज 2 बार महापौर और आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं. विधायक राजेश अग्रवाल पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को विधानसभा चुनाव में हराकर विधायक बने हैं. राजेश अग्रवाल और प्रबोध मिंज के रायपुर रवाना होने के बाद सरगुजा में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है.

बता दें कि आज ही सुबह सीएम विष्णुदेव साय ने मीडिया से चर्चा में कहा था कि इंतजार करिए, जल्द ही विस्तार होगा. उन्होंने यह भी कहा कि मंत्रिमंडल का विस्तार उनके विदेश दौरे से पहले भी हो सकता है. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय 22 अगस्त से पहले विदेश दौरे पर जा रहे हैं, इसके पहले मंत्रिमंडल में विस्तार को लेकर भाजपा हाईकमान ने मंजूरी दे दी है. जानकारों के अनुसार, 18 अगस्त से पहले मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, जिसमें तीन नए मंत्रियों को शामिल किया जाएगा.

हरियाणा की तर्ज पर होगा मंत्रिमंडल का विस्तार

हरियाणा में भी 90 विधायक हैं. हरियाणा में बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री समेत 14 मंत्री हैं. लिहाजा, हरियाणा के फॉर्मूले को छत्तीसगढ़ में भी लागू करते हुए 3 और मंत्री बनाए जा सकते हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ बनने के बाद से 13 मंत्री ही बनते आ रहे हैं. नियमों के तहत विधायकों की संख्या के 15 प्रतिशत ही मंत्री बन सकते हैं, इस लिहाज से 90 विधायकों में 13.5 मंत्री बन सकते हैं इसलिए मुख्यमंत्री समेत 14 मंत्री भी हो सकते हैं.

मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बढ़ती सरगर्मियों के बीच नामों को लेकर उथल-पुथल के हालात अब भी बरकरार हैं. इस बीच भाजपा संगठन के एक भरोसेमंद सूत्र ने अब तक चर्चाओं में रहने वाले नामों के उलट नए नाम की चर्चा छेड़ दी है. इन नामों में अंबिकापुर से विधायक राजेश अग्रवाल, आरंग से विधायक गुरू खुशवंत सिंह और दुर्ग के विधायक गजेंद्र यादव शामिल हैं. इससे पहले तक जिन नामों को लेकर चर्चा रही हैं, उनमें अमर अग्रवाल, गजेंद्र यादव, पुरंदर मिश्रा, राजेश मूणत जैसे विधायकों के नाम शामिल थे.

गुरु खुशवंत के नाम की चर्चा क्यों?

आरंग सीट से विधायक खुशवंत साहेब सतनामी समाज के गुरु हैं. वह सतनामी समाज के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक भंडारपुरी गुरु गद्दी के उत्तराधिकारी हैं. सतनामी समाज के एक दूसरे प्रमुख तीर्थ स्थल गिरौदपुरी की गद्दी के उत्तराधिकारी कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके गुरु रूद्र कुमार हैं. दोनों ही सतनामी समाज के संत गुरु घासीदास के वंशज हैं, लेकिन राजनीतिक तौर पर दोनों एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं. भंडारपुरी गद्दी के गुरु बालदास के समाज में प्रभाव को आप इस तरह से समझिए कि साल 2013 के चुनाव के दौरान उन्होंने सतनाम सेना पार्टी का गठन कर चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे थे. अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार उतरने से वोटों का समीकरण बिगड़ा और इसका फायदा भाजपा को हुआ. भाजपा ने तब राज्य की 10 अनुसूचित जाति की सीटों में से 9 पर जीत दर्ज की थी. मगर साल 2018 के चुनाव में गुरु बालदास की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ गई. जब उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन 2023 के चुनाव के ठीक पहले गुरु बालदास अपने बेटे गुरु खुशवंत साहेब के साथ भाजपा में शामिल हो गए.

भाजपा ने गुरु खुशवंत साहेब को आरंग से अपना उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे शिव डहरिया को भारी मतों से हराकर जीत हासिल की थी. भाजपा के रणनीतिकार की माने तो गुरु खुशवंत साहेब को साय सरकार में मंत्री बनाकर भाजपा अनुसूचित जाति वर्ग के वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है. संगठन के भीतर यह भी चर्चा रही है कि गुरु बालदास अपने विधायक बेटे को मंत्री बनाने के लिए दिल्ली तक दौड़ लगाते रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा हाईकमान के कई वरिष्ठ नेताओं से उनकी चर्चा होती रही है. ऐसे में भाजपा को डर है कि अगर गुरु खुशवंत साहेब को मंत्री नहीं बनाया गया, तो गुरु बालदास की नाराजगी मोल लेनी पड़ सकती है और इसका असर आगामी चुनाव में पड़ सकता है.

राजेश अग्रवाल के नाम के पीछे क्या है समीकरण?

मंत्रिमंडल विस्तार में संभावित मंत्री के रूप में अंबिकापुर से विधायक राजेश अग्रवाल के नाम की चर्चा ने जोर पकड़ा है. विधानसभा चुनाव में राजेश अग्रवाल ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे टी एस सिंहदेव को मात देकर जीत दर्ज की थी. सरगुजा संभाग की राजनीति में टी एस सिंहदेव का ऊंचा कद रहा है. साल 2018 के चुनाव में सरगुजा संभाग से भाजपा का सूपड़ा साफ करने के पीछे टी एस सिंहदेव ही प्रमुख रणनीतिकार थे, लेकिन साल 2023 के विधानसभा चुनाव आते-आते समीकरण तेजी से बदल गए. कभी टी एस सिंहदेव के बेहद करीबी रहे राजेश अग्रवाल को भाजपा ने उनके ही विरुद्ध उम्मीदवार बनाया और उन्होंने सिंहदेव को करारी शिकस्त देते हुए जीत का परचम लहराया था. मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चल रही चर्चाओं में राजेश अग्रवाल का नाम आने के पीछे सिर्फ राजनीतिक समीकरण ही नहीं हैं, इसके परे भी कई अहम कारण हैं, जो उनकी दावेदारी को मजबूत करते दिख रहे हैं. बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद से वैश्य समाज का सरकार में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.

गजेंद्र यादव पर रार नहीं

आरएसएस बैकग्राउंड से आने वाले दुर्ग शहर से विधायक गजेंद्र यादव को मंत्री बनाया जाना लगभग तय है. चर्चा है कि आरएसएस की तरफ से भी उन्हें मंत्री बनाए जाने का दबाव है. आरएसएस से उनके नाम की पैरवी किए जाने की खबर है. साथ ही यादव समाज को साधने के लिहाज से भी मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दिए जाने की वकालत की गई है. राज्य के ओबीसी वर्ग में साहू समाज के बाद सर्वाधिक जनसंख्या यादव समाज की है. ऐसे में गजेंद्र यादव की दावेदारी काफी मजबूत बताई जाती है. यादव समाज ने मंत्रिमंडल में समाज का प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग की है.