बिलासपुर. गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में पूर्व से काम कर रहे दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने के राज्य शासन के आदेश को हाईकोर्ट ने सही ठहराया है. कोर्ट ने विवि के 98 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की याचिका को मंजूर करते हुए उन्हें नियमितीकरण की तिथि से नियमित कर्मचारी के रूप में सभी लाभ का हकदार माना है. कोर्ट के आदेश से 10 साल से अपने भविष्य और अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले इन कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है.

गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में 98 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से 10 साल या उससे अधिक समय से काम कर रहे थे. इसी दौरान 22 अगस्त 2008 को राज्य शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया था, जिसमें दस साल या उससे अधिक समय से कार्यरत कर्मचारियों को नियमित करना था. इसी आदेश के परिपालन में उच्च शिक्षा संचालक ने भी 26 अगस्त 2008 को विभाग में कार्यरत ऐसे कर्मियों को स्ववित्तीय योजना के तहत नियमितीकरण और नियमित वेतनमान देने का आदेश दिया.

मार्च 2009 तक इन्हें नियमित वेतन भी दिया गया, फिर बिना किसी सूचना के यूनिवर्सिटी ने नियमित वेतन देना बंद कर दिया और 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 22 सितंबर 2008 को जारी शासन के नियमितीकरण को भी निरस्त कर दिया. रजिस्ट्रार के इस आदेश को कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. याचिका में बताया गया, कि गुरु घासीदास विवि को राज्य सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया है. लिहाजा राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शामिल करना चाहिए, जिस स्थिति में कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय में कार्यरत थे.

कर्मचारियों की याचिका पर हाईकोर्ट में पिछले लंबे समय से सुनवाई चल रही थी. बीते 22 नवंबर 2022 को जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब कोर्ट ने फैसला सुनाया है, जो कर्मचारियो के हक में आया है.