रायपुर। भारत में कहीं भी हिंदी भाषा को लेकर विरोध नहीं, विरोध हिंदी की साम्राज्यवादी ताकतों से है. उन ताकतों से, जो कि मातृभाषाओं को कुचलने की कोशिश करते हैं, जो मातृभाषाओं की उपेक्षा करते हैं, जो मातृभाषाओं को आगे बढ़ने देने रोकना चाहते हैं. यही वजह है कि दक्षिण हो या उत्त-पूर्व या फिर पश्चिम का राज्य, हर कहीं तमाम बड़ी हस्तियों ने यह स्पष्ट कहा, कि मातृभाषाओं को खत्म करने की कोशिश होगी तो उसे बर्दास्त नहीं किया जाएगा. फिर चाहे वह कर्नाकट के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा हो, फिल्म अभिनेता रजनीकांत, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी. अनेक बड़ी हस्तियों ने भी यह स्पष्ट कहा, कि हम सब मातृभाषा की बदौलत ही आगे बढ़े हैं. मातृभाषाओं को संरक्षित और संवर्धित करने की प्राथमिकता पहले है. यह सब कहना है छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल का.

नंदकिशोर शुक्ल ने  lalluram.com  से विशेष बातचीत में कहा, कि हिंदी पर हम सबको गौरव है. हिंदी देश की राजभाषा है. हिंदी भाषा को लेकर न तो विरोध किसी ने पहले की है, न अब की जा रही है. हिंदी ही क्या भारत में कभी भी किसी भाषा को लेकर कोई विरोध नहीं रहा है. बात तो अस्मिता की है, सांस्कृतिक पहचान की है. उस पहचान की जिसे साम्राज्यवादी ताकतें खत्म करने में लगी रहती है. ठीक वैसे ही जैसे अँग्रेजी सत्ता ने भारत को गुलाम बनाया और अपनी अँग्रेजियत की बदौलत वो राज करते रहे. हाँ ये जरूर है कि उंगली कभी अँग्रेजी भाषा पर नहीं उठी, बल्कि अँग्रेजियत पर ही सवाल उठे. उस अँग्रेजियत पर जिसे थोपने की कोशिश सरकारी काम-काज और शिक्षा में हुई. ऐसा ही कुछ अब मातृभाषाओं के साथ हो रहा है. विषेकर छत्तीसगढ़ में तो हिंदी की साम्राज्यवादी ताकतों ने छत्तीसगढ़ी को मारने, उसे मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.

शुक्ल बताते हैं कि छत्तीसगढ़ी तो हिंदी भाषा से भी पुरानी भाषा है. छत्तीसगढ़ी का व्याकरण 1890 में आ गया था, जबकि हिंदी का व्याकरण 1900 के बाद आया. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ी को शिक्षा का माध्यम बनने नहीं दिया गया. यही नहीं गोंडी और हल्बी की जबरदस्त उपेक्षा की गई. नतीजा बस्तर के लोग तेलंगाना और आँध्रप्रदेश की तेलगु से प्रभावित रहे हैं. क्योंकि गोंडी तेलगु क्षेत्र में आसानी बोली और समझी जा सकती है. छत्तीसगढ़ भाषाई तौर पर एक समृद्ध राज्य रहा है. लेकिन छत्तीसगढ़ियों को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश हिंदी की साम्राज्यवादी ताकतें वर्षों करते रही हैं. मूलनविसायों को उनकी भाषा में शिक्षा देने से वंचित रखा गया. आज से 19 साल पहले छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना, तो उसके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ कारण छत्तीसगढ़ी ही रहा है. यही वजह है 2007 में छत्तीसगढ़ी राजभाषा बना. लेकिन इसे दुर्भाग्य कहिए कि हिंदी की सामंतवादी ताकतों ने राजभाषा बनने के 12 साल बाद भी उसे सरकारी काम-काज न तो बनने दिया और न उसे शिक्षा काम माध्यम बनने दिया. क्योंकि वे जानते हैं कि अगर छत्तीसगढ़ी, हल्बी-गोंडी में पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत हो गई, तो फिर हर क्षेत्र में छत्तीसगढ़ियों का कब्जा हो जाएगा. यही वजह है कि शासन में छत्तीसगढ़ियों का राज आने के बाद भी प्रशासन में बैठें गैर छत्तीसगढ़िया लोग कभी तकनीकी दिक्कत बताकर, कभी आठवीं अनुसूची का हवाला देकर छत्तीसगढ़ी की उपेक्षा करते रहे हैं. यहाँ तक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी गुमराह करने में भी गैर छत्तीसगढ़िया प्रशासनिक ताकतों का ही हाथ रहा है. न ही तो कहीं भी संविधान में यह नहीं लिखा था, कि कोई मुख्यमंत्री अपनी मातृभाषा में शपथ न ले सके.

शुक्ल ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा, कि मैंने महाराष्ट्र, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार-झारखंड, गुजरात, उत्तप्रदेश और दक्षिण के कुछ राज्यों में जाकर काम किया है. सभी जगह अपनी मातृभाषा और महतारी अस्मिता को लेकर समरपण का भाव है. इन इलाकों में बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ी भाषी लोग भी रहते हैं. इन राज्यों में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों ने कभी भी वहाँ की मातृभाषाओं को चोट पहुँचाने का काम नहीं किया. बल्कि वे वहाँ के ही भाषा और संस्कृति को अपनाकर रच बस गए. उन्होंने वहाँ की भाषा और संस्कृति की कभी न तो उपेक्षा की, न ही विरोध किया. लेकिन दूसरी ओर यह भी उतना ही कड़वा सच है, कि यहाँ रहने वाले अधिकांश गैर छत्तीसगढ़ी भाषी लोगों ने छत्तीसगढ़ी भाषा को चोट पहुँचाने, महतारी अस्मिता को ठेस पहुँचाने का काम करते रहे हैं. उन्होंने अपनी अँग्रेजियत और हिंदी साम्राज्यवाद की बदौलत छत्तीसगढ़ियों को दबा कर रखा. नतीजा छत्तीसगढ़िया लोग भी हीन भावना से ग्रसित रहे. हालांकि राज्य निर्माण, राजभाषा बनने और अब छत्तीसगढ़िया शासक आने के बाद एक महौल छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को लेकर बना है. लेकिन हिंदी और अंग्रेजी की साम्राज्यवादी ताकतों तभी हराया जा सकेगा, जब छत्तीसगढ़ी को कम से कम माध्यमिक स्तर तक शिक्षा का माध्यम बनाया जाएगा, जब पूरी तरह से सरकारी काम-काज होगा. अगर ऐसा हो गया तो फिर यह पूरी तरह से सच है कि राजनीतिक सत्ता के साथ-साथ सभी क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ियों का राज होगा. छत्तीसगढ़िया लोग प्रतिनिधित्व करेंगे.