रायपुर। घने जंगल और जीव-जंतु समेत प्रकृति को बचाने के लिए उत्तरी छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य संघर्ष समिति के बैनर तले प्रभावित गांवों के ग्रामीणों का पांचवे दिन भी लगातार अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन जारी है. सूरजपुर जिला के ग्राम तारा में सरगुजा, सूरजुप और कोरबा जिले के दुर्गम जंगलों से निकलकर ग्रामीण पिछले 14 अक्टूबर से नेशनल हाईवे के किनारे जंगल में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. आंदोलनाकारियों ने इसकी सूचना प्रशासन को भी दे दी है. वहीं वन विभाग ग्रामीणों को हाथियों के आगमन को लेकर सावधान कर रहा है.
आंदोलनकारियों का कहना है कि “जो वन विभाग पिछले जन सुनवाई में झूठा इआईए रिपोर्ट बनाकर पेश किया था आज वो खुद गांव-गांव में माइक लेकर चिल्ला रहे हैं कि हाथी आपके समीपस्थ जंगल में हैं सावधान रहें.” धरना दे रहे लोगों का कहना है कि जब इस क्षेत्र में हाथी का आवागमन है ही नहीं साहब “ता ये हाथी मन कहां ले आई न”.
उन्होंने कहा अडानी को नियमविरुद्ध ग्रामसभा की सहमति के बिना ही परसा केते कोल खनन परियोजना के लिए अनुमति दे दी गई है, यहां तक कि वन स्वीकृति भी फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई है.
ग्रामीणों का कहना है कि अब एक इंच जमीन भी खनन परियोजना के लिए नहीं दी जाएगी. उन्होंने आरोप लगाया कि संवैधानिक नियमों और कानूनों का पालन कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन खनन परियोजनाओं में वह कारपोरेट के साथ खड़ी हो जाती है. पिछली सरकार के समय पांचवी अनुसूची, पेसा और वनाधिकार कानून का उल्लंघन कर किये गए जमीन अधिग्रहण और वन स्वीकृति को वर्तमान सरकार द्वारा निरस्त करने की बजाए उसे बचाने में लगी हुई हैं.
हसदेव अरण्य को बचाने आदिवासियों के इस महाआंदोलन को “छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन” ने भी अपना समर्थन दिया है. इसके साथ ही कई और संगठन भी समर्थन में सामने आ रहे हैं. “छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन” के संयोजक आलोक शुक्ला ने इस पूरे मामले में सीएम भूपेश बघेल से हस्तक्षेप करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि फर्जी ग्रामसभा और गैरकानूनी भूमि अधिग्रहण जैसे मामलों पर मुख्यमंत्री तत्काल कार्यवाही के आदेश दे.
उन्होंने कहा कि हसदेव क्षेत्र की 20 ग्रामसभाओं के विरोध के बाबजूद हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉकों का आवंटन मोदी सरकार द्वारा किया गया. जिसके पीछे मूल कारण हैं कि राज्य सरकारों को कोल ब्लॉक देकर mdo अनुबंध के रास्ते पिछले दरवाजे से अडानी कंपनी को सौंपा जा सके. एक कारपोरेट घराने के मुनाफे के लिए छत्तीसगढ़ के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य का विनाश किया जा रहा हैं. जबकि वर्ष 2009 में इस सम्पूर्ण क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध स्वयं केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लगाया गया था.
शुक्ला ने कहा कि रमन सरकार के नेतृत्व में पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ को कार्पोरेट लूट का चारागाह बना दिया था. कंपनियों के इशारे पर जमीनअधिग्रहण, वन और पर्यावरण स्वीकृतियों को देने के लिए पांचवी अनुसूची, पेसा और वनाधिकर आदि कानूनों का खुले रूप से उल्लंघन किया गया. इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में व्यापक जन आक्रोश रहा जिसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस सरकार आज सत्ता में काबिज है. पिछले सरकार की जन विरोधी नीतियों और निर्णय को बदलने की बजाए वर्तमान भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार उन्हें आगे बढ़ा रही हैं. कांग्रेस पार्टी द्वारा जिस mdo( खनन के विकास और संचालन) अनुबंध का भारी विरोध किया जा रहा था आज उसे सार्वजनिक करने से बच रही हैं यहां तक कि पातुरिया गिड़मूड़ी कोल ब्लॉक भी अडानी को सौंप दिया.
अडाणी कंपनी के इशारे पर ग्रामीणों को फर्जी तरीके से गिरफ्तार किया जा रहा
उन्होंने प्रदेश सरकार पर इस मामले में बड़ा आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट देखने मे आ रहा है कि राज्य सरकार हसदेव से लेकर बैलाडीला और रायगढ़ में अडानी कंपनी के गैरकानूनी कार्यों को न सिर्फ संरक्षण दे रही हैं बल्कि कारपोरेट लूट को आगे बढ़ाने के नक्शे कदम पर चल रही हैं. पिछले दिनों रायगढ में हजारों लोगों के भारी विरोध के बाबजूद गारे-पेलमा 2 कोल ब्लॉक की जनसुनवाई को जबरन आयोजित करवाया गया और अभी कंपनी के इशारे पर ग्रामीणों को फर्जी मुकदमा बनाकर गिरफ्तार किया जा रहा हैं.
आलोक शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन राज्य सरकार से आगाह करती है कि वह कार्पोरेट की गुलामी बंद कर प्रदेश की जन भावनाओ का सम्मान करें. प्रदेश में जिन परियोजनाओं में बिना ग्रामसभा या फर्जी ग्रामसभा के जमीन अधिग्रहण किया गया हैं उनकी जांच के आदेश जारी करे, पेसा और वनाधिकर मान्यता कानून का सख्ती से पालन करवाये. गारे-पेलमा 2 की गैरकानूनी जनसुनवाई को निरस्त कर ग्रामीणों के ऊपर डाले गए फर्जी केस वापिस लिए जाए. जिस बांध से 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है, उसका ही जलग्रहण क्षेत्र हसदेव अरण्य है, यदि यह नष्ट किया गया तो छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में हाहाकार मचेगा. इसलिए हसदेव अरण्य में खनन परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए और केंद्र सरकार को कोल ब्लॉक आबंटन निरस्त करने पत्र लिखे. देश के नैसर्गिक आक्सीजोन को बचाएं.
ग्रामीणों की ये है प्रमुख मांगे
- पेसा कानून 1996 एवं भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा (41) के तहत ग्रामसभा सहमती लिए बिना परसा कोल ब्लॉक हेतु किये गए जमीन अधिग्रहण को निरस्त किया जाए.
- वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत ग्रामसभा की सहमती पूर्व एवं वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया ख़त्म किया बिना दी गई वन स्वीकृति को निरस्त किया जाए.
- हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा, पतुरिया गिदमुड़ी, मदनपुर साऊथ कोल खनन परियोजनाओ को निरस्त किये जाए एवं परसा ईस्ट केते बासन के विस्तार पर रोक लगाई जाए.
- हसदेव अरण्य के जंगल से जुडी आदिवासी एवं अन्य ग्रामीण समुदाय की आजीविका व संस्कृति वन क्षेत्र में उपलब्ध जैव विविधता, हसदेव नदी एवं बांगो बांध के केचमेंट, हाथियों का रहवास क्षेत्र एवं छत्तीसगढ़ व दुनिया के पर्यावरण महत्वता के कारण इस सम्पूर्ण क्षेत्र को खनन से मुक्त रखते हुए किसी भी नए कोल ब्लाकों का आवंटन नही किया जाए.
- वनाधिकार मान्यता कानून के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक वन संसाधन के अधिकारों को मान्यता देकर वनों का प्रवंधन ग्रामसभाओं को सोंपा जाए.