शब्बीर अहमद, भोपाल। खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभा सीटों में उपचुनाव से पहले कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण का राग छेड़ दिया है। कमलनाथ ने ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाकर एक बार फिर शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश की है। कमलनाथ ने शिवराज सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए शिवराज सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए।
पूर्व मंत्री ने आरोप लगाया कि सरकार ने उच्च न्यायालय में उचित पैरवी नहीं की। पैरवी सही नहीं होने के कारण अब तक लागू नहीं हुआ आरक्षण। कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया था।
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कमल नाथ ने ट्वीट कर कहा, “मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार ने 2019 में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था, लेकिन शिवराज सरकार ने इसे लागू करने के कोई गंभीर प्रयास नही किये। आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में कुछ याचिकाएं दायर की गईं, लेकिन सरकार द्वारा उचित पैरवी नहीं की जाने से बढ़ा हुआ आरक्षण अब तक लागू नही हो पाया। अगर सरकार सशक्त पक्ष समर्थन करे तो मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग को 27 फ़ीसदी आरक्षण का लाभ मिल जाएगा।
कमलनाथ ने एक और ट्वीट में कहा, “पूर्व में 2003 में भी कांग्रेस सरकार ने यह आरक्षण लागू किया था, तब भी शिवराज सरकार की कमजोर पैरवी के कारण 10 साल तक मामला अदालत में लटका रहा और अंत में आरक्षण निरस्त हो गया। शिवराज सरकार को अपनी पिछड़ा वर्ग विरोधी मानसिकता त्यागकर, सामाजिक न्याय में सहयोग करना चाहिए।”
पिछड़ा वर्ग को कर रहे गुमराह
कमलनाथ के ट्वीट पर बीजेपी ने पलटवार करते हुए कांग्रेस गुमराह करने का आरोप लगाया है।बीजेपी नेता रजनीश अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग को 70 साल तक गुमराह किया और धोखा दिया है। उनके हित और हक में कोई उपलब्धि नहीं है, मोदी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देते हुए तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन किया। आजादी के बाद मोदी मंत्रिमंडल में पिछड़ा वर्ग को सबसे ज्यादा स्थान मिला। कांग्रेसी बताएं कि किस राज्य में उसने ओबीसी को 27% आरक्षण दिया। कांग्रेस के नेता सिर्फ भड़काने का काम करते हैं, हमारी सरकार ओबीसी के हितों में काम कर रही है।
सरकार ने कोर्ट में नहीं दिया जवाब
आपको बता दें एमपी मे 50 फीसदी के करीब ओबीसी वर्ग है। कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया था। सरकार के इस फैसले के खिलाफ करीब 29 याचिकाएं लगाई गई थी। जिसके बाद ओबीसी आरक्षण का मामला कोर्ट पहुंचा। इन याचिकाओं के आधार पर इस फैसले को असंवैधानिक बताया गया। कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद सरकार से अदालत ने याचिकाओं पर जवाब मांगा था। सरकार की तरफ से जवाब नहीं दिया गया जिसके बाद अदालत ने जवाब नहीं देने तक आरक्षण पर रोक लगा दी।
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