दंतेवाड़ा। प्रदेश के सुदूर और आदिवासी क्षेत्रों में विकास के सरकार तमाम दावे तो करती है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है. ताज़ा मामला है दंतेवाड़ा जिले के कुआंकोंडा विकासखंड के रेवाली ग्राम पंचायत का. यहां पीने के पानी का भीषण संकट है. इलाके के तमाम नल खराब पड़े हैं. इसके कारण यहां के रहवासी नालों का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.

स्कूली छात्र पी रहे गंदा पानी, गंदे पानी में धो रहे अपनी थालियां

वहीं धुर नक्सल प्रभावित रेवाली ग्राम पंचायत में 70 घर हैं. साथ ही प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल भी संचालित हैं. इन स्कूलों के बच्चे गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, जिसके कारण उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. और तो और मिड डे मील खाने के बाद अपनी थालियां धोने के लिए इन्हें नदी-नालों के पास जाना पड़ता है, जिसका पानी बेहद गंदा है.

इन गंदे नालों के पानी से बच्चे अपनी थालियां धोते हैं. अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि ऐसी थालियों में खाना खाने और गंदा पानी पीने से बच्चों को कितना गंभीर संक्रमण हो सकता है. ऊपर से वे गंदा पानी पीने से बीमार तो हो ही रहे हैं.

स्कूलों के हैंडपंप खराब

बता दें कि यहां के प्राथमिक शाला में 28 छात्र और माध्यमिक शाला में 4 छात्र पढ़ते हैं. इस गांव के दोनों स्कूलों के हैंडपंप खराब हैं. जिसके चलते स्कूल के बच्चों से लेकर इस गांव के ग्रामीण गांव से 300 मीटर दूर जाकर नदी का गंदा पानी दैनिक उपयोग में ला रहे हैं.

गौरतलब है कि दंतेवाड़ा जिले को स्वच्छ भारत मिशन के तहत ओडीएफ अवॉर्ड भी मिल चुका है. अब आप इस बात से ही अंदाजा लगाइए कि जिस गांव में पीने के पानी के लिए स्कूली छात्रों और ग्रामीणों को लम्बा सफर तय करना पड़ता है, उस गांव में स्वच्छता का क्या हाल होगा.

गांव की महिला नंदे बाई ने बताया कि गांव में 3 नल हैं, जिसमें से 2 नल खराब हैं और तीसरे नल से बहुत देर से पानी निकलता है. इसके कारण पूरा गांव नदी के पानी से काम चलाता है.

सुदूर इलाके में बसा है रेवाली ग्राम पंचायत

बता दें कि कुआंकोंडा विकासखंड के अंतर्गत ये गांव समेली-अरनपुर मार्ग के पास है. समेली से 2 किलोमीटर आगे बढ़ते ही दाहिने हाथ की तरफ भीषण जंगलों के बीच से कच्चा रास्ता जाता है, जिसके 6 किलोमीटर अंदर ये गांव बसा हुआ है. यहां तक कि इन जंगलों के बीच बने कच्चे रास्ते पर बाइक भी बड़ी मुश्किल से चलती है.

इस ग्राम पंचायत में मूलभूत सुविधाओं तक के लिए लोग तरस रहे हैं. पानी से लेकर रोजमर्रा के सामानों के लिए भी लोगों को जूझना पड़ता है. वहीं सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करते नहीं थकती है.