शिखिल ब्यौहार, भोपाल/खरगोन। नर्मदा एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर ही मन में गंगा सी पवित्रता तो यमुना की भक्ति का भाव अपने आप जागृत हो जाता है। मध्यप्रदेश की ये जीवनधारा अनगिनत कालचक्र में न जाने कितनी संस्कृति और समस्याओं को समेटे हुए अविरल, कल-कल लगातार बहती जा रही है। अपनी जटाओं में गंगा को धरने वाले गंगाधर भगवान शिव शंकर की पुत्री हैं मां नर्मदा।

शिव पुराण, नर्मदा पुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में मां नर्मदा को शाश्वत बताया गया है। जो प्रलय से कल्प तो शून्य से लेकर सृजन की कारक हैं। धार्मिकता के साथ भौतिक संसार में नर्मदा किसी अचरज से कम नहीं है। राजधानी भोपाल से करीब 300 किलोमीटर दूर खरगोन जिले के बकावां गांव में नर्मदा की अथाह गहराई में मिलने वाले शिवलिंग से एक चमत्कार जुड़ा हुआ है। जिन्हें नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। कहते हैं, नर्मदा की गोद में नर्मदेश्वर शिवलिंग का खजाना मानो समुंदर में पानी की एक बूंद, जिसे जितना भी निकालो उतना ही बढ़ता जाता है।

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आखिर क्या हैं मां नर्मदा
36 करोड़ देवी-देवताओं की आश्रय स्थली मां नर्मदा देश की एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। विज्ञान को भी चुनौती देती हुई ढलान से ऊंचाई की ओर नर्मदा का प्रवाह, नर्मदा की अपनी विशिष्टता और अनेकरूपता के कारण ही मध्यप्रदेश सरकार ने इन्हें जीवित इकाई का दर्जा भी दिया। मतलब सरकार भी नर्मदा को सजीव मानती है। भौतिकता से परे धार्मिक मान्यताओं को समेटे अद्भुत मां नर्मदा है।

वैसे तो देश-विदेश के कई हिस्सों में शिवलिंग मिलते हैं, या जिन्हें आकार दिया जाता है। लेकिन नर्मदा में मिलने वाले शिवलिंग विश्व के तमाम शिवलिंग से बिल्कुल अलग हैं। इनकी अपनी खास विशिष्टता के कारण ही इन्हें नर्मदेश्वर शिवलिंग ही कहा जाता है। यदि चमत्कारी कहे तो अतिशयोक्ति भी नहीं होगी। क्योंकि नर्मदेश्वर शिवलिंग की अपनी शक्ति होती है। असली रुद्राक्ष के 108 मनकों की माला शिवलिंग के अग्र केंद्र पर स्थिर की जाए तो यह माला अपने आप तेज गति से घूमने लगती है।

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कई आकृति में दिखाई देगी है शिवलिंग
नर्मदा की गोद से निकले शिवलिंगों की आकृति, प्रकार, रंग और रूप में ऐसी कुदरती आकृतियां होती है जो पूरे विश्व के शिवलिंगों में लगभग असंभव है। यहां से निकाली गई शिवलिंग की हू-ब-हू आकृति किसी दूसरे नर्मदेश्वर शिवलिंग में नहीं मिल सकती है। यहां से निकाली गई शिवलिंग अर्धनारीश्वर, नाग, अग्नि, जनेऊधारी, शक्ति शिवलिंग, त्रिनेत्र शिवलिंग कई देवी-देवताओं की साक्षाक आकृति में दिखाई दी।

एक और है बड़ा रहस्य
अचरज की नर्मदा और नर्मदेश्वर शिवलिंग का एक और बड़ा रहस्य है। वो यह है कि, रेवा के उद्गम स्थल अमरकंटक से करीब 800 किलोमीटर दूर बकावां गांव के करीब 50 किलोमीटर दायरे में ही यह अद्भुत नर्मदेश्वर शिवलिंग मिलते हैं। करोड़ों शिवलिंग विशेष आकृति के शिवलिंग, चमत्कारी शिवलिंग, अदृश्य शक्ति से भरे शिवलिंग विश्व के एकमात्र शिवलिंग जिनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। इन्हें स्यंभू शिवलिंग के नाम से जाना जाता है।

नर्मदा की गोद शिवलिंग से कभी नहीं हुई सूनी
स्थानीय ग्रामीण और नर्मदेश्वर शिवलिंग से आजीविका चलाने वाले मोहित शाह ने बताया कि, अन्य नदियों में सीमित मात्रा में शिवलिंग या पत्थर होते हैं। लेकिन नर्मदा में दो शिवलिंग निकालो तो दोगुने शिवलिंग उसी स्थान पर फिर मिल जाते हैं। ऐसा ही दावा आत्माराम पटेल ने भी किया कि नर्मदा की गोद शिवलिंग से कभी सूनी न हुई न भविष्य में होगी। पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम में गुजर गई। लेकिन शिव कृपा से नर्मदेश्वर शिवलिंग निकलते ही जा रहे हैं। बतादें कि, नर्मदा के जलीय सतह पर कुछ पत्थर भी दिखाई देते है। ये पत्थर थोड़े चमकिले नजर आते है।

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शिवलिंग निकालना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं
मां नर्मदा की कृपा से अगर शिवलिंग मिल भी जाए तो फिर इसे निकालना भी किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता है। एक तो नर्मदा की तेज धार, जो पानी के अंदर न ठहरने की जिद पर लड़ी थी। तो दूसरी ओर तेज धार का छिछला पानी जो गोता लगाते से ही दृश्य को नजर बंद कर देता है। इसके साथ ही पानी का बहाव भी कई गुना तेज हो जाता है। जो लगातार बढ़ते जाता है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि ओमकारेश्वर बांध से रोजाना पानी छोड़ा जाता है। इसके गहराई के साथ मां की धार पल में कई गुना बढ़ती चली जाती है।

इस शिवलिंग में लोग करते हैं लाखों का दान
मां नर्मदा से तिलकधारी शिवलिंग के साथ जनेऊधारी शिवलिंग भी निकलते देखे गए है। इसके साथ ही यहां से ऐसे भी शिवलिंग मिला है जिसके लिए लोग लाखों का दान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये होते है ओम आकृति का नर्मदेश्वर शिवलिंग। जितनी गहराई में जाएंगे उतने ही अलग-अलग आकृति के नर्मदेश्वर शिवलिंग देखने को मिलेगा। नर्मदा ने अब तक हजारों की संख्या में अलग-अलग शिवलिंग अपने गोद से दिए है।

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