सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही थी। इसी दौरान वकील राकेश किशोर कुमार ने अचानक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप कर स्थिति को नियंत्रण में ले लिया और वकील को हिरासत में ले लिया गया। दिल्ली पुलिस ने बताया कि आरोपी वकील से करीब तीन घंटे तक पूछताछ की गई। इस दौरान यह जांच की गई कि उसकी हरकत के पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं है। हालांकि पूछताछ में किसी आपराधिक साजिश या संगठन से संबंध की पुष्टि नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी वकील राकेश किशोर कुमार का लाइसेंस रद्द कर दिया है।
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई और आंतरिक बातचीत के बाद आरोपी को चेतावनी देकर रिहा कर दिया गया। फिलहाल दिल्ली पुलिस ने इस घटना की रिपोर्ट तैयार कर ली है और सुरक्षा व्यवस्थाओं की समीक्षा की जा रही है ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना दोबारा न हो।
वकील राकेश किशोर कुमार ने घटना के बाद भी अपने व्यवहार पर कोई पछतावा नहीं जताया है। पूछताछ के दौरान उन्होंने दावा किया कि उन्हें “दैवीय शक्ति” से मार्गदर्शन मिला था और उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा। पुलिस सूत्रों के अनुसार, मयूर विहार निवासी किशोर ने माफी मांगने से भी साफ इनकार कर दिया। बताया गया कि इस घटना से उनके परिजन बेहद नाराज हैं और उन्होंने भी इस कृत्य की निंदा की है। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में ही आरोपी से तीन घंटे तक पूछताछ की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई गई, जिसके बाद पुलिस ने दोपहर करीब दो बजे वकील को रिहा कर दिया। अधिकारियों ने बताया कि प्रक्रिया पूरी होने के बाद आरोपी को उसके जूते भी वापस कर दिए गए।
कील राकेश किशोर कुमार ने घटना के बाद अपने बयान में कहा कि उसे अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है और वह जेल जाने के लिए तैयार है। उसने स्पष्ट किया कि उसका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। अगर जेल में होता तो ज्यादा अच्छा होता। परिवार बहुत दुखी है, वे समझ नहीं पा रहे।” उसने दोहराया कि उसे “दैवीय शक्ति” से मार्गदर्शन मिला था, जिसके चलते उसने ऐसा कदम उठाया। किशोर ने बताया कि वह भगवान विष्णु की एक बगैर सिर वाली मूर्ति से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों से नाराज था। उसी के बाद उसने यह कदम उठाने का फैसला किया।
किशोर ने बताया कि उसकी नाराज़गी केवल अदालत की कार्यवाही तक सीमित नहीं थी। वह मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के हालिया बयान से भी आहत था, जिसमें उन्होंने मॉरिशस में कहा था, “भारत की न्याय व्यवस्था कानून से चलती है, बुलडोजर के राज से नहीं।” किशोर का कहना है कि इस टिप्पणी ने उसे “गहराई से दुखी” किया और वह इसे भारत की न्याय प्रणाली और देवताओं के प्रति “अनादर” मानता है। उसने दोहराया कि उसे “दैवीय शक्ति” से मार्गदर्शन मिल रहा था और उसने वही किया जो उसे ईश्वरीय संकेत लगा। हालांकि, उसने यह भी स्वीकार किया कि उसके परिवार और रिश्तेदार उसके इस कदम से बेहद नाराज हैं और उसे समझ नहीं पा रहे।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के सह सचिव मीनेश दुबे ने बताया कि आरोपी वकील राकेश किशोर कुमार वर्ष 2011 से एसोसिएशन का अस्थायी सदस्य है, लेकिन उसने अब तक शायद ही किसी मामले में पैरवी की हो। दुबे ने कहा, “स्थायी सदस्य बनने के लिए किसी वकील को लगातार दो वर्षों तक कम से कम 20 मामलों में पेश होना अनिवार्य होता है, लेकिन राकेश किशोर ने कभी यह शर्तें पूरी नहीं कीं।” घटना के बाद मीनेश दुबे ने किशोर से मुलाकात भी की। उन्होंने बताया कि वकील को अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है। दुबे ने कहा, “वह कह रहा था कि उसने जो किया, सही किया। उसने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया।”
वहीं, किशोर के परिवार ने इस पूरे मामले पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी करने से इनकार किया है, लेकिन उन्होंने निजी तौर पर नाराज़गी और शर्मिंदगी जताई है। परिजनों के मुताबिक, वे इस घटना से बेहद व्यथित हैं और समझ नहीं पा रहे कि राकेश ने ऐसा कदम क्यों उठाया।
घटना के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वकील राकेश किशोर कुमार को सोमवार को ही तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। यह कदम उस समय उठाया गया जब अदालत की कार्यवाही के दौरान उसने मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता फेंकने की कोशिश की थी — जो कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ पूरी तरह शांत और संयमित रहे। उन्होंने अदालत कक्ष में मौजूद अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों से कहा कि घटना को नजरअंदाज किया जाए और दोषी वकील को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए।
सीजेआई ने अपने बयान में कहा, “इन सब से विचलित मत होइए। हम विचलित नहीं हैं। ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करती हैं।” उनके इस रवैये की न्यायालय में मौजूद वकीलों और अधिकारियों ने सराहना की, जिन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की गरिमा और धैर्य का उदाहरण है।
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