जोधपुर हाईकोर्ट ने सामाजिक मान्याताओं और संविधान से मिले मौलिक अधिकारों की मिशाल पेश की है… पत्नी मां बन सके इसलिए कैदी पति को 15 दिनों के लिए जेल से रिहा कर दिया है.

जोधपुर हाइकोर्ट की अदालत ने एक कैदी को उस समय रिहा कर दिया जब एक पत्नी ने संतान पाने की इच्छा के लिए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने कहा कि कैदी की पत्नी निर्दोष है और पत्नी संतान पाने इच्छा रखती है.. ऐसे में निर्दोष के प्रति राज्य की जिम्मेदारियां हैं कि उसकी ये इच्छा पूरी की जाए. और इसी लिहाज से कैदी पति को 15 दिन की पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया है ताकि पत्नि गर्भधारण कर सके.

हिंदू धर्म, शास्त्र, वंश वृध्दि का दिया हवाला

इस अनूठे मामले में अदालत ने हिंदू दर्शन, धर्म शास्त्रों, वंश वृद्धि का समाजशास्त्र और संवैधानिक पहलुओं की व्याख्या की है. जोधपुर हाईकोर्ट के जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कैदी की पत्नी निर्दोष है और उसके पति के जेल जाने की वजह से वैवाहिक जीवन से जुड़ी उसकी यौन और भावनात्मक ज़रूरतें प्रभावित हुई है. इसमें मां बनने की उसकी चाहत भी शामिल है. इसलिए इसकी पूर्ति के लिए कैदी को अपनी पत्नी के साथ एक तय समय गुजारने (Cohabitation period) की अनुमति दी जानी चाहिए. 

पति काट रहा आजीवन कारावास

अजमेर सेंट्रल जेल में एक कैदी आजीवन कारावास सजा काट रहा है. कैदी अब तक 6 साल की सजा काट चुका है. इससे पहले पिछले साल जून में उसके पति को 20 दिनों की पहली पैरोल मिली थी. उस समय उसके पति ने जेल नियमों के तहत इस पैरोल का उपयोग किया और पैरोल खत्म होने वापस जेल आ गया था. जेल में पति के अच्छे आचरण के बदौलत फिर से पैरोल मिल रही है.

16 संस्कारों में पहला संस्कार है गर्भाधान

जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस फरजंद अली की खंडपीठ ने अपने फैसले में संतान उत्पत्ति के धार्मिक पक्ष की भी चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दू दर्शन के अनुसार गर्भाधान 16 संस्कार में पहला संस्कार है. यही वैदिक ऋचाओं में भी गर्भाधान की चर्चा मिलती है. ऋगवेद में कई बार संतानोत्पत्ति और समृद्धि के लिए प्रार्थनाएं की गई है. इसमें से एक श्लोक है. प्रजां च धत्तं द्रविणं च धत्तम. जिसका अर्थ है कि हे देव हमें संतान और संपन्नता प्रदान करें.

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