रायपुर। कहते हैं मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं रायपुर की रहने वाली सुमन साहू की, जो आज अपने बेटियों को मंजिल दिलाने कड़ी मेहनत कर रही हैं. सड़कों पर रिक्शा चलाकर बटियों का सपना साकार करने में लगी है, जो महिला वर्ग के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है.

सुमन बताती हैं कि पति से रोज-रोज के झगड़े से परेशान होकर उन्होंने पति को छोड़कर अपनी 2 बेटियों को लेकर आ गई. उनके पास कोई काम नहीं था, जिससे उनके सामने मुसीबत खड़ी हो गई, लेकिन सुमन हार नहीं मानी.

सुमन ने कहा कि जब उनके सामने कुछ नजर नहीं आया तो उन्होंने ई-रिक्शा चलाने का मन बना लिया. सरकार से ई-रिक्शा खरीदने के लिए शासन की योजना के तहत एप्लाई की. इसके साथ ही उन्होंने ई-रिक्शा चलाने के लिए ट्रेनिंग ली.

सुमन ने बताया कि 1 लाख 70 हजार में ई-रिक्शा खरीदीं, जिसका किस्त अभी भी बचा है. बीच में स्वास्थ्य खराब होने के कारण किस्त जमा नहीं कर पाई. बैंत से वसूली के लिए आए थे. रिक्शा नहीं चलाने की वजह से परेशानियां फिर शुरू हो गई, लेकिन जैसे-जैसे हालात सुधरे अब फिर से जिंदगी पटरी पर लौट रही है.

सुमन ने बताया कि जितना मुश्किल उनके लिए चालक बनना था, उससे कहीं संघर्ष भरी उनकी निजी जिंदगी भी है. सुमन 12वीं तक पढ़ी हैं. रायपुर में उनकी शादी हो हुई थी. 2 बेटियां हुई हैं, लेकिन पति के साथ रिश्ते ज्यादा दिन तक नहीं चल पाए.

सुमन ने कहा कि बटियों के भविष्य को देखते हुए उन्होंने नए सिरे से जिंदगी जीने का सोची और आज मेहनत कर, पसीना बहाकर बेटियों को पढ़ा रही है. बड़ी बेटी भावना BA सेकंड ईयर में है. वहीं वंदना 10वीं की परीक्षा दी है. अभी थोड़ी परेशानी है, लेकिन हालात ठीक हो जाएंगे, पहले की अपेक्षा जिंदगी खुशहाली से बीत रही है.

बहरहाल, ये संघर्स और जुनून से भरी कहानी सुमन की थी, जो हजारों मुसीबतों को मेहनत तले रौंद कर खुशहाल जिंदगी जी रही हैं. सुमन किसी के सामने घुटने नहीं टेकी, बल्कि हिम्मत से लड़ी और खुशियों को जीती. सुमन आज शहर की सड़कों पर यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही हैं और खुद की जिंदगी और बेटियों की जिंदगी संवार रही हैं.