सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) सहित तमाम विशेष कानूनों में भी ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत लागू होता है. शीर्ष अदालत ने प्रतिबंधित संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को अपना मकान किराए पर देने और मदद क‌रने के आरोपी को जमानत देते हुए यह व्यवस्था दी है.

जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जमानत नियम है और जेल अपवाद है” का सिद्धांत कठोर जमानत शर्तों वाले कानूनों पर भी लागू होगा. जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, “जब जमानत देने का मामला बनता है, तो अदालतों को जमानत देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए. अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन अदालतों का कर्तव्य कानून के अनुसार जमानत देने के मामले पर विचार करना है.”

पीठ ने कहा कि यह कहना अनुचित होगा कि विशेष कानून के तहत आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती. यदि ‌अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करने लगेंगी तो, तो यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा. सुप्रीम कोर्ट ने PFI के कथित सदस्यों को मदद करने के आरोपी जलालुद्दीन खान को जमानत देते हुए यह फैसला दिया. शीर्ष अदालत ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने खान को जमानत देने से इनकार कर दिया था.

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क्या है पूरा मामला?

पीठ ने यह टिप्पणी आरोपी जलालुद्दीन खान, जो एक सेवानिवृत्त पुलिस कॉन्स्टेबल हैं, को जमानत देते हुए की. जलालुद्दीन को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने पटना के फुलवारी शरीफ में अहमद पैलेस बिल्डिंग की पहली मंजिल, जो उसकी पत्नी के नाम पर थी, कथित PFI कैडर को किराए पर दिया था. वहीं जलालुद्दन की जमानत याचिका का विरोध करते हुए, NIA ने कहा कि आरोपी नंबर 2 के रूप में सूचीबद्ध जलालुद्दीन खान को 6 और 7 जुलाई, 2022 को पहली मंजिल से कुछ सामान हटाते हुए CCTV फुटेज में देखा गया था, साथ ही आरोपी नंबर 1, जो प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का सक्रिय सदस्य था, जब पुलिस ने विशेष खुफिया जानकारी के आधार पर 11 जुलाई, 2022 को छापेमारी की, तो वे सामान नहीं मिले जिससे संकेत मिलता है कि खान ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी.