विप्लव गुप्ता, पेण्ड्रा। नवगठित जिले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में मरीजों को दिए जाने वाले भोजन पर ठेकेदार डाका डाल रहे हैं. प्रसूता महिलाओं से लेकर अलग-अलग बीमारियों से ग्रसित मरीजों के लिए निर्धारित मीनू चार्ट के अनुसार भोजन-नाश्ता कुछ भी नहीं दिया जा रहा है. पौष्टिक आहार, फल, अंडा, दूध तो छोड़िए रोटी एवं हरी सब्जियां भी महीनों से नदारद हैं. मामले पर सीएमएचओ ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए जांच व कार्रवाई की बात कह रहे हैं.

भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत अस्पतालों में भर्ती होकर इलाज कराने आए मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है. इसके तहत गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा सुपाच्य एवं हाई न्यूट्रिशंस युक्त भोजन उपलब्ध कराना है, जिसमें सुबह 7.30 बजे चाय, दूध के साथ चार बिस्कुट टोस्ट एवं मूंगफली, राजगीरा का लड्डू 9 बजे नाश्ता, जिसमें पोहा, उपमा, इडली, पराठा, उबला अंडा में से कोई एक और 200ml दूध दिया जाना है.

इसके बाद 12 बजे भोजन का प्रावधान है, जिसमें रोटी, चावल, दाल, हरी सब्जी के अलावा पनीर या मशरूम की सब्जी के साथ फल देना अनिवार्य है. इसके बाद 4 बजे दोबारा चाय, दूध एवं बिस्कुट देना है. रात के खाने के लिए शाम 7 बजे दाल, चावल, रोटी-सब्जी के अलावा 200ml दूध का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा अन्य बीमारियों में भर्ती हुए मरीजों के लिए भी भोजन एवं चाय का प्रबंध होता है, पर यह सब सिर्फ कागजों में ही सीमित है.

मीनू चार्ट में ही सीमित चाय-नाश्ता

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के तीनों विकासखंड – पेंड्रा, गौरेला एवं मरवाही के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रियलिटी चेक किया गया तो जो देखने को मिला वह व्यवस्था की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है. मरवाही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तो ज्यादातर मरीजों को नाश्ता दिया ही नहीं गया. जो मरीज थे, वह अपने घर से ही भोजन लेकर आए थे. वही पेंड्रा में प्रसूता महिलाओं को भी भोजन के लिए दाल, चावल और सब्जी ही दी गई थी. हां, सुबह चाय और चार बिस्कुट मिला था, उसे 7.30 बजे मिलने वाला चाय मान लीजिए या 9 बजे मिलने वाला नाश्ता. इसके बाद सीधे रात में भोजन ही मिलता है. चाय और नाश्ता मीनू कार्ड में ही सीमित है.

जिला अस्पताल में बदतर व्यवस्था

वहीं जिला अस्पताल, जो एमसीएच में ही संचालित है, का हाल और भी बुरा है. यहां भर्ती मरीजों को भी ठीक से भोजन नसीब नहीं हुआ. ज्यादातर मरीज अपने घर से ही भोजन लेकर आए थे, जबकि प्रसूता महिलाओं को सुबह चाय एवं दोपहर का भोजन और रात का भोजन ही दिया जाता है. दोनों टाइम का नाश्ता, हरी सब्जी एवं फल गायब था. अंडा भी किसी को नहीं दिया गया. अब 200ml सुबह शाम का दूध की बात करना बेमानी है.

डॉक्टरों को भोजन की जांच करने की फुर्सत नहीं

सरकार ने अस्पताल में इलाज कराने वाले गरीबों के लिए मुफ्त दवाइयों के साथ भोजन का इंतजाम किया है, जिसके लिए विभाग टेंडर जारी कर कार्य आदेश देता है, लेकिन आठ-दस सालों से जमे ठेकेदार अब यहां गहरी पैठ बना चुके हैं. भोजन बनाने वाली रसोईया खुद बता रही है कि अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर कभी भोजन की जांच नहीं करते. नाश्ता नहीं दिया जाता, सिर्फ भोजन दिया जाता है, जिसमें दाल, चावल और सब्जी होता है. कभी-कभी अंडा जरूर देते हैं, पर हरी सब्जी बहुत दिनों से नहीं बनी है.

ठेकेदार का ही पक्ष लेने लगे सीएमएचओ

मामले पर सीएमएचओ डॉ. देवेंद्र पैकरा ने मीनू के हिसाब से भोजन नहीं दिए जाने पर अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि अब तक इसकी शिकायत नहीं मिली है. अब आप के माध्यम से शिकायत मिली है तो शीघ्र ही मीनू चार्ट के हिसाब से भोजन व्यवस्थित कराया जाएगा. हां, ठेकेदारों का पक्ष लेते हुए साहब ने यह जरूर कहा कि क्योंकि मरीज के साथ कभी-कभी एक अटेंडर भी आते हैं, और उन्हें भी भोजन कराना पड़ता है इसलिए ठेकेदार मीनू के हिसाब से भोजन कराने में असमर्थ होते हैं. साथ ही उन्होंने सरकार द्वारा प्रति मरीज प्रतिदिन निर्धारित बजट को भी मेनू के हिसाब से कम बता दिया.

बहरहाल, एक बात तो तय है कि केंद्र एवं राज्य सरकार संयुक्त रूप अस्पताल में इलाज कराने आए गरीब मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था करती है जिसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन की है, लेकिन सालों से भोजन कराने वाले समूह और ठेकेदारों की पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि उन पर चाबुक चलाना अब इनके बस के बाहर की बात है.