अमित पांडेय, खैरागढ़। जिले में बाघ के पगमार्क देखे गए हैं। बाघ की दस्तक से वन विभाग सतर्क हो गया है। विभाग ने 17 गांवों में मुनादी करा दी है और ग्रामीणों को सतर्क रहने को कहा है। इसके साथ ही, वनांचल क्षेत्रों में पेट्रोलिंग भी बढ़ा दी गई है। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगलों में बाघों की मूवमेंट ने वन विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया है।

बता दें कि स्थानीय संस्था प्रकृति शोध एवं संरक्षण सोसाइटी ने पिछले पाँच वर्षों से लगातार यहाँ बाघों के मूवमेंट पर नज़र रखी हुई है। यह क्षेत्र बाघों के लिए एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर के रूप में काम करता है, जिससे बाघ हर साल यहां से गुजरते हैं। पहले इस क्षेत्र में बाघों की स्थायी उपस्थिति थी, लेकिन अभी भी हर साल यहाँ बाघों की दस्तक होती है।

क्या खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगल फिर से बाघों का घर बन सकते हैं?

यह सवाल इन दिनों वन्यजीव प्रेमियों और पर्यावरण विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ का यह इलाका बाघों के लिए एक महत्वपूर्ण कॉरिडोर है, जहां से बाघ हर साल गुजरते हैं। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ के जंगलों से होते हुए ये बाघ इस रास्ते से यात्रा करते हैं। पहले इस क्षेत्र में बाघ स्थायी रूप से रहते थे, लेकिन आजकल यह सिर्फ उनके यात्रा मार्ग के रूप में ही जाना जाता है। हाल ही में बाघ के पगमार्क देखे गए हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यहां फिर से बाघों की स्थायी उपस्थिति हो सकती है।

गौरतलब है कि यह इलाका न केवल बाघों के लिए, बल्कि अन्य वन्यजीवों के लिए भी उपयुक्त है। खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के घने जंगल, खुले मैदान और पर्याप्त शिकार की मौजूदगी इसे बाघों के लिए आदर्श स्थान बनाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस क्षेत्र का ठीक से अध्ययन किया जाए और जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र को ध्यान में रखते हुए पुनर्वास प्रयास किए जाएं, तो यह जगह फिर से बाघों का घर बन सकती है।

यदि वन विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञ इस क्षेत्र का अध्ययन करते हैं और यहां बाघों के रहने के लिए उचित वातावरण सुनिश्चित करते हैं, तो यह क्षेत्र बाघों के पुनर्वास के लिए आदर्श स्थान बन सकता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ के बाघों के लिए यह क्षेत्र एक सुरक्षित आवास बन सकता है, जहां वे न केवल अपने शिकार का आनंद ले सकेंगे, बल्कि एक स्थायी निवास भी बना सकेंगे।

वन विभाग की सतर्कता और प्रयास

हाल ही में मिले बाघ के पदचिह्नों के बाद विभाग इनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए रात्रि गश्त तेज कर दी है। इसके साथ ही, स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके। लेकिन अगर यहां बाघों के पुनर्वास की योजना बनती है, तो यह एक रोमांचक पहल हो सकती है, जो न केवल वन्यजीवों के संरक्षण में मदद करेगी, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी बनाए रखेगी।

खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के जंगलों में बाघों की वापसी का सपना फिर से साकार हो सकता है। इसके लिए हमें वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह क्षेत्र वन्यजीवों और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक आदर्श उदाहरण बन सकता है।

बाघों की सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदम

बाघों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग और विशेषज्ञों ने कई ठोस उपाय सुझाए हैं:

  1. गश्त बढ़ाई जाए: क्षेत्र में वन विभाग की नियमित गश्त सुनिश्चित की जाए।
  2. कैमरा ट्रैप और निगरानी उपकरण: संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी और ट्रैप कैमरे लगाए जाएं।
  3. ग्रामीणों की भागीदारी: स्थानीय लोगों को बाघों की सुरक्षा और संरक्षण में जागरूक और शामिल किया जाए।
  4. अवैध गतिविधियों पर रोक: जंगल में शिकार, लकड़ी कटाई और अतिक्रमण जैसी गतिविधियों को सख्ती से रोका जाए।
  5. विशेष बाघ सुरक्षा बल: बाघों की सुरक्षा के लिए एक विशेष वन्यजीव सुरक्षा बल नियुक्त किया जाए।
  6. संरक्षित क्षेत्र घोषित करना: इस इलाके को संरक्षित क्षेत्र या सेंचुरी घोषित किया जाए।

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